Thursday, July 2, 2020

बातों से नहीं बनेगी बात




टिप्पणी
पुरानी कहावत है कि लातों के भूत बातों से बात नहीं मानते। श्रीगंगानगर के सदंर्भ में यह कहावत सटीक बैठती है। मामला चाहे प्रशासनिक स्तर का हो चाहे जनप्रतिनिधियों का, वो बयानों की बारिश ज्यादा करते हैं और बात कोई मानता नहीं। ऐसा इसलिए, क्योंकि काम में कोताही करने वालों पर कार्रवाई के बजाय निर्देश देकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। प्रशासनिक अधिकारियों के निर्देश भी तो एक तरह की बात ही है। बात इसीलिए क्योंकि न तो मातहत इनको गंभीरता से लेते हैं और न ही अव्यवस्था में कोई सुधार नजर आता है। वैसे भी अधिकारी अपने मातहतों को अक्सर निर्देश ही जारी करते हैं। ज्यादा हुआ तो मौका-मुआयना। जनप्रतिनिधि थोड़ा आगे बढ़कर धरना प्रदर्शन कर देते हैं। मंगलवार को जिला कलक्टर ने शहर की सड़कों की मरम्मत तथा नालों की सफाई के निर्देश दिए। मतलब, उन्होंने औपचारिकता निभा दी। इधर, नगर परिषद आयुक्त ने शहर में जहां गंदा पानी सड़कों पर फैला है, वहां निरीक्षण किया और अधीनस्थों को नाले की सफाई करने की हिदायत दी। इतना ही नहीं सतारुढ़ बोर्ड के पार्षद ने तो धरना देकर अपनी जिम्मेदारी निभा दी।
खैर, इस तरह के निर्देशों, निरीक्षणों एवं प्रदर्शनों के बावजूद समस्या यथावत रहती है तो समझा जा सकता है, समस्या कहां है और क्यों हैं। लंबे समय से वहीं अधिकारी, मातहत भी वो ही हैं तो फिर निर्देशों व निरीक्षणों की औपचारिकता किसलिए? इन निर्देशों से शहर का भला नहीं होने वाला। अब तो जो जिस अव्यवस्था के लिए जिम्मेदार है, उस पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। जब तक कार्रवाई नहीं होगी, व्यवस्था में बदलाव नहीं होगा, जिम्मेदारों के चेहरों में फेरबदल नहीं होगा, तब तक शहर का भला नहीं होगा। वैसे भी जिम्मेदारों को भली-भांति पता है कि बातों से शहर का भला नहीं होने वाला, क्योंकि उनको सबसे मुफीद यही बातें (निर्देश-निरीक्षण ) ही तो लगती हैं। बात सोचने की है क्योंकि बातों से अब बात नहीं बनने वाली। जिम्मेदार अब तक शहरवासियों को 'बातों' की चाश्नी में डूबे दिलासे देते रहे हैं। उम्मीद है यह सिलसिला अब थमेगा।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर के 13 फरवरी 20 के अंक में प्रकाशित ....

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