Monday, August 17, 2020

यह सोलहवां भी है कमाल-2

बस यूं ही

सोलह संस्कार के बाद बात आती है सोलह श्रृंगार की। राजस्थानी में इसको सोलह सिणगार भी कहते हैं। सोलह श्रृंगार का जिक्र आते हैं मुझे मारवाड़ी गीत 'गौरड़ी कर सोलह सिणगार चाली पाणी न पणिहार'... बरबस ही याद हो गया। चर्चित फिल्मी पाकीजा का गाना 'ठाड़े रहियो ओ बांके यार' में भी सोलह श्रृंगार का जिक्र है। इसी गीत में नायिका कहती है 'मैं तो कर आऊं सोलह श्रृंगार रे, ओ बांके यार रे' वैसे ईमानदारी की बात यह है सोलह श्रृंगार की चर्चा तो अमूमन सभी ने सुनी होगी लेकिन किसी से इनके नाम पूछ लिए जाएं तो बहुत कम ही बता पाएंगे। चूंकि श्रृंगार महिलाओं से जुड़ा विषय है लेकिन शायद ही कोई महिला होगी जो सोलह श्रृंगार के बारे में पूरा व सही बता पाए। श्रृंगार वैसे प्रत्यक्ष रूप से पुरुषों से संबंधित नहीं हैं। हां परोक्ष रूप से जरूर जुड़ा हुआ मान सकते हैं। अपवाद के रूप में केरल का एक मंदिर जरूर शामिल कर सकते हैं, जहां पुरुषों भी महिलाओं के समान साड़ी पहनकर पूजा पद्धति में शामिल होते हैं। केरल के कोट्टनकुलंगरा में स्थित श्रीदेवी का मंदिर हैं जहां पर मान्यता है कि पुरुष महिलाओं के समान साड़ी पहनकर पूरा साज श्रृंगार करके यदि पूजा करते हैं तो उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती है। इस मन्दिर में पुरुषों को बिना श्रृंगार के एंट्री नहीं मिलती है। इस मंदिर में आने वाले सभी पुरूष वैसे तो बाहर से ही श्रृंगार करके आते हैं लेकिन उसके बावजूद यदि कोई पुरुष कहीं बाहर से यहां आ रहा है तो उसके लिए मंदिर परिसर में मेकअप रूम है जहां वह श्रृंगार कर सकते हैं। और इतना ही नहीं पुरूष अपनी मां ,बहन और अन्य महिला का मेकअप में सहयोग भी ले सकते हैं। खैर, अपवाद तो अपवाद है, हां सोलह श्रृंगारोंकी खोजबीन के लिए गूगल बाबा का सहारा लेना पड़ा। खोजा तो काफी कुछ सामग्री मिली। आप भी देखिए।
अंगशुची, मंजन, वसन, मांग, महावर, केश।
तिलक भाल, तिल चिबुक में, भूषण मेंहदी वेश।।
मिस्सी काजल अरगजा, वीरी और सुगंध।
अर्थात् अंगों में उबटन लगाना, स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, मांग भरना, महावर लगाना, बाल संवारना, तिलक लगाना, ठोढी पर तिल बनाना, आभूषण धारण करना, मेंहदी रचाना, दांतों में मिस्सी, आंखों में काजल लगाना, सुगंधित द्रव्यों का प्रयोग, पान खाना, माला पहनना, नीला कमल धारण करना। इस तरह से यह सोलह श्रृंगार हैं। यह सब तो ठीक है फिर भी आजकल जमाना तर्क-वितर्क एवं कुतर्क का भी है। कोई पूछ ले कि आज के समय में इनकी प्रासंगिकता या मतलब क्या है। तो सुनिए, सोलह श्रृंगार के पीछे भी मनोविज्ञान छिपा है। सोलह श्रृंगार घर में सुख और समृद्धि लाने के लिए किया जा है। ऋग्वेद में भी सोलह श्रृंगार का जिक्र किया गया है, जिसमें कहा गया है कि सोलह श्रृंगार सिर्फ खूबसूरती ही नहीं भाग्य को भी बढ़ाता है। महिलाएं मां भगवती को खुश करने के लिए इस पावन पर्व पर यह श्रृंगार करती हैं। वैसे सोलह श्रृंगार दुल्हन के लिए ज्यादा उपयोग में आता हैं। अवसर विशेष के अलावा शायद ही किसी महिला के लिए सोलह श्रृंगार रोजमर्रा का हिस्सा होगा। वैसे पिछले दिनों एक जुमला बड़ा चर्चित हुआ था। पति अपनी पत्नी से कहता है अब श्रृंगार सोलह की बजाय सत्रह होंगे। पत्नी पूछती है वह कैसे तो पति कहता है कि हेयर डाई को भी अब श्रृंगार में जोड़ लिया गया है। बात भले मजाक की हो लेकिन यह सत्रहवां श्रृंगार ही आजकल सोलह श्रृंगारों पर भारी पडऩे लगा है।
क्रमश:

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