शहर के वार्ड 34 के लोगों के संघर्ष का परिणाम रंग लाया। सप्ताहभर से वार्डवासी पार्षद के घर पर लग रहे एक मोबाइल टावर का विरोध जता रहे थे। आखिरकार विरोध व एकजुटता को देखते हुए नगर परिषद को टावर लगाने की कवायद रोकनी पड़ी। यह मामला महत्वपूर्ण इसीलिए है, क्योंकि यह लोगों की एकजुटता की जीत है। विरोध मोबाइल टावर का तो था ही इसकी एक बड़ी वजह जनप्रतिनिधि के घर पर लगना भी था। वह जनप्रतिनिधि जो वार्डवासियों के वोटों से जीता और उन्हीं को अंधेरे में रखकर यह टावर लगवाया जा रहा था। ऐसे में लोगों का गुस्सा बढऩा स्वभाविक था। टावर लगवाने के लिए भले ही पार्षद ने नगर परिषद से अनुमति (एनओसी) ली हो यह अलग विषय है लेकिन इसके गुपचुप तौर-तरीकों ने लोगों के विरोध को बढ़ाया।
जनप्रतिनिधि शुरू में ही अगर खुद चलाकर ही वार्डवासियों की बात को स्वीकार कर लेते तो उनका कद बढ़ जाता। आज इस तरह किरकिरी तो नहीं होती। बहरहाल, वार्ड के लोग बधाई के पात्र हैं कि वे अपनी बात पर अडिग रहे और परिषद अधिकारियों को अंतत: उनकी बात माननी पड़ी। वाकई यह जीत जनता जनार्दन की है। यह जीत कई मायनों में अलग है। यह एकजुटता एक तरह की नजीर है। 'मेरा क्या लेता है।' 'मेरा क्या जा रहा है।' 'जब सामने वाला ही नहीं बोल रहा है तो मैं क्यों बोलूं। जैसी मानसिकता में जीने वालों को यह जीत दर्पण दिखाती है। और हां, इस तरह के संघर्ष केवल टावर तक ही सीमित नहीं होने चाहिए। जहां भी जनता के हितों की अनदेखी हो वहां इसी तरह एकजुटता से पेश आना चाहिए। जनता जिस दिन जिम्मेदारों से सवाल जवाब करेगी, उनको कठघरे में खड़ा करना शुरू करेगी, नि:संदेह आधी समस्याओं का निस्तारण स्वत: हो जाएगा। परिषद व प्रशासन इस बात से सबक जरूर लें कि इस तरह के मामलों में अनुमति जारी करने से पहले जनता का पक्ष भी जरूर जान लेना चाहिए। अगर यह नहीं जाना जाता या जानने में किसी तरह की चालाकी की जाती है तो जिला प्रशासन को पड़ताल कर संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं हिचकना चाहिए। इतना ही नहीं परिषद के नुमाइंदों पर मिलीभगत के जो आरोप सरेआम लगे हैं, उनकी जांच कर सच्चाई को सार्वजनिक करने से भी गुरेज नहीं करना चाहिए।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 24 अगस्त 17 के अंक में प्रकाशित
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