Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना- 45

बस यूं ही

आज सुबह से व्यस्तता थी, लिहाजा नियमित किस्त लिखने में कुछ विलम्ब हुआ। इस देरी के लिए, इस इंतजार को खुशी में बदलने के लिए सबसे पहले तो दो जोक सुन लेते हैं, क्योंकि आज की पोस्ट में बात कुछ गंभीर लिखने का इरादा है।
देखिए, 'कोरोना का तो पता नहीं, पर जिस हिसाब से पिछले दो माह से फोन में चिपका हुआ हूं, अंधा होने के नहीं तो मोतियाबिंद होने के पूरे चांसेस हैं।' दूसरा है। 'मैंने एक बात नोटिस की है जब से ये चाइनीज बीमारी आई है, भारतीय बीमारियों की तो कोई इज्जत ही नहीं रही.!' यह बात भले ही मजाक में कही गई हो लेकिन सच यही है। अन्य बीमारियां गायब हो गई या कोरोना से डरा दी गई या डर गई यह अलग विषय है लेकिन लोग बीमार कम हो रहे हैं। कोरोना का डर ही सब पर भारी पड़ रहा है। वैसे अब लोग इस कोरोना का नाम सुन-सुनकर इरिटेट होने लगे हैं। मतलब चिड़चिडे हो गए हैं। झुंझुलाहट बढ रही है। सहनशीलता कम हो रही है। बात-बात पर गुस्सा आने लगा हैं। दूसरों की क्या कहूं मेरा खुद का रक्तचाप बढ़ गया है। खैर, एेसे ही आज सोचने लगा कि यह कोरोना-कोरोना का शोर इतना क्यों है? हर आदमी की जुबान पर यह कोरोना ही क्यों है? माना यह वायरस नया है। इसकी दवाई नहीं बनी, लेकिन मेरा सवाल तो यह है कि जिन बीमारियों की दवा बन चुकी है, क्या उनसे कोई मौत नहीं होती? क्या दवा बनना ही किसी बीमारी के खात्मे का आधार है? हां दवा बनने से घबराए मन को कुछ आराम मिल जाता है। एक दिलासा है, जो स्वत: मिल जाता है। बाकी दवा बनने के बावजूद न कभी बीमारी खत्म हुई और न उससे हताहत होने वाले मरीज। कोरोना की दवा भी देर-सवेर बन जाएगी। बहुत से देशों के वैज्ञानिक इसकी दवा खोजने में जुटे हैं। यकीनन वो एक दिन इसका कोई न कोई तोड़ निकाल लेंगे। लेकिन दवा खोजना इस बात की गारंटी नहीं है कि कोरोना दुनिया से विदा हो जाएगा, इसलिए यह मान कर चलिए, कोरोना रहेगा। लोग संक्रमित भी होंगे और हताहत भी। हां दवा आने से इसके संक्रमण की रफ्तार या इससे होने वाली मौतों का ग्राफ कम होने की उम्मीद जरूर की जा सकती है। आज आपको कोरोना से भी ज्यादा चकित करने वाले आंकड़ों से रुबरू करवाता हूं। 12 मार्च को भारत में कोरोना से पहली मौत हुई थी। 28 मई को यह पोस्ट लिखने तक मृतकों की संख्या 4531 हो गई। मतलब यह है कि करीब 76 दिन में यह 4531 मौतें हुई हैं। अगर इस आंकड़े का प्रतिदिन का औसत निकाला जाए तो यह करीब 59-60 के करीब आता है। हो सकता है यह आंकड़ा कल को बढ़ भी जाए लेकिन वर्तमान की हालत यही है। आपको पता है कि भारत में अन्य बीमारियों व हादसों से साल में करीब एक करोड़ लोगों की मृत्यु होती है। प्रतिदिन का आंकड़ा भी हजारों में आता है। सन 2017 के 'द लांसेट' के आंकड़ों की बात करें तो भारत में हर दिन टीबी एवं प्रेग्नेंसी के दौरान एक हजार से ज्यादा मौतें होती हैं। मलेरिया का उन्मूलन तो कभी का हो चुका है, उसकी तो दवा भी है लेकिन हमारे देश में मलेरिया से भी प्रतिदिन पांच सौ के करीब जान चली जाती हैं। एक करोड़ में सोलह प्रतिशत मौतें तो अकेले दिल की बीमारियों से हो जाती हैं। दूसरे नंबर पर सांस की बीमारी हैं। इसके बाद स्ट्रोक, कैंसर, डायरिया, प्रसव के पहले और बाद में, टीबी, सांस नली में इंफेक्शन व बुखार से भी लाखों में मौतें होती हैं। सड़क हादसों में हर साल पौने तीन लाख मौतें हो रही हैं। यह आंकड़ें तो तीन साल पहले के हैं, निसंदेह इन तीन सालों में वाहनों की संख्या भी बढ़ी है और सड़कों की दशा भी सुधरी है। एेसे में हादसों की संख्या बजाय कम होने के बढ़ी ही है। इन आंकड़ों को बताने का मकसद यही है कि कोरोना इतना खतरनाक नहीं है, जितना कि इसका डर है। माना इसकी दवा नहीं है लेकिन सावधानी, सुरक्षा व सतर्कता से इससे बचाव किया जा सकता है। यह बचाव करना होगा। आ बैल मुझे मार वाली कहावत चरितार्थ करोगे तो फिर भगवान ही मालिक है। और यह कहावत अन्य बीमारियों पर भी सटीक बैठती हैं। किसी भी बीमारी से पीडि़त व्यक्ति के लिए क्या अकेली दवा खाना ही पर्याप्त होता है? उसको कुछ परहेज भी करने होते हैं। जीवन-शैली व खान-पान में बदलाव करना होता है। यह सब भी तो लोग कर ही रहे हैं और जी रहे हैं तो कोरोना के मामले में इतने डरने की जरूरत क्यों? डरे नहीं लेकिन सावधान रहें। लापरवाही किसी भी सूरत में न बरतें। चिकित्सकों की गाइडलाइन के हिसाब से चलिए। कुछ खुद की भी गाइडलाइन बनाइए। यह मान के चलें कि अन्य बीमारियों की तरह कोरोना भी यहीं रहने वाला है अपने साथ। अपने आस-पास। बस अपने को सतर्क रहना होगा। ठीक इस चुटकुले की तरह, ' कोरोना भी बीवी की तरह है। पहले लगता था कंट्रोल हो जाएगी। फिर पता चलता है इसी के साथ जीने के आदत डालनी होगी।' मजाक अपनी जगह है लेकिन जीवन का फलसफा भी यही है। वाकई हमकों कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी ही होगी।
क्रमश 

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