Monday, August 17, 2020

यह सोहलवां भी है कमाल-6

बस यूं.ही

तीन दिन से सोलह पर लिखते-लिखते भले मैं न थका हूं लेकिन पढऩे वालों के सवाल जरूर खड़े होने लगे हैं। पूछा जाने लगा है कि यह सोलह-सोलह क्या है? इस सोलह के पीछे क्या कहानी है? इस उम्र में सोलह के किस्से कैसे याद आ रहे हैं? और भी न जाने कितने ही तरह के सवालात। जितने मुंह उतनी बात की तर्ज पर। वैसे सवाल उठना स्वाभाविक भी है। उम्र के इस पड़ाव में आकर सोलह की इतने विस्तार से चर्चा करना तथा सोलह के समर्थन में इतने कशीदे पढना भला अच्छे खासों के कान खड़े नहीं कर देगा। जीवन के सोलह बसंत तो कब के पूरे हो गए। साढ़े सताईस साल हो गए, जिंदगी का सोलहवां साल गुजरे। कसम से क्या दिन थे, मस्ती भरे। खाने कमाने की परवाह से दूर एक अलग ही दुनिया थी वो। दादी, मां, पापा की सरपरस्ती में ना जाने कितनी ही गुस्ताखियां की। खैर, गुजरा हुआ जमाना कभी लौट कर नहीं आता है। वैसे सोलह पर इस तरह लिखने के पीछे भी एक पूरी कहानी है। इसे सोलह का संगम कहें या संयोग लेकिन इस तरह से जीवन में पहली बार आया है। स्वीट सिक्सटीन का नाम सुनते ही शरीर में झुरझुरी सी मच जाती है। एक अलग तरह का एहसास पूरे तन मन को रोमांचित कर देता है। बहुत पहेलियां बुझा ली। अब इस सोलहवें के राज से पर्दा हटा ही देता हूं। दरअसल, एक से दो होने की बुनियाद आज के दिन ही रखी थी। 22 जून 2004 का वो एेतिहासिक दिन था, जब पांवों में जिम्मेदारियों की बेडियां सच में पड़ गई थी। और आज उन बेडियों में बंधे ठीक सोलह साल हो गए। अपनी शादी की वर्षगांठ पर वैसे तो हर साल ही लिखता हूं लेकिन सोलह साल पूरे हुए तो कुछ विशेष तो लिखना ही था। अभी तो दोनों सोलह कदम ही चले हैं। अभी तो दोनों ने सोलह सावन ही देखे हैं। अभी तो दोनों ने जिदंगी के सोलह सौपान ही तय किए हैं। अभी मिलकर सोलह साल का सफर ही तय किया है। दोनों ने साथ साथ सोलह बंसत ही तो गुजारे हैं। वाकई यह सोलह साल का सफर बेहद हसीन रहा है। गृहस्थी की गाड़ी कभी कच्चे में चली तो कभी सड़क पर सरपट दौड़ी। कभी कटु अनुभवों के उबड़-खाबड़ रास्तों पर हिली-डुली तो कभी सुखद पलों की समतल सड़क पर रफ़्तार पकड़ी। शादी के सोलह साल पर इतनी भूमिका बनाने, इतने किस्से कहानियां सुनाने के बाद यही कहना है कि इस सोलह से प्यार है मुझे, क्योंकि यह सोलह का सफर समझ को बढ़ाने वाला, सुखद एवं सुकूनदायक रहा है। सादगी और समझदारी का संगम एक जगह मिल जाए तो फिर वो सोने पर सुहागा होता है। खुशकिस्मत हूं वो संगम जो मैंने निर्मल के रूप में पाया। आज एक बड़े सच से रूबरू करवाता हूं। सच का सारथी हूं, इसलिए सच बोलना, सुनना और कहना मेरी फितरत है। कई बार इस सच की कीमत भी चुकाई है लेकिन सच की राह में सदा अडिग रहा हूं और रहूंगा। काम का तनाव हो या कोई अन्य किसी वजह के कारण टेंशन, वह गुस्से के रूप में अक्सर निर्मल पर ही उतरता रहा है। बस वह सुन लेती है इसलिए। लाख कोशिश करता हूं। खुद को संयमित रखता हूं। नियंत्रित रखता हूं लेकिन फिर भी भावनाओं के आवेग तटबंद्ध लांघ ही जाते हैं। पता नहीं क्यों कई बार भावनाओं का ज्वार इतना उग्र हो जाता है कि फिर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाता है। खैर, इन सोलह साल में निर्मल ने मुझ जैसे तुनकमिजाज, खडूस एवं सनकी आदमी में काफी सुधार किया है। उसका धैर्य सच में गजब का है। कई बार सोचता हूं, उसकी प्रतिक्रिया या स्वभाव भी अगर मेरे जैसा हो जाए तो क्या होगा? निर्मल वाकई तुम्हारी जीवटता का कोई जवाब नहीं। मेरी गुस्ताखियों को इसी तरह से नजरअंदाज करते रहना।
' तुमने जाना है मेरे हालात को,
तुमने समझा है मेरे ज़ज्बात को,
हर गम और खुशी की साथी हो तुम,
थामे रखना सदा हाथ में मेरे हाथ को।'
सच में मैं तुमसे ही पूर्ण हूं। स्वीट सिक्सटीन की बधाई। शादी की वर्षगांठ की मुबारकबाद। लख-लख बधाई। और हां आप सब भी हम दोनों को बधाई दे सकते हैं। क्योंकि यह सोलह अब फिर ना आएगा..व्यक्तिगत तो कभी का गुजरा अब साथ वाला भी हाथ से फिसल रहा है सूखी रेत की तरह। तभी तो है यह सोहलवां कमाल।

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