Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना- 29

बस यूं.ही

अभी एक कार्टून देख रहा था। इसको देख कर दिमाग में कई तरह के ख्यालात आए। फिलहाल केवल कार्टून की ही बात करें, फ्रेम में एक मजदूर परिवार सिर पर गृहस्थी का सामान लिए खड़ा है। पीछे एक समाचार का शीर्षक लगा है ' प्रधानमंत्री के नाम राष्ट्र का संदेश।' सामने माइक एवं कैमरा दिखाई दे रहे हैं। शायद मजदूर बाइट दे रहा है। वह कह रहा है, 'आत्मनिर्भरता... आत्मबल... आत्मविश्वास... इन शब्दों ने हमारे अंदर जोश भर दिया है। हम चार दिन से भूखे प्यासे पैदल यात्रा कर लेंगे...।' दरअसल सप्ताह भर पहले प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कोरोना संकट से उबरने के लिए आत्मनिर्भरता की पुरजोर वकालत करते हुए कहा था कि '21वीं सदी भारत की हो, यह हम सबका सपना ही नहीं जिम्मेदारी भी है, लेकिन इसका मार्ग एक ही है. आत्मनिर्भर भारत।' आत्मनिर्भरता पर प्रधानीमंत्री काफी कुछ बोले। साथ में कई दृष्टान्त व उदाहरण भी दिए। इससे पहले अप्रेल माह में सरपंचों के साथ संवाद में भी उन्होंने आत्मनिर्भरता की बात कही थी। प्रधानमंत्री के इस आत्मनिर्भरता के आह्वान को कितने लोगों ने गंभीरता से लिया तो कितने लोगों ने आलोचना की यह अलग विषय है। लेकिन इस आह्वान पर चुटकी लेने वालों की संख्या भी कम नहीं है। यह चुटकीबाज पता नहीं आत्मनिर्भरता के समर्थक हैं या विरोधी लेकिन उनको एेसा करने में ही इस चुनौतीपूर्ण माहौल में भी सुखद अनुभूति हो रही है। वैसे थोड़ा मजाकिया स्वाभाव होने की वजह से मैं चुटकियों, चुटुकलों एवं चुटीली बातों का मुरीद हूं। माना चुटीली बातें किसी की भावना को चोट पहुंचा सकती हैं। शीशे रूपी नाजुक मन को आसानी से चटका भी सकती है लेकिन आदत से मजबूर हूं। अक्सर चुटकी की चिकोटी काट ही लेता हूं। भले ही वो बातों में हो या लेखन में। यह आदत मेरी स्वभाव में पता नहीं कब घर कर गई। राम ही जाने। अब आत्मनिर्भरता पर आते हैं। आत्मनिर्भरता का मतलब जो मेरी समझ आया है, उसका मतलब है, अपने पैरों पर खड़ा होना। आत्मनिर्भरता की अनुभूति भी तभी होगी। दूसरों पर निर्भर रहने से तो होने से रही। दूसरें शब्दों में कहें तो स्वर्ग खुद के मरे से ही मिलेगा। खुद के स्वर्ग मिलने की बात से बचपन की याद आ गई। तब आज की तरह रोजाना जेबखर्ची नहीं मिलती थी। कभी-कभार कोई अवसर विशेष आता था तब काफी रोने-धोन व मिन्नत करने के बाद एक -दो रुपए मिलते तो एेसा लगता जैसे मुंंह मांगी मुराद मिल गई। यह एक दो रुपए देते वक्त पापाजी एक कहानी सुनाते थे। ' यही कि एक सेठजी का बेटा बड़ा फिजूलखर्च था। वह रोज पैसे मांगता। एक दिन सेठजी परेशान हो गए और बेटे से कहा, तुझे पता है ना पैसे कैसे कमाई जाते हैं। कभी कमाकर बताना तभी पता चलेगा। बस फिर क्या था, पुत्र को पिता की बात दिल पर लग गई और उसने कमाने की चुनौती स्वीकार कर ली। वह एक कुल्हाड़ी लेकर जंगल गया, वहां उसे लकड़ी काटने का काम मिला। दिन भर लकड़ी काटने के बाद उसे एक अठन्नी मिली। वह कभी अठन्नी को देखकर खुश होता तो कभी अपने हाथों में पड़े छालों को देखकर दुखी होता। फिर भी अठन्नी कमाने की खुशी में वह अपने पिताजी के पास गया और कहने लगा देखो मैं आज अठन्नी कमाकर लाया। सेठ जी ने बिना कोई प्रतिक्रिया दिए कहा, जाओ इस अठन्नी को कुएं में डाल आओ। पिता की आज्ञा की पालना कर पुत्र कुएं की तरफ चल पड़ा। वहां पहुंचकर उसने अपने हाथों को देखा, उनमें पड़े छालों का देखा। बार-बार देखा और अठन्नी बिना डाले ही घर लौट आया। घर आते ही वह पिता के कदमों में लेट गया और बोला पिताजी मुझे आज पता लगा पैसे कमाना आसान काम नहीं है।' खैर, इस कहानी का असर यह हुआ कि बचपन से मितव्ययी हो गए और बचत की आदत डाल ली। पिताजी भी शायद कहानी के चक्कर में यही सीख देना चाहते थे। कहानी के चक्कर में विषयवस्तु से थोड़ा अलग चला गया लेकिन बात वो ही है ,'खुद के मरे बिना स्वर्ग' वाली थी, लिहाजा यह सब लिखना पड़ा। हां तो बात आत्मनिर्भरता की हो रही थी। जयपुर के एक पत्रकार साथी ने आत्मनिर्भरता के संबंध में अपने एफबी वॉल पर लगाया ' सारे नेताओं की सिक्योरिटी खत्म कर देनी चाहिए। आत्मनिर्भर बनें, खुद की सुरक्षा खुद करें, और देश में हर दिन करोड़ों बचाएं।'' वाकई बात में दम तो है। बात आत्मनिर्भर बनने और आत्मनिर्भरता को अपनाने की है तो यह सब पर समान रूप से लागू होनी भी चाहिए। इसी तरह एफबी पर एक और पोस्ट पढ़ी, ' ईएमआई भरने के लिए बैंक का फोन आया तो मैंने भी बोल दिया, कब तक मांगते रहोगे? आत्मनिर्भर बनो, आत्मनिर्भर।' खैर, बैंक से तो उधार लिया हुआ है तो वह तो चुकाना पड़ेगा ही, हां इस तरह के जुमलों से हंस कर कोरोना का तनाव थोड़ा कम जरूर किया जा सकता है। कहीं एक जगह और पढ़ा, ' मध्यमवर्गीय तो शुरू से ही आत्मनिर्भर है, सरकार के भरोसे तो अमीर और गरीब है।' सोचने वाली बात तो यह है कि मध्यमवर्ग कितना आत्मनिर्भर है। यह किसी से छिपा हुआ भी नहीं है। यकीन नहीं है तो अगली कड़ी में मध्यमवर्ग पर ही चर्चा करेंगे। मजदूरों के बाद सर्वाधिक कमर मध्यम वर्ग की टूटी है। इससे पहले पत्रकार प्रभुनाथ शुक्ल की सुन लेते हैं 'आत्मनिर्भरता यानी स्वावलंबन जीवन में बेहद आवश्यक है। लेकिन आजकल बगैर अवलंबन ( सहारा लेना ) के काम ही नहीं चलता। पति- पत्नी पर, प्रेमी- प्रेमिका पर, बुजुर्ग-छड़ी पर, सरकार- गठजोड़ पर और विपक्ष- ट्विटर पर आत्मनिर्भर है।
क्रमश:

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