Thursday, July 2, 2020

एेसा गांव है मेरा-3

बस यूं ही
शनिवार सुबह 8.25 पर आंख खुली। मोबाइल चैक किया तो सवा आठ बजे के करीब हनुमानसिंह जी झाझडि़या की मिस कॉल आई हुई थी। मैं उनको रि-डायल करने ही वाला ही था कि उनकी कॉल फिर आ गई। फोन पर एक दूसरे से रामा-श्यामा करने के बाद हमने एक दूसरे की कुशलक्षेप पूछी। फिर भाईसाहब ने बताया कि वो सेनेटाइजर बोतल का वितरण कर रहे हैं, इसलिए सोचा क्यों न आपको भी एक बोतल दे दूं। भाईसाहब ने 11 बजे का आने का कहा। ठीक 11.02 बजे भाईसाहब का फोन आया और बोले मैं आरटीओ आफिस के सामने खड़ा हूं, आप आ रहे हो या मैं आऊं। मैंने भाईसाहब को वहीं रुकने या फिर आरटीओ फाटक के पास पहुंचने का कहा और कार लेकर उनकी ओर चल पड़ा। फाटक के पास वो अपने कार से नीचे खडे़ मेरा ही इंतजार कर रहे थे। मैंने अपनी कार उनकी कार के पीछे रोक दी। भाईसाहब आए और एक सेनेटाइजर की बोतल दी और कहा कि आज गांव वालों को बांट रहा हूं। फिर उन्होंने केहरपुरा की तीन राजपूतों की बेटियां के नाम भी बताएं, जो अभी जोधपुर ही रहती है। फिर भाई रवीन्द्रसिंह पुत्र मानसिंह जी ठेकेदार का नाम लिया। बताया कि इन सबको बोतल देकर आया हूं। यह एकदम ओरिजनल है। किसी विश्वस्त आदमी से मंगवाई यह हैं। और जरूरत पड़े तो बोल देना। इसके बाद भाईसाहब कार की तरफ बढ़े तथा खाने का पैकेट लेकर आए और बोले इस तरह के पैकेट वितरित कर रहा हूं। एकदम पैकिंग वाले। फिर कार की तरफ बढ़े और खाने के बहुत से पैकेट दिखाए। मैंने जिज्ञासावश भाईसाहब से पूछ लिया कि यह सब कब से? तो बोले लॉकडाउन वाले दिन से ही तीन सौ पैकेट सुबह तथा तीन सौ शाम को वितरित कर रहा हूं। शहर की बजाय शहर से लगते आसपास के ग्रामीण इलाकों में कार से चला जाता हूं और ग्रामीणों को बांट कर आता हूं। खाना शहर में एक होटल से विशेष रूप से तैयार करवाया जा रहा है। स्वच्छता का पूरा ख्याल रखा जाता है। भाईसाहब ने बताया कि करीब डेढ सौ सेनेटाइजर बोतल भी बांट चुका हूं। चूंकि गांव वालों के लिए भाईसाहब अजनबी नहीं हैं लेकिन बाहर के साथियों को बता दूं कि हनुमानगढ़सिंह झाझडि़या जोधपुर में लंबे से निवासरत हैं। जोधपुर जिले में विभिन्न पुलिस थानों में रहे। सेवानिवृत्ति के बाद जोधपुर में ही स्थायी रूप से रहने लगे हैं। गांव से भी इनका लगाव निरंतर बना हुआ है। भाईसाहब की मिलनसारिता व व्यवहार का हर कोई कायल है। कोई अजनबी अगर पहली बार मिले तो मेरा दावा है वो उनको झुंझुनूं का मानने से ही इनकार कर देगा। मारवाड़ी बोली व संस्कार का भाईसाहब व इनके परिवार पर गहरा असर है। अपने परिवार की तरह ही भाईसाहब की सेवा भावना भी प्रशंसनीय व प्रेरणादायी है।

No comments:

Post a Comment