Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना- 7

बस यूं ही

समय पर काफी लंबा लिखा, लिहाजा आज थोड़ा अलग तरह के विषय की ओर चलते हैं। इस मे कोई दो राय नहीं कि कोरोना में कई काम सकारात्मक हुए लेकिन एक काम बड़ा अजीब भी हुआ। समझ नहीं आ रहा इसको सकारात्मक कहूं या नकारात्मक। कल ही एक मित्र ने फोन पर बताया था। (नाम व शहर का नाम मित्र के आग्रह पर नहीं दे रहा हूं। ) मित्र कहने लगा यार पहले बेईमानी का काम ईमानदारी से होता था, आजकल बेईमानी के काम में भी बेईमानी घुस गई है। यह अंतर कोरोना के बाद आया है। मैं मित्र का आशय समझा नहीं और थोड़ा विस्तार से बताने का आग्रह किया। उसने बताया कि पहले सट्टा हो या हवाला, इस तरह के कामों में बेईमानी नहीं होती थी, जो डील हो गई मतलब फाइनल, उसमें किसी तरह का हेर-फेर नहीं होता था लेकिन इस कोरोनाकाल में बेईमानी के धंधे में बेईमानी घुस गई है। और नहीं तो शराब ही देख लो, यहां भी लोग ठगी मारने से बाज नहीं आ रहे। वो कहने लगा, लॉकडाउन के चलते उसके शहर की तमाम शराब की दुकानें बंद हैं। बाहर निकलो तो पुलिस का खतरा। अब पैग की तलब कैसे मिटे? यही सोचकर पांच सात मित्रों के आगे दुखड़ा रोया तो एक ने व्हाट्सएप नंबर दिए। और बताया कि इससे बात कर लेना। यह ठेकेदार से बात करवाएगा। फिर आपको जो ब्रांड चाहिए घर पहुंच जाएगा। मित्र ने उस नंबर पर फोन लगाया तो वहां से मैसेज आया कि इस गूगल पे अकाउंट पर, जो ब्रांड लेना चाहते हैं, उसकी आधी कीमत ट्रांसफर कर दो। मित्र ने बताया कि मैसेज देखकर एक बार तो वह सकपकाया। न शराब देखी न ब्रांड और पैसे पहले कैसे? उसने बहाना बनाते हुए पलटकर जवाब दिया भाईसाहब गूगल पे पर खाता ही नहीं है। एेसा करो आप सामान भिजवा दो, आपको नकद भुगतान हो जाएगा। अगला बोला, भाई साहब सामान गोदाम से निकलते ही पर्ची कटती है। न्यूनतम सौ रुपए की पर्ची तो कटवानी ही पड़ेगी। एेसा करो आप अपने एटीएम के दोनों तरफ की फोटो भेज दो। एटीएम का नाम आते ही मित्र का माथा फिर ठनका। और उसने फोन काट दिया। इस तरह मित्र ऑनलाइन ठगी का शिकार होते-होते बच गया।

खैर, मित्र की बात में मुझे भी सच्चाई नजर आई, जब आज मैंने समाचार पत्र में शराब की होम डिलीवरी के नाम पर ठगी का समाचार पढ़ा। समाचार पढ़कर अचानक मित्र का वाकया आंखों के सामने घूम गया। वाकई संकट के इस काल में कई ईमानदारों का ईमान भी डोला है लेकिन बेईमानी के धंधों में भी बेईमानी घुसपैठ कर गई। यह आश्चर्य है लेकिन सुखद आश्चर्य है। संतोष करने वाली बात तो यह भी है कि भ्रम दूर हो गया कि बेईमानी के धंधे में ईमानदारी से काम होने की उम्मीद करना बेमानी है।
क्रमश:

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