Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना- 37

बस यूं.ही

यह भी संयोग है कि कोरोना पर निरंतर लेखन के चलते अभी कई शुभचिंतक भी लिखने के विषय बताने लगे हैं। अभी मास्क व फोटोग्राफर पर लिख कर हटा ही था कि बतौर प्रतिक्रिया मैसेज आया कि मास्क के चलते मेकअप के सामान की बिक्री घट गई है, विशेषकर लिपिस्टिक की। बात में दम तो है। इसी तरह फोटोग्राफर की बात से याद आया कि हर फोटो स्टूडियो के बाहर एक स्लोगन आप सब ने जरूर पढ़ा होगा, 'फोटो ही जीवन की मधुर यादगार है।' बात सही भी है।आखिर फोटो ही तो है, जिसको देखकर अतीत जिंदा हो उठता है। मुझे आज से 31 साल पहले का एक वाकया याद आ रहा है। मैंआठवीं कक्षा में था, तब हमारे प्रधानाध्यापक जी सेवानिवृत्त हुए थे। सभी स्टाफ सदस्यों एवं बड़ी कक्षा होने के नाते आठवीं के सभी विद्यार्थियों ने उनको विदाई दी और एक ग्रुप फोटो भी करवाया। फोटो ग्रुप था, लिहाजा सुलताना से आए फोटोग्राफर हम सभी को व्यवस्थित करने में जुटे थे। सभी तैयार हुए तो फोटोग्राफर ने एक आंख बंद करके दूसरी आंख कैमरे पर लगाई और कहा रेडी, इतने में कोई हिला तो फोटोग्राफर एक आंख बंद किए ही उसको टोकने लगे। तब फोटोग्राफर की एक आंख बंद देखकर हम खूब हंसे। फोटोग्राफर भी झेंप गया। वैसे फोटो से जुड़े दर्जनों वाकये हैं। तस्वीर पर कलम भी खूब चली है। तस्वीर पर लिखी शेरो-शायरी और फिल्मी गानों का तो कहना ही क्या। वो क्या है घूम फिर कर कहीं न कहीं बात गानों पर आ ही जाती है। गानों को देखकर मैं लोभ संवरण नहीं कर पाता। माया फिल्म का गाना 'तस्वीर तेरी दिल में, जिस दिन से उतारी है।' अचानक ही याद आ गया। तस्वीर पर गानों की फेहरिस्त लंबी है, इसलिए तस्वीर से जुड़े चर्चित शेर ' तेरी सूरत से नहीं मिलती किसी की सूरत, हम जमाने में तेरी तस्वीर लिए फिरते हैं।' के साथ फोटो की चर्चा को विराम देते हैं, हालांकि फोटोग्राफरों के प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है।
लेखन के लिए अगले विषय का चयन कर ही रहा था कि अचानक श्रीगंगानगर से एक परिचित के मैसेज ने सोचने पर मजबूर कर दिया, मैसेज का शीर्षक था, कड़वा सत्य। वैसे भी सच कड़वा ही होता है। आजकल जमाना सच बोलने का है भी नहीं । हां सच को चासनी में लपेट कर पेश करने की परम्परा जरूर बन चुकी है, सुनने वाला भी खुश और सुनाने वाला भी खुश। तो मैसेज था कि 'कोरोना ने भारत में सब कुछ बंद करवा दिया पर, राजनीति बंद नहीं करवा सका। यहां तो कोरोना हार गया।' वाकई संकट के समय में देश में सियासत तो जमकर हुई। एक के बाद एक लॉकडाउन के फेर में उलझी जनता तो बेचारी समझ ही नहीं पाई कि यह क्या हो रहा है? कौन राजनीति कर रहा है? क्यों कर रहा है? क्या कोरोना को राजनीति से मुक्त नहीं किया जा सकता ? जैसे सहज और सीधे सवाल आपके जेहन में आएं होंगे। दरअसल, सियासत मेरा पंसदीदा विषय है। संयोग से अध्ययन के दौरान राजनीतिक विज्ञान मेरा विषय भी रहा है। सियासत के सामने कोरोना की एक नहीं चली। सियासत ने जनता कर्फ्यू लगवाया। लॉकडाउन लगावाया। ताली-थाली-टाली बजवाई। दीपक-मोमबत्ती भी जलवाई। हवाई जहाज, रेलें एवं बसें तक भी चलावाई। शराब की दुकानें खोलने सहित कई छूटें भी धीरे-धीरे दी। लेकिन इन सब कामों में सियासी गंध राजनीतिक विश्लेषकों ने जरूर महसूस की होगी। सियासत और भी चरम पर होती अगर कोरोना चुनाव के समय आता या कोरोनाकाल में कोई चुनाव आते। हां जब देश में सब बंद होने लगा था तब एक जगह सरकार का तख्ता पलटा भी तथा नई सरकार का गठन भी हुआ। मतलब कोरोना यहां किसी भी तरह से बाधक नहीं बना। वैसे भी निर्देश, नियम, गाइडलाइन, कानून आदि हैं तो उनके लिए है ना जो इनकी पालना करते हैं। आम आदमी तोड़ता है तो सजा पाता है लेकिन समर्थ तोड़ता है कोई चर्चा तक नहीं होती। वो अकबर इलाहबादी का एक चर्चित शेर है ना कि 'हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।' सच में समर्थ लोगों को कोई दोष नहीं दे सकता। तुलसीदासजी ने भी लिखा है, 'समर्थ को नहीं दोष गुसाई, रवि पावक सुरसरि की नाहि। जमाना समर्थों का ही है। आम आदमी की सुनता भी कौन है। सियासी मोहरे वक्त के साथ जरूर बदल जाते हैं लेकिन उनकी फितरत कमोबेश एक जैसी ही रहती है, बेचारा आम आदमी वैसा का वैसा ही रहता है। हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा की यह कविता मुझे बेहद प्रिय है। वैसे शर्मा हैं तो हास्य के कवि लेकिन इस कविता में इनके गांभीर्य की दाद देनी पड़ेगी। आप भी पढि़ए और सोचते रहें। मैं चलता हूं अगली पोस्ट की खोज में.....।
'कोई फर्क नहीं पड़ता
इस देश में राजा रावण हो या राम
जनता तो बेचारी सीता है
रावण राजा हुआ, तो वनवास से
चोरी चली जाएगी
और राम राजा हुआ तो,
अग्नि परीक्षा के बाद फिर वनवास में भेज
दी जाएगी।
कोई फर्क नहीं पड़ता इस देश में राजा कौरव
हो या पांडव,
जनता तो बेचारी द्रौपदी है
कौरव राजा हुए तो, चीर हरण के काम
आएगी
और पांडव राजा हुए तो जुए में हार
दी जाएगी।
कोई फर्क नहीं पड़ता
इस देश में राजा हिन्दू हो या मुसलमान,
जनता तो बेचारी लाश है,
हिन्दू राजा हुआ तो, जला दी जाएगी
और मुसलमान राजा हुआ
तो दफना दी जाएगी।'
क्रमश:

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