स्मृति शेष : विनोद खन्ना
ठीक से तो याद नहीं लेकिन संभवत: नब्बे के दशक में दूरदर्शन पर विनोद खन्ना की फिल्म 'हाथ की सफाई' आई थी। पूरी कहानी भी याद नहीं है लेकिन फिल्म का वह डायलॉग आज भी जेहन में गूंजता है। फिल्म एक जेबकतरे की कहानी पर आधारित थी। इसमें विनोद खन्ना की जेब जब कोई दूसरा काटता है तो वह उसका हाथ पकड़कर कहते हैं.. 'बच्चे जिस स्कूल में तुम पढ़ते हो हम उसमें हैडमास्टर रह चुके हैं।' यह डायलॉग बचपन में इतनी बार बोला कि यह जेहन में स्थायी रूप से चस्पा हो गया। इसी फिल्म के साथ दूसरा संयोग यह जुड़ा कि इसका गीत इतनी बार सुना और गुनगुनाया कि बरबस इसके बोल होठों पर आ ही जाते हैं। 'वादा करले साजना तेरे बिना मैं ना रहूं मेरे बिना तू ना रहे होके जुदा यह वादा रहा' खैर, खबर यह है कि प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना गुरुवार को हमारे से रुखसत हो गए। थोड़े दिन पहले ही उनकी एक फोटो वायरल हुई थी, जिसमें वे बेहद कमजोर और बीमार नजर आए। विनोद खन्ना की पहली फिल्मी पारी तो जन्म से पहले ही खेली जा चुकी थी लेकिन जब उन्होंने दूसरी पारी संभाली तब तक फिल्मों की चस्का लग चुका था। हालांकि साथ-साथ उनकी पहली पारी की फिल्में भी देखी। 'मुकदर का सिकंदर' तो इतनी पसंद है कि बार-बार देखने को जी करता है। खैर नब्बे के दशक में जब भी कोई फिल्म रिलीज होती तो बड़े ही ठसके से कहते यह विनोद खन्ना की फिल्म है।
आज इस कालजयी कलाकार के निधन पर उन्हीं की फिल्मों के नाम से लिखने तथा उनको श्रद्धांजलि देने की ठानी। हालांकि विचार आते-आते रात के साढ़े दस बज चुके थे। खैर, 'मन का मीत' यह ' महाबदमाश' 'दयावान' ' इंसान' जिंदगी के 'इम्तिहान' में इस कदर 'हेराफेरी' कर चला जाएगा किसने सोचा था। कभी 'शंकर शंभू' कभी ' महादेव' कभी ' मुकदर का सिकंदर' बना यह ' दबंग' जिंदगी की 'आखिरी अदालत' में इस तरह ' अचानक' हारेगा यकीन नहीं हो रहा है। इस 'फरिश्ते' की 'जन्मकुंडली' में इतना 'महासंग्राम' लिखा था कि 'खून-पसीने' से तैयार किए गए 'राजमहल' को छोड़कर चला गया। यह 'रखवाला' दिलों में आज इस कदर 'कैद' है कि जिंदगी भर कभी इसकी ' रिहाई' नहीं होगी। 'कुदरत' के आगे आज यह 'क्षत्रिय' हार गया। 'इंसाफ' और 'जुर्म' की दुनिया में इस 'दिलवाले' ने शोहरत और ' दौलत' भी खूब कमाई। ' अमर अकबर एंथोनी' के इस अमर पर 'आरोप' भी लगे 'लेकिन' 'सत्यमेव जयते; का यह पक्षधर अपने फैसलों पर अडिग रहा। यह कभी 'सूर्या' बनकर चमका तो कभी इसकी शीतल 'चांदनी ने आंखों को सुकून प्रदान किया।
क्रमश: .....
ठीक से तो याद नहीं लेकिन संभवत: नब्बे के दशक में दूरदर्शन पर विनोद खन्ना की फिल्म 'हाथ की सफाई' आई थी। पूरी कहानी भी याद नहीं है लेकिन फिल्म का वह डायलॉग आज भी जेहन में गूंजता है। फिल्म एक जेबकतरे की कहानी पर आधारित थी। इसमें विनोद खन्ना की जेब जब कोई दूसरा काटता है तो वह उसका हाथ पकड़कर कहते हैं.. 'बच्चे जिस स्कूल में तुम पढ़ते हो हम उसमें हैडमास्टर रह चुके हैं।' यह डायलॉग बचपन में इतनी बार बोला कि यह जेहन में स्थायी रूप से चस्पा हो गया। इसी फिल्म के साथ दूसरा संयोग यह जुड़ा कि इसका गीत इतनी बार सुना और गुनगुनाया कि बरबस इसके बोल होठों पर आ ही जाते हैं। 'वादा करले साजना तेरे बिना मैं ना रहूं मेरे बिना तू ना रहे होके जुदा यह वादा रहा' खैर, खबर यह है कि प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना गुरुवार को हमारे से रुखसत हो गए। थोड़े दिन पहले ही उनकी एक फोटो वायरल हुई थी, जिसमें वे बेहद कमजोर और बीमार नजर आए। विनोद खन्ना की पहली फिल्मी पारी तो जन्म से पहले ही खेली जा चुकी थी लेकिन जब उन्होंने दूसरी पारी संभाली तब तक फिल्मों की चस्का लग चुका था। हालांकि साथ-साथ उनकी पहली पारी की फिल्में भी देखी। 'मुकदर का सिकंदर' तो इतनी पसंद है कि बार-बार देखने को जी करता है। खैर नब्बे के दशक में जब भी कोई फिल्म रिलीज होती तो बड़े ही ठसके से कहते यह विनोद खन्ना की फिल्म है।
आज इस कालजयी कलाकार के निधन पर उन्हीं की फिल्मों के नाम से लिखने तथा उनको श्रद्धांजलि देने की ठानी। हालांकि विचार आते-आते रात के साढ़े दस बज चुके थे। खैर, 'मन का मीत' यह ' महाबदमाश' 'दयावान' ' इंसान' जिंदगी के 'इम्तिहान' में इस कदर 'हेराफेरी' कर चला जाएगा किसने सोचा था। कभी 'शंकर शंभू' कभी ' महादेव' कभी ' मुकदर का सिकंदर' बना यह ' दबंग' जिंदगी की 'आखिरी अदालत' में इस तरह ' अचानक' हारेगा यकीन नहीं हो रहा है। इस 'फरिश्ते' की 'जन्मकुंडली' में इतना 'महासंग्राम' लिखा था कि 'खून-पसीने' से तैयार किए गए 'राजमहल' को छोड़कर चला गया। यह 'रखवाला' दिलों में आज इस कदर 'कैद' है कि जिंदगी भर कभी इसकी ' रिहाई' नहीं होगी। 'कुदरत' के आगे आज यह 'क्षत्रिय' हार गया। 'इंसाफ' और 'जुर्म' की दुनिया में इस 'दिलवाले' ने शोहरत और ' दौलत' भी खूब कमाई। ' अमर अकबर एंथोनी' के इस अमर पर 'आरोप' भी लगे 'लेकिन' 'सत्यमेव जयते; का यह पक्षधर अपने फैसलों पर अडिग रहा। यह कभी 'सूर्या' बनकर चमका तो कभी इसकी शीतल 'चांदनी ने आंखों को सुकून प्रदान किया।
क्रमश: .....
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