Monday, August 17, 2020

फिर वही कहानी

टिप्पणी

श्रीगंगानगर शहर का नसीब ही ऐसा है कि यहां विकास लंबे समय से सपना बना हुआ है। विडंबना तो यह भी है कि विकास के बड़े-बड़े वादे करके सत्ता में आने वाले बाद में अपने ही वादों से न केवल मुकरते हैं बल्कि दूसरों पर दोषारोपण करके खुद की खाल बचाने की नौटंकी भी बखूबी करते हैं। ऐसे हालात तब हैं जब राज्य में जिस दल की सरकार है, उसी दल की सभापति श्रीगंगानगर नगर परिषद में हैं। यूआइटी भी राज्य सरकार की निगरानी में काम कर रही है। और तो और निर्दलीय जीते विधायक भी उसी दल से 'हाथ' मिला चुके हैं। श्रीगंगागनर से लेकर जयपुर तक सत्ता की सीढ़ी एक ही दल की होने के बावजूद श्रीगंगानगर की न दशा सुधरी है न दिशा। उल्टे कमोबेश वैसे ही हालत और उसी तरह की सियासत अब भी हो रही है। यह नौटंकी मेडिकल कॉलेज वाले सेठजी से शुरू हुई, तब भी वर्तमान दल के ही सभापति थे। तब सेठजी ने अपने पिता के नाम से जल निकासी के लिए दस करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई लेकिन शर्त भी लगा दी कि यह निकासी योजना बननी चाहिए। कहीं सेठजी का नाम न हो जाए यह सोचकर तत्कालीन नगर परिषद बोर्ड ने यह योजना बनाई ही नहीं। नतीजतन पिछले बोर्ड में ब्याज सहित तेरह करोड़ रुपए दान राशि वापस लेने के लिए नगर परिषद प्रशासन ने परहेज नहीं किया। सेठजी ने इस जल निकासी के मुद्दे को न केवल जमकर भुनाया बल्कि दान की गई राशि भी ब्याज सहित वापस ले गए।
पिछले कार्यकाल में नगर परिषद के पास बहाना था कि विकास कार्यों में राज्य सहयोग नहीं कर रहा है, लेकिन इस बार यह दोषारोपण यूआईटी पर है। मामला शहर की बेहद गंभीर और नासूर बन चुकी समस्या बरसाती पानी की निकासी का है। नगर परिषद सभापति का कहना है कि एसटीपी प्लांट का काम अधूरा है। बरसात आई तो शहर का डूबना तय है और इसके लिए वो जिम्मेदार नहीं है। उन्होंने तो नालों की सफाई भी करवा दी, अब एसटीपी प्लांट का काम यूआईटी जाने। इधर, यूआईटी प्रशासन का कहना है कि एसटीपी प्लांट बरसाती पानी के लिए है ही नहीं। एसटीपी में शौचालय, रसोईघर व बाथरूम के पानी को ट्रीट किया जाना है। यूआईटी का पक्ष सही है तो नगर परिषद सभापति किस आधार पर एसटीपी में बरसाती पानी छोडऩे की बात कर रही हैं? एसटीपी के निर्माण में देरी के कारण भी यूआईटी प्रशासन सभापति के निशाने पर है, लेकिन सवाल तो यह है कि एसटीपी बनने के बाद क्या समस्या का स्थायी समाधान हो जाएगा? खैर, परिषद व न्यास की इस बयानबाजी से इतना तो तय है कि दोनों ही जनता की अदालत में खुद को पाक दामन साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। बदकिस्मती यह भी है कि इस बयानबाजी से शहर का भला होने की उम्मीद कतई नहीं है। वैसे भी परिषद एवं न्यास के पास श्रीगंगानगर में जनहित का कोई बड़ा काम, विकास या सौन्दर्यीकरण कार्य बताने की उपलब्धि नहीं है। उल्टे दोनों आपस में बयानबाजी कर अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं। कितना बेहतर हो सभी विभाग आपस में तालमेल एवं समन्वय से श्रीगंगानगर के विकास का खाका खींचे। बड़ी समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए दूरदर्शी सोच के साथ योजनाएं बनवाएं तथा उन पर प्रभावी तरीके से काम करवाएं। बार-बार एक ही कहानी और बयानों से शहर का भला न पहले हुआ न आगे होगा। जनप्रतिनिधियों को इन बयानों एवं दोषारोपण के बजाय पहल करके दिखाना होगा। जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेना जनप्रतिनिधियों के लिए किसी भी सूरत में उचित नहीं है।
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 राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में.03 जुलाई के अंक में.प्रकाशित।  

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