Thursday, July 2, 2020

मुआ कोरोना-6

बस यूं ही
निसंदेह यह समय मानव पर प्रकृति की जीत का है, विजय का है। साथ ही सबक का भी है कि समय सभी का आता है। अभी समय बदला हुआ है। बिलकुल यू टर्न की तर्ज पर है। एक माह पहले किसी ने दूर-दूर तलक सोचा नहीं होगा कि एेसा समय भी आएगा। खैर, समय आया भी और लोग उससे दो-चार भी हो रहे हैं। एेसे मौसम में अकबर-बीरबल के उस संवाद का स्मरण बरबस ही हो जाता है, जिसमें अकबर कहते हैं, बीरबल एेसा कोई वाक्य सुनाओ, जिससे सुनकर दुख भी हो और खुशी का एहसास भी हो। काफी सोच-विचार करने के बाद बीरबल ने जवाब दिया था, जहांपनाह, 'यह वक्त गुजर जाएगा' गम व खुशी मिश्रित वाक्य सुनकर बादशाह अकबर बहुत खुश हुए और बीरबल की हाजिर जवाबी का इनाम भी दिया। समय का जिक्र इसलिए भी जरूरी है कि कल तक जिनके पास मरने तक के लिए समय नहीं था, आज वो जीने की दुआए मांगते हुए लॉकडाउन में बंद हैं। समय का फेर बडे-बड़ों को अपने लपेटे में ले लेता है। समय को लेकर बहुत कुछ कहा गया है। बताया गया है कि समय किसी का सगा नहीं होता। समय को लेकर लिखे गए एक राजस्थानी गीत ने तो पिछले दिनों काफी धूम मचाई थी। 'समय को भरोसो कोनी कद पलटी मार जावै... ' वाकई समय का कोई भरोसा नहीं है। तुलसीदास जी ने भी कहा है, 'तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान। भीलां लूटी गोपियां, वही अर्जुन वही बाण।' अर्थात मनुष्य बड़ा/छोटा नहीं होता वास्तव में यह उसका समय ही होता है, जो बलवान होता है। जैसे एक समय था जब महान धनुर्धर अर्जुन ने अपने गांडीव बाण से महाभारत का युद्ध जीता था और एक ऐसा भी समय आया जब वही भीलों के हाथों लुट गया और वह अपनी गोपियों का भीलों के आक्रमण से रक्षा भी नहीं कर पाया। समय को लेकर धारावाहिक महाभारत में भी बहुत सुंदर व्याख्या की गई है। जिसने पहले नहीं सुनी होगी तो अब कोरोना काल में इसके प्रसारण के दौरान जरूर सुनी होगी। धारावाहिक के शुरू में समय का चक्र घूमता है और पृष्ठभूमि से आवाज आती है। ' मैं समय हूं... ' समय की यह व्याख्या थोड़ी बड़ी है और विषयांतर करने वाली भी लेकिन पूरा पढ़ेंगे तो समय को समझने में आसानी होगी। प्रासंगिक भी है, लिहाजा गौर फरमाइएगा, 'मैं समय हूं और आज महाभारत की अमर कहानी सुनाने जा रहा हूं। यह महाभारत भरत वंश की कोई सीधी साधी युद्ध कथा नहीं है। यह कथा है भारतीय संस्कृति के उतार चढ़ाव की। यह कथा है सत्य और असत्य के महायुद्ध की। यह कथा है अंधेरे से जूझने वाले उजाले की। और यह कथा मेरे सिवाय कोई सुना भी नहीं सकता क्योंकि मैंने इस कथा को इतिहास की तरह गुजरते देखा है। इसका हर पात्र मेरा देखा हुआ है। इसकी हर घटना मेरे सामने हुई है। मैं ही दुर्योधन हूं, मैं ही अर्जुन और मैं ही कुरुक्षेत्र, क्योंकि महाभारत बनते बिगड़ते रिश्तों और रिश्तों के आधार और जीवन सागर को मथ कर जीवन सत्व का अमृत काढने की है। यह लड़ाई हर युग को अपने-अपने कुरुक्षेत्र में लडऩी पड़ती है। क्योंकि हर युग के सत्य को वर्तमान के असत्य से जूझना पड़ता है। और जब तक मैं हूं यह महायुद्ध चलता रहेगा। और मेरा कोई अंत नहीं मैं अनंत हूं। इसीलिए यह आवश्यक है कि हर वर्तमान इस कहानी को सुने और गुने ताकि वो भविष्य के लिए तैयार हो सके। यह लड़ाई लड़ना हर वर्तमान का कर्त्तव्य है और हर भविष्य की तकदीर है, इसीलिए मैं कभी गुरु, कभी मां और कभी ऋषि बनकर हर पीढ़ी को इस महायुद्ध के लिए इस कहानी से तैयार करता रहता हूं।' वाकई यह लड़ाई लड़ना हर वर्तमान का कर्त्तव्य है और हर भविष्य की तकदीर भी है। आज हम जिस तरह से कोरोना महामारी से मुकाबला कर रहे हैं, उसमें आने वाले कल की तकदीर छिपी है।
क्रमश:

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