बस यूं.ही
जीवन में पचास का बड़ा महत्व होता है। तभी तो पचास का जश्न भी जोरदार मनता है। भले ही जन्म के पचास साल हों या शादी के। क्रिकेट में भी पचास का खासा महत्व है। अर्ध्दशतक होते ही बल्लेबाज के चेहरे पर सुकून भरी खुशी देखी जाती है। चूंकि मैं भी लंबे समय से क्रिकेट का मुरीद रहा हूं। स्कूल से लेकर कॉलेज तक और उसके बाद भी काफी क्रिकेट खेला है। इसीलिए पचास रन होने की बड़ी खुशी होती है। टीम का स्कोर ही जब पचास पहुंचता तो खूब तालियां बजाते थे। बाद में ऐसी उपलब्धि व्यक्तिगत खाते में दर्ज होती है उस खुशी का तो कहना ही क्या। खैर, आज क्रिकेट की तरह लेखन में भी फिफ्टी हो गई है। कोरोना पर आज पचासवीं कड़ी लिखते हुए बेहद खुशी का एहसास हो रहा है। एेसी खुशी, जिससे शब्दों में बयां करना मुश्किल हो रहा है। सोचा नहीं था, 21 अप्रेल को कोरोना से आए बदलावों को शब्द देते-देते इतना लंबा लिख जाऊंगा। वैसे तो रोज ही लिखने का काम है लेकिन एक विषय पर इतना लंबा पहली बार ही लिखा है। इससे पहले 2014 में जगन्नाथ पुरी यात्रा पर संस्मरण लिखा था। वैसे कोरोना पर लिखते समय सबसे पहले ही कह दिया था कि कोरोना पर सकारात्मक लिखने का प्रयास रहेगा। गंभीर बातें भी हास्य, व्यंग्य, गीत, कहावतों, मुहावरों व चुटकुलों के माध्यम से निसंदेह लच्छेदार बन पड़ी। आज एक जून को जब लगभग सारा देश खुल चुका है, लॉकडाउन की अधिकतर पाबंदियों में ढील दे दी गई है लेकिन कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा दो लाख को छूने को आतुर है। रोज का आंकड़ा देखे तो ग्राफ ऊपर ही चढ़ रहा है। यह बढ़ती गिनती निसंदेह धड़कनें भी बढ़ाती हैं। वैसे आंकड़ों का खेल होता भी बड़ा रोचक है, पत्रकारिता में कहा जाता है कि आंकड़ों से कई तरह की खबरें बनाई जा सकती हैं। मैं दावा करता हूं नैराश्य व घबराहट बढ़ाने वाले आंकडों को अगर दूसरी तरीके से पेश किया जाए तो वो डराएंगे नहीं बल्कि उम्मीद जगाएंगे। वो ही गिलास को आधा खाली व आधा भरा बताने वाली बात है। खाली बताना नकारात्मकता की निशानी है जबकि आधा भरा कहना सकारात्मक है। एक जून तक कोरोना से कुल संक्रमित, कुल मौतें तथा ठीक हुए लोगों के आंकड़ों को गिलास आधा भरा आधा खाली वाले अंदाज में देखेंगे तो यकीनन मन में भावना भी वैसी ही आएगी। यकायक कोई आपको बताए कि एक जून तक भारत में कोरोना संक्रमित एक लाख 90 हजार से ज्यादा हैं तो यह सुनकर आप जरूर चिंतित हो जाएंगे और इनमें से अगर 92 हजार ठीक होने वालों मरीजों की संख्या घटा दी जाए तो यह एक आंकड़ा एक लाख से भी नीचे आए। पर विडम्बना यही है कि संक्रमितों का बढ़ता आंकड़ा न केवल प्राथमिकता पाता है बल्कि यह कुल योग में ठीक हुए संक्रमितों को भी शामिल बताता है। हां दूसरी या तीसरी लाइन में जरूर कहा जाता है कि इनमें इतने संक्रमित ठीक हो चुके हैं। इसी बात को उलट दिया जाए तो सोचिए जो नकारात्मक माहौल बना है, उसको कम करने में कितने मदद मिलेगी। जब संक्रमित ठीक होकर अपने घर ही जा चुके हैं तो टोटल योग में उनको शामिल करना बेमानी है, बेतुका है। पहले तो आज इतने ठीक हुए और अब तक इतने ठीक हो चुके हैं। आज इतने संक्रमित और इतने लोगों की मौत हो गई। इस तरह अब इतने लोग उपचाराधीन हैं। इस तरह कहने या बताने से आंकड़ा डराएगा नहीं। और सभी को यह बात समझने की जरूरत है कि लॉकडाउन में छूट का मतलब यह नहीं है कि कोरोना कहीं चला गया या इसका असर कम हो गया। ऐसा कतई नहीं है, ऐसा सोचना भारी भूल है। हम सब ने दो ढाई माह में जो नई आदतें डाली हैं, उनको अब जीवन में उतरना है तथा नियमित रखना है।अब थोड़ी सी बात फिल्मों की। कोरोना काल में फिल्मों का निर्माण जरूर बंद है लेकिन जेहन में फिल्में, उनकी गीत और उनके डॉयलॉग घूमते रहते हैं। कोरोना पर न जाने कितने ही गाने फिल्मी गीतों की तर्ज पर बनकर बाजार में आ गए। अब तो चर्चित फिल्मों के डॉयलॉग्स को भी कोरोना से जोड़ा जा रहा है। बताया जा रहा है कि यह फिल्में अगर आज बनती तो इस फिल्म का डॉयलॉग यह होता। नागौर से आए एक परिचित के मैसेज से तो यही परिलक्षित होता है। गौर फरमाइए-
'शोले- ये मास्क मुझे दे दे, ठाकुर। दीवार- मेरे पास मास्क है, सेनिटाइजर है, इन्श्योरेंस है, बैंक बेलेन्स है। क्या है तुम्हारे पास ? मेरे पास कोरोना वेक्सीन हैं। दीवार - मैं आज भी लोगों से हाथ नहीं मिलाता। दबंग- कोविड से डर नही लगता साहब, लॉकडाउन से लगता है। कुछ कुछ होता है - फेफड़ों में कुछ कुछ होता है अंजलि, तुम नही समझोगी। बाजीराव मस्तानी-अगर आपने हमसे हमारा सेनिटाइजर मांगा होता तो हम खुशी खुशी दे देते, मगर आपने तो मास्क ना पहनकर हमारा गुरूर ही तोड़ दिया। डोन- कोरोना की वेक्सीन तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस ढूंढ रही है, पर वेक्सीन को ढूंढना ही नही, नामुमकिन है (भगवान ना करे)। देवदास -कौन कमबख्त है जो बर्दाश्त करने के लिये पीता है ? हम तो इसलिए पीते हैं कि देश की इकोनोमी ऊपर उठा सके, लॉकडाउन को बर्दाश्त कर सकें। जिंदगी ना मिलेगी दोबारा - अगर साबुन से हाथ धो रहे हो तो जिंदा हो तुम। अगर चेहरे पे मास्क लगाकर घूम रहे हो तो जिंदा हो तुम। अगर सोशल डिस्टेंसिंग फॉलो कर रहे हो तो जिंदा हो तुम। अगर बारबार चेहरे पे हाथ नहीं लगा रहे तो जिंदा हो तुम। अगर घर में झाडू, पोछा, बर्तन कर रहे हो तो जिंदा हो तुम। दामिनी- तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख, हमेशा अगले लॉकडाउन की तारीख ही मिलती रही है मिलोर्ड पर लोकडाउन की आखिरी तारीख नही मिली। मैंने प्यार किया - क्वोरन्टाइन का एक उसूल है मैडम - नो मीटिंग, नो गोइंग आउट। ओम शांति ओम -अगर कोरोना के नए केस आने बंद नही हुए तो समझ लो कि लॉकडाउन अभी बाकी है मेरे दोस्त। मुगल-ए-आजम - सोशल डिस्टेंसिंग तुम्हें मरने नहीं देगा और लॉकडाउन तुम्हें जीने नही देगा। पाकीजा - आपके पांव देखे, बहुत हसीन हैं। इन्हें घर पर ही रखिएगा वरना कोरोना हो जाएगा। दीवार -जाओ,पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने बिना मास्क के पब्लिक में छींक दिया था। शहंशाह -रिश्ते में तो हम सारे वायरस के बाप लगते हैं, नाम है कोरोना।' यकीनन यह सब फुरसत का काम है। इन डॉयलॉग्स को पढ़कर मुझे बचपन में एक कॉमिक्स में पढ़ा एक लंबा सा डायलॉग याद गया। इस डायलॉग में अमिभाभ की फिल्मों के नाम छिपे हैं। सुनिए, ' क्यों बे, लावारिस जेडी मिस्टर नटवरलाल को तूने ही फाइल चुराने भेजा था। साले देश का नमक खाकर तू भी मेरे तरह नमक हलाल नहीं बन सका। जानता नहीं हमारा अंधा कानून बहुत लंबे हाथ वाला है। अब तेरे पास यही आखिरी रास्ता बचा है, जल्दी से इस जंजीर को पहन ले और गिरफ्तार होकर अदालत चल। ज्यादा शक्ति दिखाने की कोशिश की तो मार-मार के खून-पसीना एक कर दूंगा।' इतना लिखने के बाद अब थकावट ने घेर लिया है। शाम भी ढल चुकी है। आप यह पोस्ट पढि़ए तब तक मैं चारपाई पर थोड़ा सुस्ता लेता हूं।
क्रमश :
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