Monday, August 17, 2020

समानताओं का संयोग

बस यूं ही

डेढ़ दशक से ज्यादा समय से करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले क्रिकेटर महेन्द्रसिंह धोनी ने कल स्वाधीनता दिवस के दिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। विश्व कप में न्यूजीलैंड से हार के बाद धोनी की क्रिकेट से दूरी से उनके संन्यास के कयास लगने शुरू हो गए थे। निसंदेह धोनी के प्रशंसकों में मैं भी शामिल हूं। उनके खेल के साथ-साथ हमनाम होने के कारण भी। यह अलग बात है कि जब धोनी भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बने थे, उससे ठीक पांच साल पहले मैंने नियमित क्रिकेट खेलना छोड़ दिया था। फिर भी कुछ समानताएं दिखाई दी, जिनके वजह से मैं धोनी का मुरीद होता गया। समानताओं के इन संयोगों के बारे में बहुत बार सोचा है लेकिन आज लिखने का मन किया। तो सबसे पहले चर्चा नाम ही करते हैं, दोनों ही महेन्द्रसिंह। धोनी का सरनेम धोनी और मेरा शेखावत। संयोग देखिए बचपन में बड़े भाईसाहब मुझे धानम नाम से पुकारते थे। सेना से जुडऩे का सपना मैंने भी देखा, दो तीन बार कोशिश भी की लेकिन नहीं जा पाया। इसी तरह से धोनी का सपना भी सेना थी। क्रिकेट में लोकप्रिय होने के बाद धोनी का सपना पूरा हो गया। उनको सेना में मानद लेफ्टिनेंट कर्नल की उपाधि से नवाजा गया। बात क्रिकेट की करें तो विकेटकीपिंग एवं कप्तानी के मामले में भी संयोग जुड़े है। कॉलेज टीम और गांव की टीम की कप्तानी मैंने लंबे समय तक की है। स्टम्पिंग के मामले में धोनी के आसपास कोई नहीं है। मुझे भी अपनी विकेटकीपिंग का वह दौर याद आता है, जब बगड़ के खेल मैदान पर एक मैच में तेज गेंदबाजों के समक्ष मैंने विकेट से चिपक कर न केवल कीपिंग की है बल्कि तेज गेंदों पर फ्रंट फुट पर खेलने वाले पांच बल्लेबाजों को स्टम्पिंग के माध्यम से पैवेलियन का रास्ता भी दिखाया था। उस मैच के पांचों स्टम्पिंग आज भी मेरे जेहन में ताजा हैं। धोनी को भी अक्सर मध्यम गति के तेज गेंदबाजों के समक्ष विकेट से सटकर कीपिंग करते देखा गया है। इस तरह की कीपिंग एक विशेष रणनीति के तहत की जाती है। इसमें बल्लेबाज पर मनोवैज्ञानिक दवाब भी बढ़ता है। विकेट के पीछे गेंदबाजों के साथ-साथ खिलाडि़यों को प्रोत्साहित करने के लिए बोलने की आदत मेरी भी रही है। धैर्य एवं आक्रामकता का जो सम्मिश्रण धोनी की बल्लेबाजी में रहा, कमोबेश वैसी ही शैली मेरी थी। खेलने का अंदाज भी काफी कुछ धोनी में मिलता।
छक्के मारने के मामले में उस दौर में मेरा नाम भी चर्चित था। बगड़ तिराहे के पास जो अस्पताल है, आजकल शायद संस्कृत कॉलेज बन गया है। वहां अभ्यास के दौरान लंबे शॉट खेल-खेल कर मैंने न जाने कितनी ही खिड़कियों के शीशे तोड़े हैं। कॉलेज टीम में सलेक्शन भी एक गुगनचुंबी छक्के की बदौलत ही हुआ था। गेंद खेत में इतनी दूर जाकर गिरी थी कि बाद में मिली ही नहीं। बगड़ के ही मैदान पर एक मैच के दौरान कमेंटेरी बॉक्स में छक्का मारने पर नकद इनाम की घोषणा की गई थी, कमेंटेरी बॉक्स बिलकुल ठीक सामने स्टेट में था। कमेंटेटर ने जैसे ही घोषणा की, ठीक उससे अगली ही गेंद पर ही एेसा करारा शॉट मारा था कि जिस टेबल पर खड़ा होकर कमेंटेटर, कमेंटरी कर रहा था (मैच रोमांचक होने के कारण कमेंटेटर अपनी कुर्सी छोड़कर टेबल पर खड़ा हो गया था। ) उसके पैरों के नीचे जाकर टेबल पर गेंद टकराई थी। हालांकि मैं तेज गेंदबाजी भी कर लिया करता था लेकिन धोनी ने नियमित गेंदबाजी नहीं की। एक मैच में जरूर उनको गेंदबाजी करते जरूर देखा था। वैसे धोनी के खेल व आंकड़ों से संबंधित सारी जानकारी नेट व समाचार पत्रों में उपलब्ध है ही। बात समानता की थी। एक और समानता देखिए। 1997 में बीए करने के बाद वार्षिकोत्सव में विदाई समारोह में सभी जूनियर छात्रों की ओर से हमको विदाई के साथ-साथ टाइटल भी दिए गए थे। कल इंस्टाग्राम पर धोनी ने पुराने फोटोज मिलाकर जो वीडियो बनाया उसने मेरी आंखें नम कर दी। इतना भावुक हुआ कि पूरा वीडियो देख भी नहीं पाया। इस वीडियो की पृ़ष्ठभूमि में जो गीत था, वही मुझे 23 साल पहले कॉलेज में टाइटल मिला था। बिलकुल वो ही 'मैं पल दो पल का शायर हूं' वाला। खैर, धोनी ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया है लेकिन आईपीएल में वो नजर आएंगे। क्रिकेट मैदान पर अपने खेल एवं फैसलों से चौंकाने वाले धोनी ने कल भी चौंकाया। हालांकि मुझे उनका अचानक क्रिकेट से अलविदा कहने का यह अंदाज जमा नहीं। यकीनन सचिन के बाद किसी ने दिल में जगह बनाई तो धोनी ही हैं। धोनी आप सदा दिल में रहोगे।

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