बस यूं.ही
पोस्ट लिखने के तत्काल बाद प्रतिक्रिया आने का क्रम अनवरत जारी है। पुलिस एवं चिकित्सकों पर लिखा तो प्रतिक्रिया आई कि यह भी लिखना चाहिए था। जैसे एक ने बताया कि चिकित्सकों में अधिकतर सरकारी ही थे, निजी तो लगभग फ्री ही थे। किसी ने कहा कि अस्पतालों में भीड़ कम होने की वजह कोरोना का डर था, इसलिए लोगों ने अपनी छोटी-मोटी बीमारी को डर के मारे दबा लिया। एक परिचित ने तो कोट को लेकर ही टोक दिया। कहने लगे, कोट तीन नहीं चार होते हैं। आपने शायद मर्यादा का ख्याल रखते हुए इस चौथे कोट का उल्लेख नहीं किया। मैं उनकी प्रतिक्रिया पर बस हंस भर दिया। इसी तरह पुलिस के लिए कहा कि वो खुद दोपहिया पर बिना हेलमेट के घूमते दिखाई दिए लेकिन उनका चालान कौन काटे। मारवाड़ी में एक कहावत भी है ' बाबो सै नै मारै, बाबै न कुण मारै।' इसका तात्पर्य यही है कि जो समर्थ होता है वो सभी पर कार्रवाई का डंडा चला सकता है लेकिन उस पर कौन चलाए। खैर, दुनिया विविधता से भरी पड़ी है। यहां भिन्न-भिन्न मानसिकता वाले लोग हैं। तुलसीदास जी ने तो बहुत पहले कह दिया था कि,'तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग,
सबसे हंस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग।'
अब हंस मिलकर बोलने वाली बात पर कितने विचार करते हैं, यह अलग बात है लेकिन किसी वर्ग विशेष के प्रति सोच सबकी समान नहीं होती है। पुलिस व चिकित्सक उन सबकी नजरों में निसंदेह हीरो व बहुत नेक आदमी हैं, जिनका इनसे परोक्ष या प्रत्यक्ष अनुभव नहीं रहा। इनको गलत या बुरा भी वो ही ठहराएगा, जिसका कोई एेसा अनुभव रहा होगा। दरअसल, मूल विवाद की जड़ यह धारणा ही बनती है। कोई एक आदमी गलत है तो उससे सारा विभाग गलत नहीं हो जाता और कोई एक आदमी सही है तो उससे सारा विभाग ईमानदार नहीं हो जाता। विडम्बना यही है कि व्यक्ति विशेष के प्रति रखा जाने वाला पूर्वाग्रह, उसके समूचे विभाग के लिए एक तरह का अभिशाप बन जाता है और पूरे विभाग को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। मैं खुद मानता हूं कि हाथ की पांच अंगुलियों की तरह सभी आदमी बराबर नहीं हो सकते। भगवान ने सबको शक्ल, रंग व सोच अलग तरह की दी है। सोशल मीडिया पर तो एक की गलती पर पूरे विभाग को गलत ठहराने की परंपरा सी बन गई है। यही गलती कोई राजनीति दल का नुमाइंदा करता है तो पार्टी की तरफ से बयान आता है, यह इनका व्यक्तिगत मामला है। पार्टी का इससे कोई लेना देना नहीं। अफसोस की बात यह है कि विभागों की तरफ से एेसे कोई स्पष्टीकरण नहीं आते। खैर, आज मैं भी दार्शनिक अंदाज में लिखने लगा। बात कोरोना की थी विषयांतर होकर कहां तक आ गया। पुलिस व चिकित्सक की बात के बाद अर्द्ध सैनिक बल में तैनात एक परिचित से हुए दो तीन संवादों का जिक्र करना उचित समझूंगा। वो परिचित अक्सर कोरोना को लेकर चर्चा करते हैं। यह रोग क्या है? इसकी प्रकृति कैसी है? यह क्यों फैल रहा है? फैल गया है या फैलाया गया है? इतनी मौत ही नहीं तो महामारी के रूप में क्यों प्रचारित किया गया है? कब तक एेसा रहेगा? एक साथ दनादन कई सवाल। मैं यह गलत या परेशान करने वाली बात नहीं मानता। बचपन से जानता हूं, उनका स्वभाव जिज्ञासु प्रवृति का है। जब तक किसी सवाल का समाधान न खोज लें, तब तक पीछा नहीं छोडऩा। मूल सवाल का जवाब मिल जाए तो फिर पूरक सवाल की झड़ी शुरू हो जाती है। जहां तक संभव हुआ है मैंने उनके हर सवाल का तसल्लीबख्श जवाब देने का प्रयास किया है फिर भी उनके कई सवाल कायम ही रह जाते हैं। मैं उनके सवालों से प्रभावित इसीलिए भी हूं क्योंकि उनके पास सवाल के साथ तर्क भी हैं। यह उनके नियमित अध्ययन का परिणाम है। कल परसों फोन आया, पूछने लगे भाईसाहब आपके पास अकेले कोरोना से मरने वाले तथा कोरोना के साथ अन्य बीमारी से मरने वालों का आंकड़ा है क्या? कोरोना संक्रमितों की रफ्तार विदेशों के मुकाबले भारत में बहुत धीमी है तो मीडिया में इतना कवरेज क्यों? वाकई इन सवालों ने तो मुझे भी चक्करघिनी किया। सोचने भी लगा बाकी बीमारियों व हादसों के मुकाबले हताहतों की संख्या एवं तुलनात्मक रूप से रफ्तार कम है तो फिर हर तरफ इतना हो- हल्ला क्यों? वाकई इस हो- हल्ले ने लोगों को डरा दिया है। भयभीत कर दिया है। सोते-जागते, उठते-बैठते, नहाते-खाते बस कोरोना ही कोरोना है। इस कोरोना के अलावा और कोई चर्चा ही नहीं है। आश्चर्य तो जब होता है जब सुनने को मिलता है कोरोना बम फूटा, कोरोना विस्फोट। देश में कोरोना ने दो- ढाई माह पहले दस्तक दे दी थी लेकिन यह विस्फोट, यह धमाके अब तक जारी हैं। पता नहीं यह बम और विस्फोट जैसे शब्द कैसे ईजाद हो गए। यह कोरोना बम व कोरोना विस्फोट भी बारिश के झमाझम शब्द जैसे ही हैं। बारिश को लेकर मूसलाधार, रिमझिम, बूंदाबांदी व फुहारें गिरने जैसे शब्द प्रयोग किए जाते रहे हैं लेकिन जब से यह झमाझम आया, इसको लिखने की होड़ सी लग गई। बारिश कैसी भी हो झमाझम शब्द की ही संज्ञा दी जाने लगी। ठीक वैसे ही कोरोना विस्फोट का उपयोग होने लगा है। कोरोना संक्रमित पांच हो तो भी विस्फोट और बीस हो तो भी विस्फोट। इसी तरह तर्ज पर कोरोना बम हो गया। पता नहीं कब फूट जाए। इसकी न कोई संख्या निर्धारित है न कोई समय सीमा। जाहिर सी बात है कि कोरोना के नाम से पहले से भयभीत लोग बम और विस्फोट जैसे युद्धक शब्द सुनकर और ज्यादा डर रहे हैं।
क्रमश :
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