Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना- 41

बस यूं.ही

'आप पुलिस और डाक्टरों पर क्यों नहीं लिखते। कोरोनाकाल में यह दोनों वर्ग रातोरात हीरो बन गए। लोग पहले इनको गालियां देते हैं अब इनके लिए दुआ कर रहे हैं।' यह किसी परिचित का सुझाव था। उनका कहना सही भी था कि अब तक शिक्षक, फोटोग्राफर, मास्क, शराब, मजदूर, मध्यम वर्ग आदि पर ही आपने कलम चलाई है, इसलिए कुछ इन पर भी लिखा जाना चाहिए। बात तो सही है, जनता कब नजरों में चढ़ा दे और कब उतार दे, यह कलाकारी सब जनता ही जानती है। सन 1974 में राजेश खन्ना की फिल्म आई थी, नाम था रोटी। इसी फिल्म का एक गीत है 'ये जो पब्लिक है सब जानती है।' इसी गीत का एक अंतरा है, 'ये चाहे तो सर पे बिठा ले चाहे फ़ेंक दे नीचे, ये चाहे तो सर पे बिठा ले चाहे फ़ेंक दे नीचे, , पहले ये पीछे भागे फिर भागो इसके पीछे। अरे दिल टूटे तो अरे ये रूठे तो दिल टूटे तो अरे ये रूठे तो तौबा कहां फिर मानती है... ये जो पब्लिक है।' इसी गीत का अगला अंतरा भी देखें, 'क्या नेता क्या अभिनेता दे जनता को जो धोखा,क्या नेता क्या अभिनेता दे जनता को जो धोखा, पल में शोहरत उड़ जाए ज्यों एक पवन का झोंका, अरे ज़ोर न करना अरे शोर न करने, ज़ोर न करना अरे शोर न करना, ज़ोर न करना शोर न करने, अपने शहर में शान्ति है, ये जो पब्लिक है सब जानती है।, वाकई जनता की अदालत जो होती है ना, उसका कोई जवाब नहीं। जनता की अदालत तो सरकारें तक बनवा और बिगड़वा देती हैं यह तो चिकित्सकों एवं डाक्टरों की छवि की बात है। थोड़ा गहराई में सोचा जाए तो सवाल भी खड़े होते हैं कि छवि बिगड़ती क्यों हैं ? और बिगाड़ता कौन है? स्वाभाविक सी बात है काम करने का तरीका और व्यवहार ही छवि बनाते हैं और बिगाड़ते हैं। पुलिस और चिकित्सकों की छवि सुधरी है तो इसका श्रेय कोरोना को भी दिया जाना चाहिये। यह मुआ नहीं आता तो सब कुछ पुराने ढर्रे पर ही चलता ना। देखिए ना छवि सुधारने का कितना बेहतर मौका उपलब्ध कराया है इस कमबख्त कोरोना ने। कई चिकित्सकों के तो पीपीई किट पहने हुए कोरोना संक्रमितों के साथ थिरकते हुए के वीडियो तक वायरल हुए हैं, तो मदद करते पुलिसमर्मियों के भी। यह बात दीगर है कि कई जगह व्यवस्था बनाने या कानून की पालना करवाने के लिए उसको डंडे भी चलाने पड़े। हां एक नियम को लेकर जरूर असमंजस रहा। सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर नियम बनाया गया कि दुपहिया पर एक तथा चौपाहिया वाहन में दो आदमी ही यात्रा कर सकते हैं। माना एहतियातन यह जरूरी था, लेकिन आपने अपने आसपास पुलिस की गश्ती जीप जरूर देखी होगी। कभी देखा कि उसके अंदर कितने लोग बैठे थे। इससे तो यह जाहिर हुआ कि कानून के डंडे से कोरोना भी डरता है। वह आम आदमी को तो प्रभावित करेगा लेकिन पुलिस वालों के पास नहीं आएगा। खैर, एेसी परिस्थिति में क्या कहा जाए। एेसे हालात पर तो वो गाना ही याद आता है, 'हम बोलेगा तो बोलोगे के बोलता है ।' वैसे भी पुलिस से पंगा कौन ले भला। बचपन में एक ट्रक के पीछे लिखा स्लोगन पढ़ा था, आज भी याद है। लिखा था जिंदगी में हमेशा तीन कोट से बचना चाहिए। खाकी कोट, काला कोट एवं सफेद कोट। खाकी मतलब पुलिस। काला मतलब वकील तथा सफेद मतलब डाक्टर। यहां काला कोट तो चर्चा में नहीं है। कोरोना के चलते उनका काम वैसे ही मंदा है। ज्यादा काम तो पुलिस व चिकित्सकों का ही बढ़ा। जिस तरह से सोशल डिस्टेंसिंग के नियम और पुलिस द्वारा उसकी पालना पर असमंजस में था, उसी तरह कोरोनाकाल में अन्य बीमारियों का हश्र देखकर भी हतप्रभ हूं। शायद कोरोना के डर से सारी बीमारियां दुम दबा कर बैठ गई। यहां तक कि दिन भर मरीजों से गुलजार रहने वाली ओपीडी तक भी कहीं बदं कर दी गई तो कहीं सूने हो गई। मौसमी बीमारियों के मरीज यकायक कम हो गए। ठीक वैसे ही जैसे जंगल में कोई हिंसक जानवर आता है तो बाकी सभी जीव-जंतु डर से सहम कर दुबक जाते हैं या गायब हो जाते हैं। यह कोरोना भी तो एक तरह का हिसंक जानवर ही हुआ न। सारी बीमारियों को पलक झपकते ही गायब कर दिया। सोचिए यह बीमारियां गायब नहीं होती तो चिकित्सक को कोरोना पर ध्यान केन्द्रित करने में कितना जोर आता। सबसे बड़ी बात तो यह है कि कोरोना काल में सिजेरियन बच्चे पैदा होने कम हो गए। सामान्य प्रसव के मामले यकायक बढे हैं। यह राज समझ नहीं आ रहा है कि कोरोना ने एेसा क्या जादू किया। वाकई उसने गर्भवती महिलाओं एवं उनके होने वाले बच्चों को सभी प्रकार से खतरों से एक तरह से मुक्त कर दिया। तभी तो उनका सामान्य प्रसव की तरफ रुझान बढ़ा। सिजेरियन बच्चे पैदा क्यों होते हैं? इसके पीछे क्या मनोविज्ञान है, यह तो मैं भी नहीं जानता हूं, क्योंकि दोनों सुपुत्र सिजेरियन ही हैं। अब इस पोस्ट के माध्यम से मुझे पुलिस या चिकित्सक विरोधी समझने की भूल कभी मत करना। बस दो चार सवाल जेहन में थे, वो जरूर साझा किए हैं, बाकी इनके प्रति जो सम्मान पहले था, वैसा ही अब है। फिर भी किसी को गुस्ताखी नजर आए तो दोनों कान पकडता हूं। इस पोस्ट में इतना ही। मिलते हैं जल्द ही नई पोस्ट एवं नए विषय के साथ।
क्रमश:

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