Monday, August 17, 2020

यह सोलहवां भी है कमाल-5

बस यूं ही

सोलह की बात आती है तो सोलह कलाओं का जिक्र होना लाजिमी है। सोलह कला चंद्रमा की। सोलह कला भगवान श्री कृष्ण की। चन्द्रमा की सोलह कलाओं को देखें तो इनके नाम अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूणार्मत। इसी को प्रतिपदा, दूज, एकादशी, पूर्णिमा आदि भी कहा जाता है। इसी तरह से 16 कला हैं। अर्थात 15 कला शुक्ल पक्ष और एक उत्तरायण कला कुल हो गई सोलह। अब जिस तरह से चंद्रमा के प्रकाश की सोलह अवस्थाएं या कलाएं हैं उसी तरह से आदमी के मन में भी एक प्रकाश होता है और मन को चंद्रमा के समान ही माना गया है, जिसकी अवस्था घटती और बढ़ती रहती है। देखा जाए तो चंद्रमा की इन सोलह अवस्थाओं से ही सोलह कलाओं का जन्म हुआ। कला को वैसे सामान्य शाब्दिक अर्थ के रूप में देखा जाए तो यह एक विशेष प्रकार का गुण मानी जाती है। यानि सामान्य से हटकर सोचना, सामान्य से हटकर समझना, सामान्य से हटकर खास अंदाज में ही कार्यों को अंजाम देना कुल मिलाकर लीक से हटकर कुछ करने का ढंग व गुण जो किसी को आम से खास बनाते हों कला की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। भगवान विष्णु ने जितने भी अवतार लिए सभी में कुछ न कुछ खासियत थी वे खासियत उनकी कला ही थी। भगवान श्री कृष्ण को संपूर्ण सोलह कलाओं का अवतार माना जाता है । भगवान श्रीराम में बारह कलाएं थी। सामान्य मनुष्य में पांच तथा श्रेष्ठ मनुष्य में आठ कलाएं मानी गई हैं। कलाओं की बात करें तो इनके नाम श्री संपदा, भू संपदा, कीर्ति संपदा, वाणी सम्मोहन, लीला, कांति, विद्या, विमल, उत्कर्षिणि शक्ति, नीर-क्षीर विवेक, कर्मण्यता, योगशक्ति, विनय, सत्य धारणा, आधिपत्य और अनुग्रह क्षमता है। कुल मिलाकर जिसमें भी ये सभी कलाएं अथवा इस तरह के गुण होते हैं वह ईश्वर के समान ही होता है। क्योंकि किसी इंसान के वश में तो इन सभी गुणों का एक साथ मिलना दूभर ही नहीं असंभव सा लगता है, क्योंकि साक्षात ईश्वर भी अपने दशावतार रूप लेकर अवतरित होते रहे हैं। मान्यता है कि सरस्वती देवी की पूजा से भी कलाएं विकसित की जा सकती हैं। क्योंकि सरस्वती देवी भी सोलह कलाओं की देवी हैं। मन, विचार और कला की देवी होने और चंद्रशक्ति होने से ही उनकी पूजा करने का विधान शरदपूर्णिमा को है।
इसी तरह से वर्ष फल पद्धति अपने आप में एक महत्वपूर्ण पद्धति है। वर्ष फल में ताजिक योगों का बहुत ज्यादा महत्व है। ताजिक ज्योतिष वर्ष फल बताने की एक पद्धति है। यह ताजिक योग शुभ और अशुभ दोनों प्रकार से बनते हैं। योग तो बहुत से हैं लेकिन सोलह योगों का महत्व अधिक है, जो इस प्रकार से हैं। इक्कबाल योग, इन्दुवार योग, इत्थशाल योग, ईशराफ योग, नक्त योग, यमया योग, मणऊ योग, कम्बूल योग, गैरी कम्बूल योग, खल्लासर योग, रद्द योग, दुष्फाली कुत्थ योग, दुत्थकुत्थीर योग, ताम्बीर योग, कुत्थ योग तथा दुरुफ योग। सोलह की चर्चा अभी जारी है।
क्रमश:

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