बस यूं ही
रात को बच्चों से खेती के काम आने उपकरणों के नाम पूछ रहा था, वो नाम सुनकर हंस रहे थे, क्योंकि उनका खेती से कभी वास्ता नहीं पड़ा। एेसी कहानी हमारे बच्चों की नहीं है, बहुतों की है। खैर, कोरोना के चलते जहां हर काम धंधा प्रभावित हुआ है, वहीं खेती ही एेसा क्षेत्र है जिसने थोड़ा बहुत संबल प्रदान किया है। मैंने भी पत्रकारिता में आने से पहले स्कूल व कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ खेती से जुड़ा हर काम किया है, लिहाजा खेती से संबंधित उपकरण हो काम हो या घास। मुझे लगभग सभी याद हैं। बुजुर्ग व उम्रदराज लोगों को यह नाम सुनकर यकीनन अपना अतीत आ जाएगा। वैसे नई पीढी के परिचय के लिए इन शब्दों को लिख रहा हूं। किसी का अर्थ समझ नहीं आए तो कमेंट में पूछ सकते हैं। सूड़, पाड़, मेज, बिजाई, हाली, हल, कुस, पुराणी, रापड़ी, दंराती, दंताळी, खुरपा, ओरणा, मोरी, भिजोटियो, निनाण, लावणी, बाली, फळी, बगर, कूकू, फाल, पोटा, सीटा, चेपो, पूळा, पंजोळ, झूळा, न्याहण, फांक, तूंतड़ा, तूड़ा, छानी, फंलूसी, जेट, गैरो, लाटो, मिरड़ो, जांटी खेई, लूंग, छड़ी, जेळी, कुहाड़ा, कस्सी, कसियो, जेवड़ी, जेवड़ो, भरोटी, मंडासी, आदि प्रमुख हैं। इसी तरह कुछ घास के नाम हैं यथा, चिलवो, घूंदरो, काकलेर, साठो, दूब, डाब, डचाब, लूणकार, गूगा जांटी, जाड़ा, भांखड़ी, भरूंट, चिलवो, जाड़ो, चलकोई आदि नाम हैं। तो आप भी लगाइए दिमाग और आपको भी कुछ याद आ रहा है तो लिखते जाओ।
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