Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना-44

बस यूं.ही

' रेलवे में भर्ती निकली है। ट्रेन के आगे दौड़ना है, रास्ता बताने के लिए ताकि भटक न जाए।' रेल पर पोस्ट लिखकर थमा ही था कि एक परिचित ने यह मैसेज भी भेज दिया। वैसे कह चुका हूं कि हमारे देश में हर माहौल के लिए कुछ न कुछ चुटकुला बन ही जाता है। रेल भला कैसे अछूती रहती। खैर, आज एक पोस्ट देखी जिसमें अ से अनार की तर्ज पर पूरी कोरोनावली बनाई हुई थी। कोरोना वायरस से बचाव की कहानी वर्णमाला की जुबानी शीर्षक से यह पोस्ट
थोड़ी हटकर लगी है, लिहाजा आप सब से साझा कर रहा हूं। अ- अपना ख्याल रखें। आ-आप घर पर रहें। इ- इधर-उधर बेवजह ना घूमें। ई-ईश्वर पर भरोसा रखें। उ- उम्मीद पर दुनिया कायम है। ऊ-ऊंटपटांग कामों से बचें। ऋ-ऋणात्मक न सोचें। ए- एकांत का आनंद लें। ( एे का कॉलम खाली) ओ-ओझा (झाड़फूंक) से बचें। औ-औषधि समय पर लें। अं- अंत भला ही होगा। क-कोरोना से न घबराएं। ख-खबरदार बने रहें। ग-गमगीन माहौल से बचें। घ- घर से बिना काम के
न निकलें। च- चतुराई से काम करें। छ-छल-कपट से बचें। ज-जल साबुन से हाथ धोते रहें। झ-झगड़ा न करें। ट-टहलें केवल अपनी छत्त या आंगन में। ठ-ठहर जाएं खुद के पास। ड-डर के आगे जीत है। ढ-ढकोसलों से स्वयं को बचाएं। ण- णमोकार मंत्र का जाप करें। त-तरकीब लगाकर बाहर न निकलें। थ- थूकें ना सड़कों पर। द-दयालुता अपनाएं। ध-धैर्य बनाएं रखें। न- नशीले पदार्थों के सेवन से बचें। प-पशु पक्षियों का ध्यान रखें। फ-फर्जी जानकारी न फैलाएं। ब-बुजुर्गों का ध्यान रखें। भ-भजन कीर्तन करें। म-मास्क का प्रयोग करें। य-योग करे, निरोग रहें। र- रवि अर्थात सूर्य की किरणें अवश्य लें। ल-लचीलापन अपनाएं। व-वचन-सोशल डिस्टेंसिंग का लें। श-शराब से दूर रहें। ष-षडयंत्र से दूर रहें। स-सकारात्मक सोच रखें। ह- हल तलाशें न कि समस्या। क्ष- क्षेत्र के दायरें में रहें। (त्र का कॉलम खाली) ज्ञ-ज्ञानी बनें, अज्ञानता से बचें। वर्तमान समय में इस वर्णमाला की प्रासंगिकता है। इसको जेहन में रखना चाहिए। वैसे कोरोना के प्रति सरकारी रुख से लगता है कि अब सुरक्षा की जिम्मेदारी आदमी को खुद को उठा लेनी चाहिए। सरकार का इशारा भी यही है, क्योंकि हालात पहले से अनुकूल अभी नहीं हुए हैं, और न ही निकट भविष्य में होने की उम्मीद। हां इस लॉकडाउन के बहाने हम सब ने यह जान-समझ जरूर लिया है कि अब हमको किस तरह से रहना है व कैसे जीना है। हालात अनुकूल न होने से एक पोस्ट की याद आ गई। लेखक का तो पता नहीं लेकिन जिसमें भी लिखा है, उसने बात तार्किक तरीके से समझाने की कोशिश की है। आप भी समझिए।
'सरकार कह रही है कि लॉकडाउन नहीं होता तो अब तक 14 लाख से लेकर 29 लाख तक लोग संक्रमित हो चुके होते और 37 हजार से लेकर 78 हजार तक लोग कोरोना के संक्रमण से मर चुके होते। सरकार की बात मान लेते हैं। अब सोचिए कि जब संख्या लॉकडाउन के समय छह सौ के लगभग थी तब सरकार की गणना कहती है कि अगर लॉकडाउन नहीं होता तो अब तक मरने वालों की संख्या 37 हजार से 78 हजार तक होती। अब संख्या सवा लाख है और 80 प्रतिशत लॉकडाउन हटा लिया गया है फिर ? सरकार की गणना के हिसाब से ही दो-महीने बाद मृतकों की संख्या क्या होगी? दिल डूब रहा है? ठहरिए सरकार ने आपकी तसल्ली के लिए कुछ दूसरे आंकड़े भी दिए हैं। नीति आयोग के डॉ वी के पॉल ने कहा है कि जब लॉकडाउन लगा था तब संक्रमितों की संख्या 3.4 दिन में दोगुनी हो रही थी अब संक्रमितों की संख्या 13.3 दिन में दोगुनी हो रही है। अब यह मत पूछिए कि पहले दोगुनी होने का मतलब 624 से 1248 होना था और अब दोगुनी होने का मतलब सवा लाख से ढाई लाख होना है। संक्रमितों की जिस बेस संख्या पर अब यह गणना होगी, उसमें 1,995 गुना बढ़ोतरी हुई है जबकि संख्या के दोगुना होने के दिनों में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है। इसी प्रकार सरकार ने मरने वालों की संख्या का हिसाब भी दिया है। पहले 3.13 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हो रही थी और अब 3.02 प्रतिशत की मृत्यु होगी। यानी पहले जब संक्रमितों की संख्या एक हजार थी तब 313 लोगों की मौत हो रही थी और अब जब संख्या एक लाख हुई तब मात्र 3020 लोगों की मौत ही होगी। तसल्ली कर लें? तो 500-600 संक्रमित लोगों की संख्या के समय लॉकडाउन कर के सरकार ने कम से कम 37 हजार और अधिक से अधिक 78 हजार लोगों की जान बचा ली। अब डेढ लाख से ऊपर संक्रमित लोगों की संख्या के समय एफ्फेक्टिवली लॉकडाउन हटाने की वजह से कितने लोगों की जान को खतरा होने वाला है? सरकारी आंकड़ा विशेषज्ञों ने जिस भी गणितीय मॉडल पर गणना की है, उसी मॉडल पर गणना करने की कोशिश कीजिए। सरकार ने जिन सुधारों (संख्या दुगुनी होने के दिनों आदि) के बारे में कहा है उसे फेस वैल्यू पर ही लीजिए और उन्हें 'फैक्टर इन, कर के गणना कीजिए। इसलिए दिमाग मत लगाइए। सरकार जो कह रही उस पर आंख मूँद कर भरोसा कर लीजिए। एक फुटनोट - ऊपर नीति आयोग के जिस डॉ वी के पॉल का जिक्र आया है, उन्होंने अप्रैल के मध्य में कहा था कि 16 मई के बाद कोरोना के नए मरीज आने बंद हो जाएंगे।' यह तो था पोस्ट का मैटर, खैर अब यह मान के चलिए कि अपनी सुरक्षा खुद को ही करनी है। सरकार के भरोसे नहीं रहना है। और बिना किसी पर निर्भर रहे खुद को सुरक्षित रखना है। और यह भी तो एक तरह की आत्मनिर्भरता ही हुई ना? हुई या नहीं? आप खुद ही सोचिए।
क्रमश

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