Monday, August 17, 2020

प्रस्ताव में देरी क्यों?

टिप्पणी

प्रदेश में जेलों की सुरक्षा व्यवस्थाओं की पोलपट्टी गाहे-बगाहे होने वाले निरीक्षणों में खुलती रहती है। कभी किसी जेल में मोबाइल बरामद होते हैं तो कभी कहीं पर नशे का सामान। नतीजतन, कार्रवाई के नाम पर कुछ रस्मी हरकत होती है फिर ढर्रा उसी अंदाज में चलने लगता है। ऐसे में यह निरीक्षण भी एक तरह की कागजी कार्रवाई ही है। औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं। जेल में बैठे कैदियों के मोबाइल से बाहर अपना नेटवर्क संचालित की खबरें भी अक्सर आती रहती हैं। हनुमानगढ़ की जिला जेल भी इस तरह की घटनाक्रमों से अछूती नहीं है। यहां तो जेल स्टाफ और अपराधियों के बीच मिलीभगत तक के मामले भी उजागर हो चुके हैं। कैदियों के आपस में भिडऩे तो कभी जेल प्रशासन के खिलाफ कैदियों के आंदोलन भी यहां अक्सर होते रहे हैं। इतना ही नहीं यहां जेल प्रशासन पर कैदियों से वसूली करने तक के आरोप भी लग चुके हैं। बहरहाल, इन तमाम चुनौतियों के अलावा जेल प्रशासन एक और गंभीर समस्या से जूझ रहा है। जेल की दीवारें अब अभेद्य नहीं रही। जेल से लगती सड़कों की ऊंचाई बढऩे से जेल की दीवारों की ऊंचाई कम हो गई है। और इसी कमजोरी को फायदा अपराधिक तत्व उठा रहे हैं। हालांकि कुछ मामले जेल प्रशासन की नजरों में भी आए। कार्रवाई भी हुई लेकिन इसके बावजूद आपराधिक वारदातों पर अंकुश नहीं लगा है। और यह खतरा तब तक बना रहेगा जब तक दीवार नीची रहेगी।
इससे भी बड़ी हैरत की बात तो यह है कि इस समस्या को सरकार के स्तर पर बिलकुल भी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। जेल की दीवारें ऊंची करके उन पर जाली लगाने का प्रस्ताव तीन साल से भिजवाया जा रहा है फिर भी सरकार इस समस्या की सुध नहीं ले रही है। हनुमानगढ़ जिला वैसे भी मादक पदार्थों की तस्करी के मामले में कुख्यात है। यहां की जेल में जितने कैदी हैं, उनमें से पचास फीसदी से ज्यादा तस्करी के मामलों से जुड़े विचाराधीन कैदी हैं। प्रदेश की जेलों से अप्रिय वारदातों की खबरें अक्सर आती रहती हैं। ऐसा हनुमानगढ़ में भी हुआ है और भविष्य में भी हो सकता है, इसलिए इस मामले को अब ज्यादा लटकाना किसी भी सूरत में उचित नहीं है। सरकार को स्थानीय जेल प्रशासन के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करते हुए तत्काल जेल की दीवारों को ऊंचा करवाना चाहिए।

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 राजस्थान पत्रिका हनुमानगढ संस्करण के 30 जून 20 के अंक में प्रकाशित ।

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