Thursday, July 2, 2020

शुक्र है वह लौट आई

बस यूं ही
शाम चार बजे का समय। योगू चीकू दौड़ते हुए आए और बोले, पापा मिन्नी आ गई। सच में मेरी खुशी का ठिकाना न था। सुबह से ही कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। मैं चारपाई से सीधा गैलरी की तरफ दौड़ा। वह बिलकुल घबराई एवं डरी सहमी सी नजर आई। पता नहीं एेसा क्या हुआ, हम सब से बिलकुल न डरने वाली मिन्नी एक अनजाने भय से घिरी अजनबी की तरह देख रही थी। पता नहीं उसमें क्या डर बैठा। मैंने उसे छूने का प्रयास किया। प्यार पास से भी बुलाया था लेकिन वो बेसुध सी थी। यकीनन रात के घटनाक्रम से वह सहज नहीं हो पा रही थी। निर्मल ने उसको दूध पिलाया। उसने दूध तो पीया इसके बाद वह इधर-उधर घूमी। उसने सभी जगह को देखा और सूंघा। मैं उसके पास गया। उसको छूने का प्रयास भी किया, पास भी बुलाया लेकिन उसका व्यवहार एकदम से बदला-बदला था। मैंने उसको पुचकारने का भरपूर प्रयास किया लेकिन वह सामान्य नहीं हो पाई। थोड़ी देर बाद वह फिर आंखों से ओझल हो गई। मैंने बार-बार उसको इधर उधर देखा पर वह नहीं मिली। शाम तक वह गायब ही थी। शायद उसका डर दूर नहीं हुआ। खैर, उसका व्यवहार फिर से बदलने का यकीन तो मुझे है लेकिन सबसे बड़ा संतोष यह है कि वह जिंदा है और उसने लौटकर शायद यही बताया भी कि आप चिंता न करें मैं जिंदा हूं। भगवान का शुक्र है सुबह का तनाव शाम-शाम होते दूर हो गया था। मिन्नी लौट आई .

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