Monday, August 17, 2020

इस 'मर्ज' का इलाज क्या ?

टिप्पणी

ऐसा माना जाता रहा है कि अस्पताल में चिकित्सकों के पास जाने के बाद गंभीर से गंभीर मर्ज का इलाज हो जाएगा, लेकिन श्रीगंगानगर एवं बीकानेर के दो चिकित्सा संस्थानों के बीच एक 'मर्ज' लाइलाज बना हुआ है। दरअसल, यह मर्ज एक ऐसी गंभीर लापरवाही या यूं कहिए कि गलती है, जिसको मानने को कोई तैयार ही नहीं है। श्रीगंगानगर का जिला अस्पताल प्रबंधन खुद को पाक दामन साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा जबकि बीकानेर का एसपी मेडिकल कॉलेज भी अपनी बात के समर्थन में अड़ा है। दोनों चिकित्सा संस्थानों की खुद को सही साबित करने की इस अजीब सी जिद के चलते चार दिन बाद भी इस लापरवाही के जिम्मेदार तय नहीं हो पाए हैं। मामला कोरोना के करीब पांच दर्जन सैंपल से जुड़ा है। गंभीर बात तो यह कि सैंपल जांच से पहले ही गायब हो गए। श्रीगंगानगर जिला अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि जांच के लिए सैंपल बीकानेर के एसपी मेडिकल कॉलेज भेजे गए थे और उनके पास सैंपल सुपुर्दगी की रसीद भी है। इधर, बीकानेर एसपी मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों का कहना है कि उनके पास सैंपल आए ही नहीं, सैंपल लाने वाले कर्मचारी ने केवल डिब्बे गिनवाए और उसके आधार पर सैंपल प्राप्ति की रसीद दे दी गई। बचाव में यह दलील भी दी जा रही है कि प्राप्ति रसीद सैंपल के डिब्बों की दी है ना कि सैंपल की। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इस गफलत का जिम्मेदार कौन है? दोनों चिकित्सा संस्थान भले ही एक दूसरे पर दोषारोपण कर खुद को सही साबित करने की कोशिश करें लेकिन जान हलक में तो उन पांच दर्जन मरीजों की अटकी हुई है, जिनके यह सैंपल थे। क्या यह मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं? कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के प्रति दोनों संस्थानों का यह रवैया गैर जिम्मेदाराना है। क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं? जिनके सैपल गुम हुए क्या यह उन मरीजों के लिए किसी मानसिक संताप या प्रताडऩा से कम है?
बहरहाल, श्रीगंगानगर का जिला अस्पताल सैंपल दुबारा लेने की बात कह रहा है लेकिन ऐसा करना भी एक तरह का मजाक ही है। इस मामले से सबक लेकर आगे से सैंपल जमा करने के तौर-तरीकों में भी भले बदलाव हो जाए लेकिन यह गलती किसकी थी और कैसे हुई, जब तक इसके कारण नहीं तलाशे जाएंगे तब तक इस तरह की लापरवाहियां यूं ही डराती रहेंगी। इस समूचे घटनाक्रम को देखने के बाद यह तो तय है कि लापरवाही किसी एक संस्थान की है लेकिन उसे स्वीकारना तो दूर, मानने को भी तैयार नहीं है। यकीनन, यह दोषारोपण किसी लापरवाह को बचाने या गलतियों पर पर्दा डालने के लिए ही किया जा रहा है। कितना बेहतर होता कि जहां लापरवाही हुई, जिसकी वजह से हुई उनको चिन्हित करके उनका ठोस समाधान खोजा जाता, लापरवाह को दंडित किया जाता। दुबारा सैंपल लेना इस समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। हां, इस मामले में श्रीगंगानगर पीएमओ ने कमेटी गठित की है। अब कमेटी की रिपोर्ट का हश्र क्या होगा, यह भी देखने वाली बात होगी। कारण, सरकारी विभागों में नोटिस और कमेटियों की रिपोर्ट का अंजाम किसी से छिपा नहीं है।

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 राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर व बीकानेर संस्करण के 30 जून 20 के अंक में प्रकाशित।

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