Thursday, July 2, 2020

सवाल फिर भी कायम

टिप्पणी
पूर्व पार्षद पर हमले और जलाने की कोशिश वाले मामले का आखिर नाटकीय रूप से पटाक्षेप हो गया। इसी के साथ इस हमले के पीछे की कहानी भी समझौते में दफन हो गई। मान लेना चाहिए पर्दे के पीछे का राज अब राज ही रहेगा। एक पक्ष ने गलती मान ली और दूसरे ने उसे माफ कर दिया। गलती क्यों हुई थी? क्यों की गई थी? गलती प्रायोजित थी? या इस हमले का सूत्रधार कोई और था? जैसे तमाम सवालों पर भी विराम लग गया है। खैर, कुछ सवालों पर विराम लगने के साथ ही नए सवाल भी पैदा हो गए हैं। दोनों पक्षों के बीच ऐसा क्या था, जो मारपीट और जलाने की कोशिश तक पहुंच गया। और ऐसा क्या चमत्कार हुआ कि जान का दुश्मन बनने वाला ठेकेदार यकायक गलती मानने को भी तैयार हो गया। इस समूचे घटनाक्रम से इतना तो तय है कि पार्षद और ठेकेदार के बीच कुछ न कुछ तो जरूर था। और इस कहानी के राजदार और भी हैं। कोई बड़ी बात नहीं उन्हीं राजदारों ने यह समझौता करवाने में भूमिका निभाई हो। फिर भी जनता के सामने माफी के मायने भी तो साफ होने चाहिए। गलती मानने से क्या वो सब कथित मामले अब ठंडे बस्ते में चले जाएंगे, जिनको लेकर पार्षद मुखर थे। सफाई व्यवस्था को लेकर जो बातें कही जा रही थी, उनका अब क्या होगा? इस समझौते से तो यही जाहिर होता है कि सफाई व्यवस्था को भी अब सही मान लिया गया या मान लिया जाएगा। दरअसल नगर परिषद की कहानी और पार्षदों की राजनीति हमेशा से चर्चा में रही है।
बहरहाल, यह घटनाक्रम भी अपने आप में अजूबा था और इसका पटाक्षेप इससे कहीं ज्यादा आश्चर्यजनक तरीके से हुआ। लेकिन सब काम अंदरखाने होने के कारण सवाल जिनके जवाब आने चाहिए थे वो बाहर नहीं आए। न पीडि़त कुछ बोले न आरोपी। और अब तो दोनों के बोलने का सवाल ही नहीं उठता। दोनों के बीच गिले-शिकवे दूर जो हो गए हैं। सवालों के शोर में सवाल यह भी है कि ठेकेदार के पीछे कौन और पूर्व पार्षद के पीछे कौन है। और आखिर ऐसी क्या मजबूरी व लाचारी रही कि दोनों एक हो गए।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 08 फरवरी 20 के अंक में.प्रकाशित...

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