Thursday, July 2, 2020

धैर्य की परीक्षा न ले सरकार!

पीड़ा
रतनशहर। जी हां रतनशहर। मेरा सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन। मेरे गांव से इसकी दूरी बामुश्किल आठ या नौ किलोमीटर ही होगी। इस स्टेशन से मेरी बचपन की यादें जुड़ी हैं। मां के साथ ननिहाल जाता तो रतनशहर से लोहारू की ट्रेन पकड़ते। जयपुर जाना हो या दिल्ली, रतनशहर से आकर ही ट्रेन पकड़ी। नवलगढ़ कॉलेज में दाखिला लिया तो रोजाना अपडाउन भी ट्रेन से ही हुआ। आज रतनशहर ही याद इसलिए आई क्योंकि यहां एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव खत्म कर दिया गया है। आमान परिवर्तन से पहले जब यहां मीटर गेज लाइन थी तब यहां सभी ट्रेन रुकती थी। लोकल हो चाहे एक्सप्रेस। सभी का ठहराव इस स्टेशन पर होता था। इसकी प्रमुख वजह यह भी है कि आसपास के काफी गांवों व ढाणियों का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन यही है। बगड़ साइड के लोग हो या इस्लामपुर की तरफ से। दोनों ही क्षेत्रों के काफी लोग रतनशहर आकर ही ट्रेन पकड़ते रहे हैं। लंबे इंतजार के बाद आमान परिवर्तन हुआ। मीटर गेज से ब्रॉडगेज बनी। लोगों ने मेह (बारिश ) की तरह इस काम के पूरा होने का इंतजार किया। सभी का सपना था कि छोटी से बड़ी ट्रेन में बैठा जाए। साथ ही जयपुर व दिल्ली की यात्रा कम समय व कम पैसे में हो। इंतजार खत्म हुआ लेकिन ट्रेन नहीं चली। जो चली वह तीन दिन के लिए। हालिया दिनों में दो एक्सप्रेस भी चली लेकिन उसका ठहराव रतनशहर नहीं है। यह क्षेत्र के लोगों के साथ धोखा है। इतने इंतजार के बाद ठहराव खत्म की खबर निसंदेह झटका देने वाली है। ब्रॉडगेज बनने के बाद भी रेल की रफ्तार में ज्यादा सुधार नहीं है। फिर भी ठहराव खत्म कर दिया है। शायद रेलवे को ध्यान नहीं है, सवारियों के मामले में रतनशहर स्टेशन, झुंझुनूं के समकक्ष है। बगड़ के पाबू धाम की मान्यता बढऩे के बाद तो रतनशहर पर इतनी सवारियां आने लगी कि एक पूरी ट्रेन इसी स्टेशन से भर जाए। लब्बोलुआब यह है कि राजस्व के मामले में रतनशहर स्टेशन झुंझुनूं जिले के किसी भी स्टेशन से कम नहीं है।
बहरहाल, इस स्टेशन पर एक्सप्रेस ट्रेनों के ठहराव की मांग को लेकर जागरूक लोग पांच फरवरी से क्रमिक अनशन पर बैठे हैं। धीरे-धीरे इस आंदोलन से जुडऩे वाली की संख्या बढ़ रही है। चूंकि मैं भी इसी क्षेत्र का हूं, इसलिए मेरा भी इस आंदोलन को पूरा समर्थन है। प्रदर्शन करने वालो की प्रमुख मांग यहां से गुजरने वाली कोटा-हिसार व जयपुर- सराय रोहिल्ला एक्सप्रेस ट्रेनों के ठहराव की है। आंदोलनकारियों ने वैसे पांच मार्च तक क्रमिक अनशन की घोषणा कर रखी है। इसके बाद उनकी मांगों को नहीं सुना गया तो यह लोग आमरण अनशन करेंगे। चूंकि रेल केन्द्र का मामला है। इसलिए स्थानीय सांसद को इस मामले में प्राथमिकता से दिलचस्पी दिखानी चाहिए। वो सत्तारुढ़ दल के हैं। हो सकता है, कहीं उनको इस बात की आशंका हो कि रतनशहर का समर्थन करने से कहीं वो लोग भी आवाज न उठाने लग जाएं, जिनके स्टेशनों पर ठहराव खत्म हो गया। सांसद की आशंका गलत भी नहीं है। एक्सप्रेस एवं लोकल का अंतर होता है, होना भी चाहिए लेकिन रतनशहर का मामला अलग है। वह अपवाद भी हो सकता है। क्योंकि जहां ठहराव खत्म किया गया है वो स्टेशन, रतनशहर के समकक्ष नहीं है। न सवारियों के मामले में, न इतने गांव-ढाणियों से जुड़ाव के कारण। और रतनशहर का राजस्व भी कम नहीं है। इतना सब कुछ है तो फिर लोगों के धैर्य के परीक्षा क्यों ली जा रही है। यह सरासर नाइंसाफी है। अपनी जायज मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे लोगों की बात को न केवल सुनना होगा बल्कि उन पर गौर भी करना होगा। यह जनहित से जुड़ा मामला है। इसको राजनीतिक चश्मे से भी बिलकुल नहीं देखना चाहिए। सभी दलों.को दलगत भावना से ऊपर उठकर इस मांग का समर्थन करना चाहिज। यह जायज मांग है। इसका जितना जल्दी हो, समाधान होना चाहिए। मैं तो इतना कहूंगा कि न केवल इन दो एक्सप्रेस ट्रेनों बल्कि भविष्य में जितनी भी एक्सप्रेस ट्रेन यहां से चले उन सबका ठहराव रतनशहर होना चाहिए। आखिर में एक बार और। लोकतंत्र में सरकार अगर सिर गिनकर ही काम करती है तो कोई बड़ी बात नहीं यहां भी सिर जुट जाएं। भले आंदोलन में.जुटें या चुनाव में। उनकी उचित मांग को लंबे समय तक लंबित रखना एक तरह का अन्याय ही है।.साथ ही सहनशील व जागरूक लोगों के धैर्य की परीक्षा भी। सरकार से गुजारिश है कि वो अब और परीक्षा न ले।

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