Monday, August 17, 2020

मुआ कोरोना-23

बस यूं ही

अगर आप फिल्मों के शौकीन हैं तो भी और अगर नहीं हैं तो भी यकीनन गब्बरसिंह का नाम तो जरूर सुना होगा। अरे वो ही चर्चित फिल्म शौले वाला डाकू गब्बरसिंह। और अगर फिल्म देखी है तो इस फिल्म के जेलर तो आपको याद ही होंगे। अपने जयपुर वाले हास्य कलाकार गोवर्धन असरानी। साथ ही उनका वो डॉयलॉग 'हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं।' तो जरूर ही याद होगा। याद कीजिए वो सीन जब जेल में जेलर साहब बड़े ही आत्मविश्वास के साथ बेफिक्र होकर कहते हैं, 'यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता।' तभी एक कबतूर उनके मुंह के लगभग छूता हुआ निकल जाता है और जेलर साहब लड़खड़ा जाते हैं। खैर, यह परिंदे वाला डॉयलॉग मुझे इसलिए याद आया क्योंकि इस बार किसी परिंदे ने पर नहीं मारा बल्कि तमाम सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताते हुए कोरोना ने दस्तक दी है। जयपुर जिला जेल में एक दो नहीं बल्कि कोरोना पॉजिटिव मिलने का शतक लग गया है। एक ही दिन में 119 पॉजिटिव मिले हैं। जेल जैसी जगह पर भी कोरोना की दस्तक से समझा जा सकता है कि कोरोना से जद से अछूता कोई नहीं है। मामला जेल से जुड़ा है, इसलिए गंभीर भी है। चर्चाएं तो इस बात की भी हैं कि जेल तक कोरोना कहीं प्रायोजित तरीके से तो नहीं पहुंच गया। नशा, मोबाइल, सिम आदि भी तो जेलों में पहले मिलते रहे हैं। यहां तक जेलों से ही अपराधियों के फेसबुक एवं स्टेटस अपडेट होने की खबरें भी आती रही हैं। बहरहाल, जेल प्रशासन के समक्ष बड़ी चुनौती इन 16 बंदियों को तलाश करना है, जो हाल ही में जमानत पर छूट कर गए थे। जेल में कोरोना लापरवाही से फैला या प्रायोजित तरीके से यह जांच का विषय हो सकता है। हां कालांतर में कोरोना की जेल में घुसपैठ पर जुमले बन जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं। हां जुमले से याद आया। कल ही तो झुंझुनूं से एक मैसेज आया था। मैसेज के जिक्र से पहले बता दूं कि झुंझुनंं सहित राज्य के कई शहरों में वाहनों के आगे नाम लिखाने का बड़ा शौक है। कोई प्रेस लिखवाता है तो कोई आर्मी। कोई किसी संगठन के प्रदेशाध्यक्ष की नेम प्लेट लटका कर घूमता है तो कोई अपनी जाति या सरनेम लिखकर ही इतराता है। पूर्व सैनिक लिखे वाहन भी खूब दौड़ते मिल जाएंगे। खैर, मुझे जो मैसेज मिला वो भी तो गाड़ी पर नाम लिखवाने से ही संबंधित है, मैसेज देखिए, 'आज मैंने कार पर एक स्टीकर देखा, लिखा 'भूतपूर्व कोरोना रोगी' इस स्टीकर को देखने के बाद मैंने इसके बारे में अगली लाल बत्ती पर गाड़ी रुकवा कर पूछताछ की तो ड्राइवर ने कहा कि जी यह स्टीकर देखकर पुलिस वाले गाड़ी चलाने वाले की दारू टेस्ट नहीं करते।' बात भले ही जुमले में कही गई है लेकिन इसमें सच्चाई भी छुपी हुई है। नेम प्लेट हो या चाहे स्टीकर इनके जलवे तो हैं ही। हमारी जमात मतलब प्रेस लाइन में तो नाम लिखवाने का चस्का सातवें आसमान पर है। यहां तक कि कपड़े धोने वाले व शराब ठेकेदार के कारिंदे तक भी बेखौफ होकर प्रेस लिखवाने लगे हैं। मेरा मानना है, नेम प्लेट लगवाने के यकीनन फायदे हैं। पिछले दिनों की ही बात है, एक परिचित की गाड़ी में हरियाणा जाना हुआ। उनकी गाड़ी जिला प्रशासन के यहां अनुबंध पर लगी है, लिहाजा उन्होंने नंबर प्लेट के ऊपर लाल पट्टी बनाकर राजस्थान सरकार लिखा रखा है। हरियाणा में प्रवेश करते ही उन्होंने गाड़ी के ब्रेक लगाए और रोड के एक तरफ खड़ी करके राजस्थान सरकार लिखी नंबर प्लेट उतारी और साधारण नंबर प्लेट लगा दी। यह सब देखकर मैं चकित था। परिचित से बिना पूछे ही मैं माजरा समझ चुका था। कोरोना काल में भी गाड़ी पर स्टीकर लिखवाने का आइडिया भले ही हकीकत में न आया हो लेकिन जुमले के रूप में तो आ ही गया। हो सकता है कोई उत्साही या सिरफिरा यह बात भी हकीकत में चरितार्थ कर दे। देश में वैसे भी सिरफिरों की कमी तो है नहीं ।
क्रमश:

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