Monday, August 17, 2020

नजीर पेश करें नेता

टिप्पणी

राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा तथा लोकसभा सांसद हनुमान बेनीवाल के बाद केन्द्रीय मंत्री कैलाश चौधरी व अर्जुनराम मेघवाल का कोरोना पॉजिटिव आना यह साबित करता है कि वैश्विक महामारी कोरोना किसी की सगी नहीं है। यह सभी के प्रति समभाव रखती है। यह छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब, नेता-जनता आदि में किसी तरह का कोई भेद नहीं करती है। यह ऐसा मर्ज है जो जाने-अनजाने में जरा सी चूक करने वाले को अपनी चपेट में लेता है। भले ही वह कोई भी हो। प्रदेश के चार सांसदों के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद यह आम धारणा भी ध्वस्त हो गई होगी कि कोरोना केवल आमजन या कमजोर लोगों पर ही वार करता है। वैसे इस रोग से बचाव के लिए जो बातें शुरू से कही जा रही हैं, वे आज भी प्रासंगिक है। मतलब उचित दूरी रखें तथा सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करें। दरअसल, जनप्रतिनिधियों का सीधा जुड़ाव जनता से होता है। जनप्रतिनिधियों का जनता के बीच जाना या जनता का उनके पास चलकर आना आम बात है। यह सब सामान्य परिस्थितियों में तो चल जाता है, लेकिन मौजूदा समय में मेल-मुलाकातों का दौर किसी खतरे से खाली नहीं है। जाहिर सी बात है पॉजिटिव आने वाले जनप्रतिनिधियों ने बचाव की नसीहतों को न केवल दरकिनार किया बल्कि सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करके आम जनता का जीवन भी खतरे में डाला। कोरोना पॉजिटिव आए नेताओं के संपर्क में आए लोगों की मनोस्थिति अब कैसी होगी? वो किस तरह की दुविधा से गुजर रहे हैं? इसकी कल्पना मात्र से ही मन अनिष्ट की आशंका से सिहर उठता है।
खैर, कोरोना के फैलाव की गति को धीमा करने के लिए देश-प्रदेश में कई तरह के उपाय किए जा रहे हैं। जहां-जहां संक्रमितों की संख्या ज्यादा हैं, वहां लॉकडाउन भी होने लगा है। कहीं लगातार सात दिन तो कहीं सप्ताह में दो बार कर्फ्यू तक लगाया जाने लगा है। गौर करने लायक बात है कि तमाम तरह के यह उपाय/ पाबंदियां आमजन को सुरक्षित रखने के लिए ही हैं। कोरोना से बचाव के लिए ही हैं। और इन सब से नेता या जनप्रतिनिधि भी अलग नहीं है। वो भी इन उपायों/पाबंदियों की जद में आते हैं। बेहतर होता ऐसे प्रतिकूल हालात में जनप्रतिनिधि भी सुरक्षा एवं बचाव की नजीर पेश करते। खुद चलाकर कोई अनुकरणीय उदाहरण जनता के सामने रखते। वैसे भी मौजूदा समय जनता के बीच जाकर उनके अभाव-अभियोग सुनने तथा दुख-दर्द जानने का नहीं है। अभी तो सर्वाधिक जरूरत खुद को सुरक्षित कैसे एवं किस तरह रखा जाए, इस दिशा में सोचने एवं काम करने की जरूरत है।
बहरहाल, जीवन है तो कल है, इस बात पर जनप्रतिनिधियों को भी अमल करना चाहिए। वैसे भी जनप्रतिनिधियों का काम जनता को संकट में डालने का नहीं होता। उम्मीद की जानी चाहिए कि जनप्रतिनिधि भी उन प्रतिबंधों एवं नसीहतों की उसी तरह से पालना करेंगे जैसे कि आमजन कर रहे हैं। उनको अभी सार्वजनिक कार्यक्रमों से परहेज करना चाहिए। कहा भी गया है जान है तो जहान है।

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राजस्थान पत्रिका के 10 अगस्त 20 के अंक में जैसलमेर, बाडमेर, बीकानेर,श्रीगंगानगर व.हनुमानगगढ संस्करण में.प्रकाशित ।

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