Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना- 14

बस यूं.ही

कल सोचा था कि शराब से आगे बढ़कर नए विषय पर लिखूंगा लेकिन आज मुंबई के पालघर से एक मित्र के संदेश से लगा कि इस विषय पर थोड़ा और लिखा जाए। मैसेज था, 'कुछ भी कहो साब , है बहुत कमीनी चीज ...कई घर उजड़ जाते हैं हर साल... जवान लड़कियां विधवा हो जाती हैं... बच्चे अनाथ हो जाते हैं और घर का एेसा वातावरण देख बच्चे गलत रास्ते पर चले जाते हैं... और अगली पीढी फिर बर्बाद... हर गांव में दर्जनों घर इस तरह के मिल जाएंगे... और मेरे समाज में ऐसा देख मुझे बड़ा दुख होता है ....एक जवान बेवा का समाज में जीना कितना दुश्कर है सभी जानते हैं...पति अव्वल दर्जे का बेवडा है पत्नी बच्चों का पेट पालने के लिए कहीं मजदूरी पर जाती है और फिर वहां उसका शोषण होता है...खैर' वाकई मित्र के मैसेज में दर्द छिपा है पर कोई समझे तब ना। अब देखो ना शराब की कीमत बढ़ा दी, टैक्स भी लगा दिया लेकिन पीने वाले कभी शिकायत नहीं करते। ना कभी विरोध करते। जो भी कीमत होती है, चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं। अभी रसोई गैस की कीमतें बढ़ती या प्याज-लहसून के भाव बढ़ते तो समूचा विपक्ष सत्ता पक्ष को घेर कर बैठ जाता। विरोध प्रदर्शन तक हो जाते। एक शराब ही एेसी चीज है, जिसको लेकर शायद ही कभी विरोध प्रदर्शन हुआ हो। क्या यह उपभोक्ता के अधिकारों का सीधा-सीधा हनन नहीं? शराब की मनमानी कीमतें तय हो रही हैं लेकिन कोई बोलता क्यों नहीं? अगर शराब वाकई अर्थव्यवस्था की डगमगाती नैया को पार लगाने की कुव्वत रखती है तो उसके तलबगारों के अधिकारों की रक्षा करना भी तो बनता है। खैर, कोटा संभाग के दो नेताओं ने शराब की बिक्री के समर्थन में बयान दिए थे। कहा था कि सेनिटाइजर में भी एल्कोहल होता है। वह हाथों को साफ कर सकता है तो अंदर भी साफ करेगा। हालांकि इन नेताओं के बयानों पर काफी थू-थू हुई लेकिन यकीनन सुराप्रेमियों ने इनको दिल से बधाई दी होगी। एल्कोहल से याद आया एक मैसेज, जो गांव के ही एक साथी ने भेजा था, ' डॉक्टर ने बताया कि यदि एल्कोहल 60 प्रतिशत से ज्यादा स्ट्रेंथ वाली हो तभी कोरोना वायरस मर सकता है। बाजार में सिर्फ 42.8 प्रतिशत वाली व्हिस्की ही मिलती है। वायरस इसके सेवन से नहीं मरेगा...फिर दिमाग में आया कि , मरे या न मरे... साला घायल तो हो ही जाएगा...' वैसे इस मैसेज से यह बात जेहन में आई कि शराब पर न केवल कवियों बल्कि गीतकारों ने भी जमकर कलम चलाई है। सोचिए शराब इन कलमकारों की कल्पना में क्यों रही? यकीनन कहीं न कहीं शराब के आभामंडल से वो भी प्रभावित रहे होंगे। शराब पर आधारित गीतों ने शराब का घर-घर से परिचय करवा दिया। भले ही कोई पीए या न पीए लेकिन शराब के अतीत, वर्तमान व भविष्य को लेकर हर कोई वाकिफ है। कोई पी लेता है तो कोई पिला देता है। वो शेर है ना, 'मैं पीता था, उसने छुड़ा दी अपने कसम देकर, एक बार महफिल में यारों ने पिला दी उसकी कसम देकर।' कॉलेज के जमाने में शराब पर एक मजाकिया शेर जो अक्सर सुना था और सुनाते भी थे फिर जोर-जोर से खूब हंसते थे, 'पैखाने में घुस गए मयखाना समझ कर, डिब्बा उठाकर पी गए पैमाना समझ कर।' खैर, शराब वाले गाने पर नजर दौड़ाई तो एक से बढ़कर एक गाने जेहन में आने लगे। 'मुझे दुनिया वालों शराबी ना समझो मैं पीता नहीं हूं पिलाई गई है..' मुझे पीने का शौक नहीं, पीता हूं गम भुलाने को... छलकाए जाम आइए आपकी आंखों के नाम...छू लेने दो नाजुक होठों को... मुझको यारों माफ़ करना में नशे में हूं... पी ले पी ले ओ मोरे राजा... पंडित जी मेरे मरने के बाद... जैसे सैकडों गीत हैं। याद करो तो ईन गीतों की सूची बेहद लंबी हो जाएगी। फिर भी शराब पर गीतकारों की कलम अभी थमी नहीं है। टल्ली हो गया... पव्वा चढ़ाके आई जैसे गीत आज भी आ रहे हैं। समय के साथ गीतों के बोल सपाट और द्विअर्थी जरूर हो गए लेकिन शराब पर लेखन जारी है। शराबी फिल्मी का गीत ' नशा शराब में होता तो नाचती बोतल' तो सुराप्रेमियों की टैगलाइन है। वाकई यह गीत कालजयी है, शराब के नशे को जिस तरह से अन्य नशों से जोड़ा गया है तथा बताया गया है कि नशे में कौन नहीं है, वह काबिलेगौर है, देखिए...
'किसी पे हुस्न का गुरुर, जवानी का नशा
किसी के दिल पे मोहब्बत की रवानी का नशा
नशे में कौन नहीं हैं मुझे बताओ जऱा
किसे है होश मेरे सामने तो लाओ जऱा
नशा है सब पे मगर रंग नशे का है जुदा
खिली खिली हुई सुबह पे है शबनम का नशा
हवा पे खुशबू का बादल पे है रिमझिम का नशा
कहीं सुरूर है खुशियों का कहीं ग़म का नशा..'
इस लिहाज से तो हर शख्स नशे में नजर आता है। आजकल तो कई तरह के नशे बढ़ गए हैं। सबसे बड़ा नशा तो सत्ता का नशा माने जाने लगा है। बहरहाल, सन 1988 में आई मिथुन-माधुरी की फिल्म प्रेम प्रतिज्ञा के इस शेर के साथ आज की चर्चा को विराम देता हूं। अर्ज किया है...,
खुशी हजार सही गम जुदा नहीं होता,
गरीब कितनी भी पी ले, नशा नहीं होता।
क्रमश:

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