Thursday, July 2, 2020

लापरवाही का आलम

टिप्पणी
नगर परिषद की ओर से एक नाले के प्रति लंबे से की गई उपेक्षा का दंश अब शहर का वो हर वाहन चालक व राहगीर भोग रहा है, जो मटका चौक से गोल बाजार तक की रोड से गुजरता है। लोगों की माने तो लंबे समय से इस नाले की सफाई ही नहीं हुई या कभी हुई तो सफाई के नाम पर महज औपचारिकता। नाले में ठहरा हुआ पानी जब सड़ांध मारने लगा तो दुकानदारों का धैर्य जवाब देना ही था। अपनी पीड़ा के लिए उनको सड़कों पर उतरना पड़ा। आखिकार उनके विरोध के आगे नगर परिषद अमले को झुकना पड़ा और आनन-फानन में नाले की सफाई का काम शुरू करवाया।
रविवार को नाले की सफाई के काम की वजह से यातायात कुछ दूरी पर डायवर्ट किया गया। सोमवार व मंगलवार को भी यातायात डायवर्ट रहा लेकिन काम बंद है। तीन दिन से यातायात प्रभावित है लेकिन नाले की सुध लेने में उदासीनता बरती जा रही है। वैसे भी रवीन्द्र पथ शहर का सबसे व्यस्तम मार्ग है। खासकर इस मार्ग पर बने सभी चौराहों पर वाहनों की रेलमपेल इतनी है कि दिनभर जाम लगता ही रहता है। यातायात पुलिसकर्मियासें की लाख मशक्कत के बावजूद व्यवस्था पटरी पर नहीं आती। अब नाले का मलबा होने के कारण जाम ज्यादा लग रहा है। वाहन चालक दिनभर जाम में फंस रहे हैं। नाले का काम जहां अटकाया गया था, अभी भी वह उसी स्थिति में है।
परिषद के जिम्मेदारों की अक्सर यह आदत रही है कि वे हरकत में तभी आते हैं जब कोई विरोध या प्रदर्शन करता है। क्या उसे तीन दिन से जाम में फंसे वाहन चालकों की पीड़ा से कोई सरोकार नहीं? क्या जाम में फंसे वाहनों की लंबी कतार जिम्मेदारों को दिखाई नहीं देती? क्यों तीन दिन से आवागमन प्रभावित है? इन तमाम बातों को लेकर कोई गंभीरता नहीं बरती जा रही। जाम में फंसने का दर्द वो ही जानता है जिसने भोगा है। या फिर इन जिम्मेदारों की आंख तभी खुलेगी जब इस काम के लिए भी लोग सड़क पर प्रदर्शन के लिए उतरेंगे? आवागमन सुगम हो। वाहन आसानी से आए-जाएं। किसी तरह का कोई जाम न लगे। इसके लिए नगर परिषद को यह काम तत्काल शुरू करवाना चाहिए। जनता से जुड़े इस मामले में ज्यादा उदासीनता अब उचित नहीं।

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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 22 जनवरी 20 के अंक में प्रकाशित 

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