Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना-24

बस यूं.ही

भारतीय फिल्मी गीतों में शहरों के नाम का उल्लेख बहुतायत में हुआ है। शहरों को केन्द्र में रखकर कई कालजयी एवं चर्चित गीत लिखे गए हैं। दरअसल, शहर और गीतों का ख्याल इसीलिए आया क्योंकि जिस शहर को लेकर सर्वाधिक गाने लिखे गए हैं, जिसकी खासियत गानों में बताई गई है। वह शहर आज कोरोना से जूझ रहा है। लोग पलायन कर रहे हैं। जी हां मायावी नगरी मुंबई के हालात ठीक नहीं है। बीकानेर के एक परिचित ने मुंबई पर लिखे गए एक चर्चित गीत पर बनाया गया जुमला भेजा तो मुझे गीतों की याद आ गई। भारतीय शहर और उन पर लिखे गए ना जाने कितने ही गीत यकायक जेहन में आ गए। कुछ गीतों की बानगी देखिए, 'दिल्ली की कुतुबमीनार देखो, बंबई शहर की बहार देखो, यह आगरे का है ताजमहल घर बैठे सारा संसार देखो।' फिल्म दुश्मन के इस गीत के बोल अब चरितार्थ हो रहे हैं। बंबई शहर में न तो अब बहार है और न ही शहर को देखने की किसी की हिम्मत बची है। हर तरफ सन्नाटा पसरा है और मुंबई छोड़कर भागते श्रमिकों की कतार लगी है। कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित एवं हताहत होने वाले लोग भी मुंबई से ही हैं। गीतों का जिक्र आया तो रेखा अभिनीत फिल्म बीवी हो तो एेसी का 'बबुआ खाता जा एक पान, पान में हमरी बड़ी है जान' के पहले भी बंबई का जिक्र आता है। गाने से पहले जब रेखा गाती है 'दिल्ली हो, मद्रास हो चाहे मुंबई हो या कलकता, सौ रोगों की एक दवा यह हरे पान का पत्ता।' हालांकि मुंबई का पहले नाम बंबई था, इस तरह मद्रास अब चेन्नई तो कलकत्ता का कोलकाता हो गया। हां दिल्ली नहीं बदली। इस कारण पुराने गानों में शहरों के पुराने नाम हैं। अब चूंकि शहर और गीतों की चर्चा चल ही पड़ी है तो क्यों न आज इसी विषय पर बात की जाए। 'बम्बई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को सलाम करो, रात को खाओ पियो, दिन को आराम करो।' मुझे आज भी याद है, बचपन में यह गाना बहुत बार गुनगुनाया है। कोरोना काल से यह गाना भी अछूता नहीं बचा है। गीत के बोल बदल कर अब ' मुंबई से आया मेरा दोस्त, प्रधान को इन्फॉर्म करो' कर दिया गया है। बंबई हो लेकर एक बहुत ही पुराना गीत जो आज मौजूं हैं, ' ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां, जऱा हट के जऱा बच के ये है बम्बई मेरी जान।' सही में अभी मुंबई में जीना मुश्किल है। वहां हटकर और बचकर ही रहना मजबूरी है। मुंंबई की तड़क-भड़क भारतीय युवाओं को सदा से लुभाती रही है। न जाने कितने ही युवा अपने सपनों को रंगीन बनाने मुंबई पहुंचते रहे हैं। अमिताभ बच्चन जी की चर्चित फिल्म डॉन का यह गीत भी मुंबई की खूबी और खासियतों को बताता है लेकिन यहां आने वालों को आगाह भी करता है। देखिए, ' ई है बंबई नगरिया, तू देख बबुआ, सोने-चांदी की डगरिया तू देख बबुआ। जादू टोने की बजरिया में, माया की नगरिया में, झटपट बदले मुकद्दर का लेख बबुआ, वो देखो दूर-दूर से लोग दूर-दूर से यहां आते हैं दांव लगाने, देश गांव छोड़ के, प्रीत प्यार छोड़ के सोया-सोया नसीबा जगाने, अरे अपना क्या होगा पैसा हमने दिया हैं फेंक बबुआ।' वाकई यहां भाग्य आजमाने के लिए आने वाले, जिंदगी को दांव पर लगाने वाले, अपना देश-गांव छोड़ कर यहां आने वाले, प्रीत-प्यार तोड़ रोजगार के लिए आने वाले अब जिंदगी की दुहाई मांग रहे हैं। पैदल ही घरों की ओर लौट रहे हैं। वैसे मुंबई की जीवन शैली पर कई फिल्में भी बनी हैं और गीत भी। हालात व वक्त के सताए लोगों पर हम हैं राही प्यार के फिल्म का जूही चावला पर फिल्माया गया गाना ' बंबई से गई पूना, पूना से गई दिल्ली, दिल्ली से गई पटना फिर भी ना सजना...।' भी सटीक बैठ रहा है। अपनों की तलाश में तथा अपनों के पास जाने वाले लोग दरबदर हैं। 1980 में राजेन्द्र कुमार, अनिल धवन व योगिता बाली की एक फिल्म आई थी, नाम था ओह बेवफा। इस फिल्म का किशोर कुमार द्वारा गाया गया गीत भी मुंबई के वर्तमान हालात को बखूबी बयां कर रहा है। गीत है, ' देख ली तेरी बंबई, रोज मुसीबत यहां नई, पत्थर दिल इंसान यहां, जाने मोहब्बत कहां गई।' सच में मुंबई से फिलहाल मोहब्बत गायब है। लोग माया नगरी का मोह छोड़कर जान बचाने को दौड़ रहे हैं। हां सिनेमानगरी की यह सूरत देख कर मन में सहानुभूति जरूर पैदा होती है।
क्रमश:

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