Monday, August 17, 2020

मनमर्जी का सौदा !

टिप्पणी,

शहर के सुखाडिय़ा सर्किल स्थित भारत माता चौक पर लगा एक सौ फीट ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज कब फहराएगा और कब नहीं, यह सब नगर विकास न्यास की मर्जी पर निर्भर है। इस राष्ट्रीय ध्वज को यहां लगाने के पीछे तात्कालिक कारण जो भी रहे हों लेकिन वर्तमान में वैसी तत्परता एवं गंभीरता अब नजर नहीं आती। 

दरअसल, इसको लगाते वक्त श्रेय लेने वालों तथा वाहवाही बटोरने वालों ने यह तो कतई भी नहीं सोचा होगा कि कालांतर में इस ध्वज का हश्र क्या होगा? जल्दबाजी एवं बिना सोचे समझे लगाया गया यह ध्वज अब नगर विकास न्यास के गले की फांस बन गया है। दिक्कत यह है कि हर दो माह बाद ध्वज के कपड़े को बदलता पड़ता है। इसके बदले में नगर विकास न्यास को तीस हजार रुपए का खर्चा वहन करना पड़ता है। बात यहीं तक सीमित नहीं है। इससे भी बड़ा धर्मसंकट यह आता है कि ध्वज का खर्चा किस मद में दिखाया जाए। यह अड़चन न्यास अधिकारियों के लिए आफत बन चुकी है। 

कहने को तो नगर विकास न्यास की ओर से ध्वज संहिता की पालना के लिए कागजी कार्रवाई भी पूरी की जा रही है लेकिन धरातल पर इसका असर दिखाई नहीं देता। ध्वज को लेकर जिस एजेंसी से अनुबंध हुआ था, वह भी इसकी पालना नहीं कर रही है। देखने में यह भी आया है कि ध्वज का खर्चा बचाने के लिए इसके कपड़े की आवक अक्सर टाल दी जाती है। इससे बड़ी बात तो यह है कि यूआईटी के पास ध्वज उतारने या फहराने का हिसाब किताब भी नहीं है। ऐसे में यह यह मामला और भी संदिग्ध हो जाता है। कुल मिलाकर आम जन की भावनाओं से जुड़े इस मामले में नगर विकास न्यास प्रशासन की भूमिका को सही नहीं जा सकता है। उसने इस मामले को एक तरह से 'मनमर्जी का सौदा' बना रखा है। वह इस काम को न तो कर पा रहा है और न इसके लिए मना कर रहा है। वह मना करे तो नगर परिषद ध्वज के रखरखाव के लिए तैयार है। नगर परिषद के पूर्व सभापति ने तो इसके लिए प्रस्ताव भी रखा था। मौजूदा सभापति भी ध्वज के रखरखाव को लेकर तैयार हंै। बहरहाल, राष्ट्रीय ध्वज आम लोग की भावना एवं आस्था से जुड़ा मामला है। इसका बार-बार कटना, फटना या लंबे समय तक न फहराना भी एक तरह का अपमान है। इससे लोगों की भावनाएं आहत होती हैं। नगर विकास न्यास के लिए ध्वज का रखरखाव करना बस की बात नहीं है तो यह काम उसे सहर्ष नगर परिषद को सौंप देना चाहिए। और अगर वह ऐसा नहीं करता है तो खुद ऐसी व्यवस्था करें कि किसी तरह की कोई शिकायत ही नहीं रहे ताकि आस्था एवं सम्मान का प्रतीक लगातार फहरता रहे।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 13अगस्त के अंक में प्रकाशित। 

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