बस यूं ही
मजबूरी। यह शब्द पता नहीं आज क्यों सुबह से ही कानों में गूंज रहा है। बार-बार रह रहकर। इस शब्द की उत्पति व प्रयोग के बारे में सोचने लगा तो फिर सोचता ही चला गया। फिर यकायक ख्याल आया क्यों न आज मजबूरी पर ही लिखा जाए। वाकई मजबूरी का प्रयोग कहां नहीं होता। कौन है जो मजबूरी का मारा नहीं है। वैसे एक बात तो है यह मजबूरी शब्द जितना हकीकत के नजदीक है उतना ही बनावटी भी होता है। किसी का कोई काम नहीं होता है तो अक्सर यही जुमला सुनाई देता है, ' अरे यार मजबूरी थी, वरना मैं यह कर देता। क्यां करूं भाई मजबूरी थी, नहीं तो मैं पक्का पहुंचता आदि आदि।' वाकई मजबूरी शब्द बचाव का कारगर हथियार है। मजबूरी सच में किसी ब्रह्मास्त्र से कम नहीं है। इसका निशाना शायद ही कभी चूकता है। इस मजबूरी की घुसपैठ सब जगह है। घर के चूल्हे से लेकर आसमान तक। रिश्तों से लेकर संबंधों तक। खून के रिश्तें हो चाहे धर्म के। मजबूरी हर जगह काम भी आती है और आड़े भी। गांव में कोई घूमता हुआ दिखाई देता है और उससे हाल चाल पूछ लिए तो उसका जवाब होता हैं, 'क्या करें बेरोजगारी है। मजबूरी में गांव में बैठे हैं, कहां जाए।' वैसे, मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है वाला जुमला भी अक्सर कहा सुना जाता रहा है। यहां तात्पर्य पैसे की कड़की से है। खैर, शुरुआत में मजबूरी शब्द पर कुछ काव्य शैली में लिखने को मन किया लेकिन फिर सोचने की मजबूरी के कारण गद्य पर ही आ गया।
मजबूर से हीे मजबूरी बना है। मजबूर का मतलब नि: सहाय, विवश, लाचार होता है। लेकिन यह प्रयोग अलग-अलग अर्थों में किया जाता है। मजबूरी अपनों से दूर करती है। मजबूरी समझौते को मजबूर करती है। मजबूरी झूठ बुलवाती है। मजबूरी रिश्तों में दरार डालती है। मजबूरी बहाने बनवाती है। मजबूरी हकीकत पर पर्दा डालती है। नौकरी करना मजबूरी है। खेती करना मजबूरी है। घर छोडऩा मजबूरी है। भूख भी मजबूरी है। पेट भी मजबूरी है। बीमारी भी मजबूरी है। दूरी भी मजबूरी है। औलाद भी मजबूरी है। मां-बाप भी मजबूरी है। भाई-बहिन भी मजबूरी है। सारे सगे संबंधी भी मजबूरी है। फोन रखना मजबूरी है। गाड़ी चलाना मजबूरी है। पैदल चलना भी मजबूरी है। दौडऩा मजबूरी है। हांफना मजबूरी है। आराम करना मजबूरी है। बीड़ी पीना मजबूरी है। सिगरेट पीना मजबूरी है। मांसाहारी होना भी मजबूरी है और शाकाहारी भी मजबूरी है। शराब पीना मजबूरी है। शराब पिलाना भी मजबूरी है। अकेले रहना मजबूरी है। सपरिवार रहना भी मजबूरी है। विवाह समारोह में शिरकत करना मजबूरी है। किसी गमी में जाना भी मजबूरी है। रोना भी मजबूरी है तो हंसना भी मजबूरी है। तनाव में रहना मजबूरी है तो तनावमुक्त रहना भी मजबूरी है। खामोश रहना मजबूरी है तो चिल्लाना भी मजबूरी है। भूखे पेट सो जाना मजबूरी है तो रात भर जागना भी मजबूरी है।
सच में यह मजबूरी शब्द हर जगह है। जीवन में गहरे तक रचा-बसा। इसके बिना जीवन अधूरा है। यह मजबूरी न हो तो दुनिया में बहुत सारे काम या तो अटक जाए या हकीकत से पर्दा उठ जाए। लोक लाज बनी रही इसीलिए मजबूरी जरूरी है। भले ही यह किसी को राहत दे या किसी को पीड़ा पर मजबूरी जरूरी है।
मजबूरी। यह शब्द पता नहीं आज क्यों सुबह से ही कानों में गूंज रहा है। बार-बार रह रहकर। इस शब्द की उत्पति व प्रयोग के बारे में सोचने लगा तो फिर सोचता ही चला गया। फिर यकायक ख्याल आया क्यों न आज मजबूरी पर ही लिखा जाए। वाकई मजबूरी का प्रयोग कहां नहीं होता। कौन है जो मजबूरी का मारा नहीं है। वैसे एक बात तो है यह मजबूरी शब्द जितना हकीकत के नजदीक है उतना ही बनावटी भी होता है। किसी का कोई काम नहीं होता है तो अक्सर यही जुमला सुनाई देता है, ' अरे यार मजबूरी थी, वरना मैं यह कर देता। क्यां करूं भाई मजबूरी थी, नहीं तो मैं पक्का पहुंचता आदि आदि।' वाकई मजबूरी शब्द बचाव का कारगर हथियार है। मजबूरी सच में किसी ब्रह्मास्त्र से कम नहीं है। इसका निशाना शायद ही कभी चूकता है। इस मजबूरी की घुसपैठ सब जगह है। घर के चूल्हे से लेकर आसमान तक। रिश्तों से लेकर संबंधों तक। खून के रिश्तें हो चाहे धर्म के। मजबूरी हर जगह काम भी आती है और आड़े भी। गांव में कोई घूमता हुआ दिखाई देता है और उससे हाल चाल पूछ लिए तो उसका जवाब होता हैं, 'क्या करें बेरोजगारी है। मजबूरी में गांव में बैठे हैं, कहां जाए।' वैसे, मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है वाला जुमला भी अक्सर कहा सुना जाता रहा है। यहां तात्पर्य पैसे की कड़की से है। खैर, शुरुआत में मजबूरी शब्द पर कुछ काव्य शैली में लिखने को मन किया लेकिन फिर सोचने की मजबूरी के कारण गद्य पर ही आ गया।
मजबूर से हीे मजबूरी बना है। मजबूर का मतलब नि: सहाय, विवश, लाचार होता है। लेकिन यह प्रयोग अलग-अलग अर्थों में किया जाता है। मजबूरी अपनों से दूर करती है। मजबूरी समझौते को मजबूर करती है। मजबूरी झूठ बुलवाती है। मजबूरी रिश्तों में दरार डालती है। मजबूरी बहाने बनवाती है। मजबूरी हकीकत पर पर्दा डालती है। नौकरी करना मजबूरी है। खेती करना मजबूरी है। घर छोडऩा मजबूरी है। भूख भी मजबूरी है। पेट भी मजबूरी है। बीमारी भी मजबूरी है। दूरी भी मजबूरी है। औलाद भी मजबूरी है। मां-बाप भी मजबूरी है। भाई-बहिन भी मजबूरी है। सारे सगे संबंधी भी मजबूरी है। फोन रखना मजबूरी है। गाड़ी चलाना मजबूरी है। पैदल चलना भी मजबूरी है। दौडऩा मजबूरी है। हांफना मजबूरी है। आराम करना मजबूरी है। बीड़ी पीना मजबूरी है। सिगरेट पीना मजबूरी है। मांसाहारी होना भी मजबूरी है और शाकाहारी भी मजबूरी है। शराब पीना मजबूरी है। शराब पिलाना भी मजबूरी है। अकेले रहना मजबूरी है। सपरिवार रहना भी मजबूरी है। विवाह समारोह में शिरकत करना मजबूरी है। किसी गमी में जाना भी मजबूरी है। रोना भी मजबूरी है तो हंसना भी मजबूरी है। तनाव में रहना मजबूरी है तो तनावमुक्त रहना भी मजबूरी है। खामोश रहना मजबूरी है तो चिल्लाना भी मजबूरी है। भूखे पेट सो जाना मजबूरी है तो रात भर जागना भी मजबूरी है।
सच में यह मजबूरी शब्द हर जगह है। जीवन में गहरे तक रचा-बसा। इसके बिना जीवन अधूरा है। यह मजबूरी न हो तो दुनिया में बहुत सारे काम या तो अटक जाए या हकीकत से पर्दा उठ जाए। लोक लाज बनी रही इसीलिए मजबूरी जरूरी है। भले ही यह किसी को राहत दे या किसी को पीड़ा पर मजबूरी जरूरी है।
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