Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना-15

बस यूं.ही

शनिवार को समाचार पत्रों में खबर थी कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ठेकों पर भीड़ घटाने के लिए राज्य सरकारों को होम डिलीवरी पर विचार करना चाहिए। उधर मद्रास हाइकोर्ट ने तो तमिलनाडु में शराब की दुकानें बंद करने का आदेश दे दिया। कोर्ट ने कहा होम डिलीवरी की छूट रहेगी। इन दो तरह के फैसलों से थोड़ा असमंजस तो सभी को हुआ होगा। इधर, इन दो फैसलों के साथ सोशल मीडिया पर भी एक मैसेज भी वायरल था, हालांकि उसकी पुष्टि मैं नहीं करता, लेकिन मैसेज वायरल है तो चर्चा लाजिमी है। मैसेज था, 'नैनीताल में मुफ्त राशन लेने वालों के उंगलियों पर यह कह कर स्याही लगा दी गई कि यह सरकार का नया नियम आया है, उसके बाद शराब के ठेकों पर इसकी सूचना दे दी गई कि स्याही लगी उंगलियों वालों को दारू न दें, अलबत्ता पुलिस उन्हें तत्काल खोपचे में ले ले। हुआ भी यही जैसे ही लोग ठेके पर पहुंचे पुलिसकर्मियों ने इन्हें टांग लिया कि आप लोगों के पास राशन खरीदने के पैसे नहीं हैं और शराब दोगुने दाम पर खरीद रहे हो। तत्काल प्रभाव से सभी के नाम नोट करके संबंधित दुकानों पर दे दिए गए कि इन लोगों का राशन बंद किया जाए। डंडे पड़े सो अलग। कायदे से ऐसी व्यवस्था हर जगह होनी चाहिए।' वाकई बात में दम है। और सोचने वाली बात भी। जिसके पास राशन के लिए पैसे नहीं वो शराब के लिए पैसे कहां से व कैसे ला रहा है। एेसे में राशन के बदले शराब खरीदने की आशंका बलवती हो उठती है। एेसा छत्तीसगढ़ में मैंने देखा भी है। वहां सरकार गरीबों को बेहद सस्ती दर पर चावल उपलब्ध कराती है। लोग सरकारी चावल को बाजार में महंगे दाम पर बेचकर उसकी शराब पी जाते थे।
खैर, शराब की ब्रिकी से व्यापारी भी नाराज हैं, क्योंकि उनकी दुकानें अभी नहीं खुल पाई हैं। व्यापारियों की इस दशा पर भी बाकायदा जुमले बनने शुरू हो चुके हैं। गौर फरमाइएगा, 'कोरोना भी सरकारी हो गया, बिजली बिल, निगम टैक्स, बैंक, वाइन शॉप में नहीं फैलेगा, केवल व्यापारियों की दुकान से फैलेगा।' व्यापारियों की भी अपनी पीड़ा है और नौकरीपेशा की भी। विशेषकर प्राइवेट सेक्टर वाले भी कोरोना की मार से अछूते नहीं रहे। कल दो दोस्तों से व्हाट्सएप पर वीडियो कॉल हो रही थी। प्राइवेट जॉब करने वाले एक मित्र ने कहा कि यार इस बार वेतन पूरा नहीं मिला, खर्चे पूरे कैसे होंगे। आधा वेतन भी नहीं मिला। पहले की बात काटते हुए दूसरा बोला यार, तुमको कुछ तो मिला है। यहां तो इलेक्ट्रीकल आइटम की दुकान है। करीब दो माह से बंद है। सोचो हम भी तो गुजारा कर रहे हैं। वाकई मुझे प्राइवेट जॉब वाले से ज्यादा तरस उस दुकानदार मित्र पर आया। जीविकोपार्जन के लिए उसके पास सिवाय किसी से उधार लेने के और कोई विकल्प भी नहीं बचा। इस बातचीत से भी एक सबक मिला। सबक यही कि कोरोना काल में या तो किसी से तुलना करो ही मत। और अगर फिर भी करनी पड़े तो हमेशा नीचे वालों से करो। मुझे याद है आज से बीस साल पहले कम वेतन वाले साथी गीता के सार को वेतन से जोड़कर पेश करते थे, तब हंसी के फव्वारे छूटते थे। गीता का सार यही कि 'क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है। जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है। तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया। खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है। परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो ।' खैर, गीता का सार मौजूदा माहौल पर भी सटीक बैठता है। गीता सार की तर्ज पर अब कोरोना सार भी बन चुका है। इसको आधुनिक गीता सार भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं। कल एक जगह पढ़ा तो खुद को रोक नहीं पाया, लिहाजा आप सब से साझा कर रहा हूं। लिखा था, 'हम आर्थिक चुनौतियों के दौर में हैं। व्यापार या काम धन्धा ठप्प हो गया। बहुत से लोगों की नौकरी चली गई होगी, जा सकती है। सैलरी कम हो गई होगी या हो सकती है। याद रखना कि यह हालात आपकी वजह से नहीं आए हैं। आप ख़ुद को दोष न दें। न हार, अपमानित महसूस करें। रास्ता नजऱ नहीं आएगा लेकिन हिम्मत न हारें। कम से कम खर्च करें।अपनी मानसिक परेशानियों को लेकर अकेले न रहें। दोस्तों से बात करें। रिश्तेदारों से बात करें। किसी तरह का बुरा ख्याल आए तो न आने दें। इस स्थिति से कोई नहीं बच सकता। धीरे धीरे खुद को पहाड़ काट कर नया रास्ता बनाने के लिए तैयार करें।अपनी भाषा या सोच खऱाब न करें। कुछ भी हो जाए, जीना है, कल के लिए। धीरज रखें। कम में जीना है। यह वक्त आपका इम्तिहान लेने आ गया है। भरोसा रखिए जब आपने एक बार शून्य से शुरू कर यहां तक आए है तो एक और बार शून्य से शुरू कर आप कहीं से कहीं पहुंच जाएंगे। बस यूं समझिए कि आप लूडो (सांप सीढ़ी) खेल रहे थे। 99 पर सांप ने काट लिया है लेकिन आप गेम से बाहर नहीं हुए हैं। क्या पता कब सीढ़ी मिल जाए। थोड़े दिन झटके लगेंगे, उदासी रहेगी लेकिन हँसते-मुस्कराते रहिए। सदैव सकारात्मक रहें।' अब ठंडे दिमाग से सोचिए अगर कोरोना न आता तो क्या हम आधुनिक गीता सार से परिचित होते? हां कोरोना सार में सदैव सकारात्मक रहने की सीख जरूर काम की है। सकारात्मक हैं तभी तो इन प्रतिकूल परिस्थितियों में हास्य, व्यंग्य-विनोद सूझ रहा है। बाकी दर्द तो उन सब को होता ही है, जिसको चोट लगती है। जिसको चोट नहीं लगती है वो दर्द की न आह समझ सकता है न कराह। मां एक कहावत अक्सर कहा करती थी जो इस माहौल में अक्सर याद आ जाती है।, 'जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई' अर्थात् जब तक खुद को दर्द ना हो तब तक दूसरे के दर्द की तीव्रता का एहसास नहीं हो पाता है।
क्रमश:

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