Monday, August 17, 2020

मुआ करोना-12

बस यूं.ही
तीन दिन के शोर-शराबे के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि शराब पीना और बेचना कोई बुरा काम नहीं है। यह सामाजिक बुराई न होकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देने वाली महत्वपूर्ण इकाई है। आखिर देश की अर्थव्यवस्था भी तो शराब पर ही टिकी है। अब शराबियों को हिकारत से भी नहीं देखा जाता। उनके प्रति सहानुभूति जताई जा रही है। यहां तक कि कल तो एक ठेके के बाहर लाइन में लगे शराब के तलबगारों के सम्मान में फूल तक बरसाए गए। सोचिए कोरोना नहीं आता तो शराबियों की यह छवि सुधरती? उन पर फूल बरसाकर इस तरह सम्मान की कल्पना की जा सकती थी? यह सारा योगदान कोरोना का ही है जिसने एक झटके में शराबी को खलनायक से नायक की भूमिका में लाकर खड़ा कर दिया। मेरे जयपुर के एक मित्र जिन्होंने छह माह पहले ही शराब छोड़ी है, उनका सुबह ही एक मैसेज आया।जिस तरह शराबियों को अर्थव्यवस्था का योद्धा बताया जा रहा है, मुझे अपने शराब छोड़ने पर देशद्रोही होने का एहसास हो रहा है।मैं यह मैसेज पढ़कर काफी देर तक हंसता रहा। वहीं जयपुर के ही एक दूसरे मित्र का मैसेज आया, 'सेटेलाइट द्वारा शराब के ठेके पर भारी भीड़ देख जापान व अमरीका इस कन्फ्यूजन में हैं कि कहीं भारत ने कोरोना का वैक्सीन तो नहीं बना लिया।' वाकई शराब ठेकों पर जिस तरह भीड़ उमड़ रही है, उसको देखकर एेसा सोचा भी जा सकता है। इसी तरह बीकानेर के एक मित्र ने भी मैसेज भेजा, जिसमें दर्द ज्यादा था, लिखा था, 'बैंकों में पांच सौ रुपए के लिए लाइन लगवाने से कोरोना नहीं होगा। राशन की दुकानों पर लाइन लगवाने से कोरोना नहीं होगा। शराब की दुकानों पर लाइन लगवाने से भी कोरोना नहीं होगा। इतना ही नहीं, जहां फ्री का सामान बंट रहा हो, वहां लाइन लगवाने से भी कोरोना नहीं होगा। बस एक दुकानदार ही एेसा है, जिसके पास बमुश्किल से दिन भर में दस-बारह ग्राहक आते होंगे, वो ही सारा कोरोना फैलाएगा, इस सोच को सलाम।' वाकई बात में दम है। लॉकडाउन की शर्तों और छूटों में विरोधाभास तो है ही। सच यह भी है कि दुकानदार की दुकान खोलने से सरकार को भला क्या फायदा? बीकानेर के ही एक अन्य मित्र ने जो पेशे से अध्यापक हैं, उन्होंने तो बाकायदा आग्रह कर दिया कि आप कोरोना पर जो श्रृंखला लिख रहे हो उसमें कुछ हमारा भी सकारात्मक हो सकता है। फिर उन्होंने एक पोस्ट भेज दी है। सिक्के का दूसरा पहलू के नाम से यह पोस्ट इस तरह से थी, 'एक डॉक्टर साहब ड्यूटी की वजह से पांच दिन घर नहीं जा पाए और मीडिया में राष्ट्रीय समाचार बनकर छा गए! पुलिस के एक भाईसाहब अपने बेटे के जन्मदिन में समय पर नहीं पहुंच पाए, इस खबर को नेशनल न्यूज़ चैनल ने आधे घण्टे तक चलाया। शायद वो लोग अपनी संवेदनशीलता का परिचय दे रहे थे! इस बात में कोई दोराय नहीं कि हमारे मेडिकल स्टाफ ने काबिले तारीफ काम किया है। पुलिस के पास भी अपनी छवि सुधारने का अच्छा मौका था। मगर देखा जाए तो ये उनकी ड्यूटी भी थी। इसी कार्य के लिए इनको नियुक्ति दी जाती है। सबसे गौर करने वाली बात यह है कि पूरे देश के मेडिकल स्टाफ, पुलिस, एसडीएम, तहसीलदार और अन्य सभी के साथ एक और शख्स खड़ा है, जो शायद किसी को नजर नही आ रहा! और वो है शिक्षक! जी हां, देश के प्रत्येक घर मे डॉक्टर्स की टीम के साथ शिक्षक पहुंच रहा है। प्रत्येक क्वारेन्टीन सेंटर पर शिक्षक मौजूद है। पुलिस के साथ हर नाके पर शिक्षक खड़ा है। और यहां तक कि प्रशासनिक हलकों तक का पूरा जिम्मा शिक्षकों ने ले रखा है। मगर वो किसी को भी नजर नहीं आता। विडंबना देखिए एक नर्स पांच दिन घर नही गई तो राष्ट्रीय खबर बन गई। और एक शिक्षिका दो माह से घर नहीं जा पा रही है, उसकी कोई खैर खबर नहीं! एक कॉन्स्टेबल अपने बेटे का जन्मदिन मनाने नहीं पहुंचा, उसका सबको दु:ख है। मगर एक शिक्षक अपने बूढ़े बीमार मां-बाप को दवा तक नही दिलवा पा रहा है, इससे किसी को कोई फर्क नही पड़ता। यह विचारणीय है, विशेषकर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के लिए। मैं अध्यापक मित्र की यह पोस्ट पढ़ ही रहा था कि जेहन में भजनी मास्टर विजयसिंह जी का भजन बरबस ही याद आ गया। यह भजन मुझे बेहद प्रिय है और इसको मैं अक्सर गुनगुनाता रहता हूं। छोटा था तब विजयसिंह जी के भजनों के काफी चर्चे थे। खैर, आप भजन के बोल गुनगुनाइए मैं जल्द लौटता हूं अगली कड़ी के साथ, ' सुख थोड़ा, दुख घणा जगत मं, भोग्या कष्ट सरै राणी, किस किस का दुख दूर करूं या दुनिया दुखी फिरै राणी।'

क्रमशः 

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