श्रीगंगानगर. आर्थिक दृष्टि से कमजोर लेकिन प्रतिभाशाली विद्यार्थी आगे की पढ़ाई किस तरह से जारी रखें तथा उनको स्वावलंबी कैसे बनाया जाए? यह दो ज्वलंत सवाल कमोबेश देश के हर छोटे या बड़े शहर में किसी न किसी रूप में जरूर मिल जाएंगे, लेकिन श्रीगंगानगर में इन दोनों सवालों का जवाब आज से 29 साल पहले ही खोज लिया गया था। तब छोटे स्तर पर शुरू हुई यह सकारात्मक पहल अब वटवृक्ष का रूप ले चुकी है। आर्थिक रूप से कमजोर सात हजार से अधिक विद्यार्थियों ने विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति से जुड़कर अपना भविष्य सुनहरा किया है। इनमें कई तो आरजेएस, इंजीनियर, व्याख्याता, डॉक्टर तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों में मैनेजर तक बन चुके हैं। आठवीं तक संचालित इस स्कूल में फिलहाल करीब 300 बच्चे अध्ययनत हैं।
दानदाताओं की लंबी सूची
23 अक्टूबर 1988 को श्रीगंगानगर के एसजीएन खालसा महाविद्यालय के प्राध्यापक श्यामसुंदर माहेश्वरी की अगुवाई में विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति बनी, जिसमें समाज के गणमान्य नागरिकों ने सहयोग किया। वर्तमान में इस संस्था का सहयोग करने वालों की फेहरिस्त लंबी है। शिक्षा का उजियारा फैलाने के इस पुनीत के काम के लिए प्रो. माहेश्वरी को 2009 में पदमश्री से नवाजा जा चुका है।
23 अक्टूबर 1988 को श्रीगंगानगर के एसजीएन खालसा महाविद्यालय के प्राध्यापक श्यामसुंदर माहेश्वरी की अगुवाई में विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति बनी, जिसमें समाज के गणमान्य नागरिकों ने सहयोग किया। वर्तमान में इस संस्था का सहयोग करने वालों की फेहरिस्त लंबी है। शिक्षा का उजियारा फैलाने के इस पुनीत के काम के लिए प्रो. माहेश्वरी को 2009 में पदमश्री से नवाजा जा चुका है।
निजी स्कूलों से कम नहीं है
दानदाताओं के सहयोग से बना विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति उच्च प्राथमिक स्कूल का भवन निजी स्कूल भवनों से कमत्तर नहीं। स्कूल में बच्चों के लिए टाट-पट्टी के बजाय फर्नीचर है। हर कक्षा-कक्ष में पंखे लगे हैं। विद्यालय परिसर में जगह-जगह स्लोगन लिखे हैं। विद्यार्थियों के लिए गणवेश, जूते, बस्ता व पढ़ाई सब नि:शुल्क है। यह विद्यायल भवन 1999 में बना। शिक्षा के साथ सिलाई, संगीत व कम्प्यूटर भीस्कूल में शिक्षा के साथ छात्राओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक कालांश सिलाई प्रशिक्षण का भी है। इसमें बाहर की जरूरतमद महिलाएं भी प्रशिक्षण ले सकती हैं। उनके लिए यह नि:शुल्क है। कम्प्यूटर लैब है तो संगीत की शिक्षा भी दी जाती है। स्कूल परिसर में एक पुस्तकालय भी है, जिसमें करीब तीन हजार किताबें हैं।
होती है बेहद खुशी
जरूरतमंद बच्चे समिति के प्रयासों से जब पढ़ लिखकर आत्मनिर्भर बनते हैं तो बेहद खुशी होती है। आठवीं तक तो बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। आगे की पढ़ाई का खर्चा समिति वहन करती है। विद्यालय संचालन में शहर के दानदानाओं का योगदान है। समिति के सहयोग से पढ़े कई विद्यार्थी भी आत्मनिर्भर बन कर अब समिति की मदद कर रहे हैं। यह सब देखकर सुकून मिलता है।प्रो. श्यामसुंदर माहेश्वरी, सचिव, विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति, श्रीगंगानगर।
जरूरतमंद बच्चे समिति के प्रयासों से जब पढ़ लिखकर आत्मनिर्भर बनते हैं तो बेहद खुशी होती है। आठवीं तक तो बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। आगे की पढ़ाई का खर्चा समिति वहन करती है। विद्यालय संचालन में शहर के दानदानाओं का योगदान है। समिति के सहयोग से पढ़े कई विद्यार्थी भी आत्मनिर्भर बन कर अब समिति की मदद कर रहे हैं। यह सब देखकर सुकून मिलता है।प्रो. श्यामसुंदर माहेश्वरी, सचिव, विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति, श्रीगंगानगर।
---------------------------------------------------------------------------------------------------
राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 13 अगस्त 17 को प्रकाशित
No comments:
Post a Comment