Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना- 48

बस यूं.ही
ताना मारने या तंज कसने का इतिहास पुराना है। हालांकि कई बार मजाक भी बड़ी लड़ाई की वजह बन जाता है। मां भी कहा करती थी, राड़ की जड़ हांसी, और रोग की जड़ खांसी। राड़ मतलब लड़ाई की वजह हंसी ही होती है और रोग की जड़ खांसी। अक्सर आपने परिचितों एवं दोस्तों के बीच सुना होगा कि मजाक इतना करो जितना सहन हो। या मजाक सहन नहीं होता तो मजाक मत किया करो। खैर, बात ताने की थी। वाकई ताना जो है ना वो अंदर तक मार करता है। ताने का घाव तलवार से भी घातक माना गया है। याद होगा द्रोपदी के एक ताने की वजह से तो महाभारत जैसा युद्ध हो गया था। इतना सब है फिर भी ताने जीवन के अभिन्न अंग हैं। हर काल खंड में तानों का जिक्र कहीं न कहीं आया ही है। ऐसे में कोरोनाकाल भला तानों से अछूता कैसे रहता। 2020 का नया ताना आया है 'अरे जितने लोग तेरी शादी में आए हैं ना उतने तो हमारी शादी में वेटर आए थे।' यही तो है ताना। एक तरह से दुखती रग पर हाथ धरना और अगले को कुछ उल्टा सीधा बोलने पर मजबूर करना।
देखिए अब यह नसीहत भी तो जले पर नमक छिड़कने के जैसी ही है। 'रिश्तेदार के यहां किसी शादी में यदि आपको निमंत्रण नहीं आता है तो समझ जाएं कि टॉप 50 रिश्तेदारों में आपका नंबर नहीं है। इसलिए भ्रम से बाहर आएं और अपना व्यवहार व आदतें सुधारें। बहरहाल, अब गुणग्राहकों के सुझाव भी आने लगे हैं। वो विषय भी सुझाने लगे हैं। चूंकि कोरोना से अछूता कुछ भी नही बचा है, इसलिए जितना भी लिखो, जिस भी विषय पर लिखो कम है। कोरोना ने सभी को मार दी है। कोई इस चोट को चुपचाप सहला रहा है तो कोई चिल्लाकर अपने पीड़ा कम करने की जुगत में है। कहने का सार यही है कि मार सब पर पड़ी है। इसलिए छोडऩे या शामिल करने की बात कोई मायने नहीं रखती। वो कल ही एक परिचित कह रहा था कि जब तक आपके घर में राशन है और अकाउंट में पैसे हैं, कोरोना का डर आपको तब तक ही लग रहा.है। जिस दिन राशन और बैंक बैलेंस खत्म हो जाएगा उस दिन कोरोना का डर भी खत्म हो जाएगा। वाकई यह गहरी बात है। डर खत्म होने का आशय है कि आदमी भूख के आगे सबको भूल जाएगा। वैसे भी भूख से बड़ी कोई बीमार नहीं होती। पूर्व की पोस्ट में भुखमरी एवं भूखे आदमी के गद्दार बनने की बात लिख चुका हूं। खैर, अब लॉकडाउन की पाबंदियां लगभग खत्म हो चुकी हैं। जो काम झटके से बंद हुए थे वो धीरे-धीरे खुल रहे हैं। करीब दो माह के बाद अब तो भक्त भी भगवान के दर्शन कर सकेंगे। हां यह बात जरूर है कि सरकार ने इतना लंबा लॉकडाउन करके हम सबको आत्मनिर्भर बना दिया है। अब कोरोना से अपने को ही बचाव करना है या लडऩा है। कल ही तो बीकानेर से एक परिचित ने मैसेज भेजा था कि केंद्र सरकार (पीएम) ने अपना जिम्मा राज्य सरकार (सीएम) पर छोड़ दिया। राज्य सरकार (सीएम) ने जिला कलक्टर (डीएम) पर, जिला कलक्टर (डीएम) ने नगर प्रशासन पर, नगर प्रशासन ने दुकानदारों पर, दुकानदारों ने लोगों पर और लोगों ने खुद को राम भरोसे छोड़ दिया। और इस तरह कोरोना से मुकाबला करने के लिए भारत आत्मनिर्भर हो गया है। आत्मनिर्भरता का मतलब यही तो है कि अपना बचाव खुद करो। मुझे तो लॉकडाउन लगा उससे ज्यादा चुनौतीपूर्ण माहौल अब लग रहा है जब लॉकडाउन हट रहा है। और यह लॉकडाउन एेसा है कि सहा नही जाता है। यही दोहरा संकट शायद सरकार के साथ होगा, इसलिए गेंद जनता के पाले में फेंक दी। अब यह तो जनता पर निर्भर है कि वो उस गेंद से खेले, देखे या गेंद को घर के किसी कोने में सजा कर रख दे। इसीलिए अब किसी भी अव्यवस्था पर, किसी भी लापरवाही पर, किसी भी मौत पर या संक्रमण फैलने पर सरकार को गरियाना छोडऩा होगा, क्योंकि सरकार कुछ कर ही नहीं रही। संक्रमित वही होगा, जो लापरवाही बरतेगा या तय गाइडलाइन की पालना नहीं करेगा। इसलिए गुनाह की भागीदार अब सिर्फ जनता होगी।
क्रमश:

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