Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना-9

बस यूं.ही

कोरोना पर लिखी गई पहली कड़ी में मैंने इस बात का उल्लेख किया था कि आदमी आजकल फुरसत में है तथा दो-दो बार हाल जानने लगा है। इस बात का दूसरा पहलू भी है। कोरोना ने रिश्तों की नई परिभाषा लिखी है। आदमी की मृत्यु के बाद परिजनों में जो बदलाव आते हैं, उस तरह के बदलाव अब जीते-जी भी दिखाई दिए। समाचार पत्रों में ऐसी खबरेंं भी आई कि कोरोना संक्रमितों के प्रति परिजनों का व्यवहार कैसे बदला। विशेषकर उनके ठीक होने के बाद। एक शिक्षक के कोरोना संक्रमित होने तथा उसके बाद ठीक होने का काल्पनिक घटनाक्रम तो पिछले दिनों सोशल मीडिया पर जबरदस्त वायरल हुआ। कहने का मतलब यही है कि कोरोना के चक्कर में अपने-पराये का अंतर भी लोगों ने देख लिया। श्री तुलसीदासजी की चौपाई 'धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखि अहिं चारी।' एेसा लगता है शायद इसी तरह के हालात के लिए ही लिखी गई थी। मैं छोटा था, तब पापाजी एक भजन गुनगुनाया करते थे। आज भी उस भजन की कुछ पंक्तियां मुझे याद है, लेकिन पापाजी की स्मृति में यह भजन लगभग गायब सा हो गया है। भजन के बोल हैं, 'बिना, राम रघुनाथ भजन तेरा कोई नहीं संगी। मात कहे मुझे लाडूड़ा करा दे, त्रिया कह मुझे गहणो, बहनल कह मुझे अब मुकला दे, जन्म-जन्म को लहणो, अपना कोई नहीं संगी।' इसी तरह भजन का अगला अंतरा है, जिसमें बताया गया है कि आदमी के मरने के बाद क्या होता है, ' जन्म जन्म तेरी माता रोवे, बहनल बार-त्योहार, तेरह दिनां तेरी त्रिया रोवे फेर करे घर बार, अपना कोई नहीं संगी, भजन बिन तेरा कोई नहीं संगी।' सच में इस गीत के बोल भी इस कोरोना काल में चरितार्थ हो गए। रिश्ते मजबूत भी हुए तो रिश्तों में गिरावट भी आई। यूं कह सकते हैं, कोरोना ने रिश्तों को नए तरीके से परिभाषित कर दिया। हर अपना व पराया संदिग्ध हो गया। कभी कभी तो डर इतना हावी हो जाता है कि आदमी खुद को ही संदिग्ध मान बैठता है। खुद से ही दूरी बना रहा है। खुद ही सावधानी बरत रहा है। यह एक तरह का डर ही तो है जो सुबह से लेकर शाम तक जेहन में चलता रहता है। कोरोना फोबिया के मामले तक सामने आने लगे हैं। फोबिया को दुर्भीति भी कहते हैं। यह एक प्रकार का मनोविकार है, जिसमें व्यक्ति को विशेष वस्तुओं, परिस्थितियों या क्रियाओं से डर लगने लगता है। यानि उनकी उपस्थिति में घबराहट होती है जबकि वे चीजें उस वक्त खतरनाक नहीं होती है। यह एक प्रकार की चिन्ता की बीमारी है। इस बीमारी में पीड़ित व्यक्ति को हल्के अनमनेपन से लेकर डर के खतरनाक दौरे तक पड़ सकते हैं। खैर,कोरोना ने भले ही अन्य बीमारियों का आंकड़ा कम किया हो लेकिन यह फोबिया वाला बढ़ रहा है। हर जगह कोरोना को लेकर चिंता और चर्चा है। गांव की चौपाल से लेकर शहर तक कोरोना है। यहां तक कि चाकी- चूल्हे की चिंता के समकक्ष कोरोना की चिंता है।
क्रमश:

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