Monday, August 17, 2020

सत्ता के सियासी संग्राम में दोनों बार सचिन से इक्कीस पड़े गहलोत

जोधपुर. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को उनके समर्थक समय-समय 'राजनीति का चाणक्य' व 'जादूगर' के उपनामों से नवाजते रहे हैं। गहलोत ने समय-समय पर आए सियासी संकटों को सुलझा कर इन उपनामों को चरितार्थ भी किया है। विशेषकर विधानसभा चुनाव एवं अब पायलट प्रकरण के बाद राजनीतिक गलियारों में उनकी सियासी सूझबूझ के ही चर्चे हैं। वैसे मौजूदा सियासी संकट की पटकथा विधानसभा चुनाव वितरण के समय ही लिख दी गई थी जब गहलोत एवं पायलट खेमे ने अपने-अपने समर्थकों को टिकट दिलाने एवं काटने की भरपूर कोशिशें की। जहां दोनों खेमे कामयाब नहीं हुए वहां बागी भी बड़ी संख्या में खड़े हो गए, लेकिन गहलोत खेमे से ही बागी ज्यादा जीते। कुल 13 निर्दलीय में 11 तो कांग्रेस के ही बागी थे और लगभग सभी गहलोत खेमे से ही थे, हालांकि बीच-बीच में कुछ निर्दलीय कभी सचिन तो कभी गहलोत के पक्ष में दिखाई दिए। राजनीतिक विश्लेषक इसकी प्रमुख वजह मंत्री पद न मिलना भी मानते हैं। बाड़ेबंदी की नौबत आने पर पहले निर्दलीय विधायक सरकार के साथ दिखे थे। वहीं दूसरी बाड़ेबंदी में सरकार निर्दलीयों को साथ लेने में सफल रही, लेकिन अपनी ही पार्टी के विधायकों को रोक नहीं पाए।

यह है निर्दलीय विधायकों का इतिहास
1.श्रीगंगानगर विधायक राजकुमार गौड़: गहलोत खेमे के हैं। टिकट न मिलने पर बागी हुए। वर्ष 2008 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट से चुनाव हार गए थे। अब भी गहलोत के साथ हैं।
2. बहरोड़ विधायक बलजीत यादव: गहलोत खेमे के हैं। कांग्रेस से टिकट मांगा था पर नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। 2013 में इन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था। तब यह चुनाव हार गए थे। अब गहलोत के साथ हैं।
3. किशनगढ़ विधायक सुरेश टांक: वसुंधरा राजे खेमे से रहे हैं। भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ा और जीते। मार्बल और ग्रेनाइट के व्यापारी भी हैं। अभी रुख साफ नहीं।
4. शाहपुरा विधायक आलोक बेनीवाल: गहलोत खेमे में हैं। बेनीवाल परिवार कट्टर कांग्रेसी रहा है। इनकी मां डॉ. कमला बेनीवाल दिग्गज नेता रही हैं। गहलोत से करीबी रिश्ते तभी से हैं। दो बार पराजित। इस बार निर्दलीय जीते।
5. बस्सी विधायक लक्ष्मण मीणा: गहलोत के करीबी माने जाते हैं। पिछला चुनाव पार्टी टिकट पर हार चुके हैं। एडीजी पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले दौसा लोकसभा सीट से 2009 में चुनाव लड़ा, हार गए।
6. कुशलगढ़ विधायक रमिला खडिय़ा: गहलोत खेमे से हैं। खुद व पति प्रधान रहे हैं। पति पिछला विस चुनाव मामूली अंतर से हारे थे। पति के निधन के बाद टिकट मांगा था, नहीं मिला तो बागी बनकर ताल ठोकी। अब भी गहलोत के साथ।
7. थानागाजी विधायक कान्ति मीणा: गहलोत खेमे के हैं। इस बार टिकट नहीं मांगा, निर्दलीय खड़े हुए। वर्ष 2003 में भी निर्दलीय विधायक थे। तब इन्होंने बीजेपी को समर्थन दिया था। गहलोत के साथ हैं।
8. खंडेला विधायक महादेव सिंह: गहलोत खेमे के हैं। पहले भी निर्दलीय जीतकर गहलोत को समर्थन दे चुके हैं। सीकर से सांसद और केन्द्र में मंत्री भी। छठी बार विधायक बने हैं। गहलोत के साथ हैं।
9.दूदू विधायक बाबूलाल नागर: गहलोत खेमे में हैं और भी उनके ही समर्थन में हैं। तीन बार कांग्रेस के टिकट से चुनाव जीते हैं। इस बार कांग्रेस के बागी बने तथा निर्दलीय जीते।
10. गंगापुर सिटी विधायक रामकेश मीणा: 2008 में बसपा टिकट पर जीतकर गहलोत सरकार में संसदीय सचिव बने। 2013 का चुनाव कांग्रेस से हारे। अब भी गहलोत के साथ।
11. महुवा विधायक ओमप्रकाश हुडला: राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ थे। 2013 में भाजपा से चुनाव जीते। किरोड़ी मीणा के विरोधी।
12.मारवाड़ जंक्शन विधायक खुशवीरसिंह: कांग्रेस के बागी होकर चुनाव लड़ा, निर्दलीय जीते, निष्ठा बदलती रही है। एक बार जिला प्रमुख और विधायक भी रहे हैं।
13. सिरोही विधायक संयम लोढा: अभी गहलोत खेमे में हैं। बागी होकर चुनाव लड़ा और जीते। पहले भी एक बार विधायक रहे हैं।

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राजस्थान पत्रिका के 17 जुलाई 20 के अंक में समूचे प्रदेश में प्रकाशित।

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