टिप्पणी
श्रीगंगानगर में राशन फर्जीवाड़े का मामला भले ही जयपुर पहुंच गया हो। विधानसभा में भी उठ गया हो। और तो और मंत्री ने कार्रवाई का भरोसा भी दे दिया हो लेकिन इस प्रकरण की पड़ताल ईमानदारी से होगी, इसमें संशय नजर आता है। प्रशासनिक एवं सरकार के स्तर पर अब तक हुई कार्रवाई तो कुछ इसी तरह के संकेत दे रही है। प्रकरण के खुलासे के तीन-चार दिन बाद महज दस राशन डीलरों के लाइसेंस निलंबित करने की कार्रवाई से समझा जा सकता है कि हुक्मरान इस गंभीर मसले को कितने हल्के में ले रहे हैं। सरकार की देर से की गई तथा औपचारिक व मजबूरी से भरी इस कार्रवाई से यह प्रकरण और भी संदिग्ध हो जाता है। संभव नहीं कि फर्जीवाड़े के खेल में अकेले राशन डीलर ही यह सब कर रहे थे, वह भी इतने बड़े पैमाने पर। वैसे इसकी टोपी उसके सिर रखने की होड़ ने इस फर्जीवाडे़ के सूत्रधारों, जिम्मेदारों और भागीदारों की भूमिका को भी संदेह के दायरे में ला दिया है। इसकी बानगी देखिए। राशन डीलर कहते हैं गड़बड़ी उन्होंने नहीं की, पोस मशीन खराब है या फिर ई मित्र वालों ने गड़बड़ की है। जबकि विभाग कह रहा है कि राशन उठाना आसान काम है। जिनके नाम से राशन उठाया गया है, उन्होंने राशनकार्ड आधार, भामाशाह व गैस कनेक्शन नंबर लिंक नहीं करवाए हैं। उन उपभोक्ताओं के साथ एेसा हो सकता है। विभाग की इसमें कोई गलती नहीं है।
विभाग की दलील तो यह भी है कि ऑनलाइन काम में कंट्रोल नहीं रहता। मतलब जो कुछ हुआ उसके लिए केवल उपभोक्ता ही जिम्मेदार है। इधर, इस मामले में फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ करने वाले पार्षद तो डिपो धारक व अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं। आरोप सच्चाई के नजदीक नजर इसलिए भी आते हैं कि इस तरह का घपला जब बड़े स्तर पर होता है और कार्रवाई ऊंट के मुंह में जीरे के समान होती है। अक्सर देखा भी गया है कि फर्जीवाड़े के खेल में तालमेल से ही घालमेल होता है।
खैर, रसद विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल तो उस वक्त भी उठते रहे हैं जब राशन वितरण का काम ऑफलाइन होता रहा है। अब केवल निलंबन की कार्रवाई से भी सवाल उठते हैं। भले ही विभाग ने तात्कालिक कार्रवाई कर अपनी खाल बचाने का भरपूर प्रयास किया हो लेकिन निलंबन करना यह तो दर्शाता ही है कि गड़बड़ी हुई है। और गड़बड़ी हुई है तो फिर इसकी पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं? महज निलंबन करके रसद विभाग क्या किसी जांच से बचना चाहता है? क्या विभाग के अधिकारियों को डर है कि जांच हुई तो कहीं उसकी जद में वो न आ जाए? कहीं विभाग की भूमिका से पर्दा न उठ जाए?
बहरहाल, इस मसले में कुछ तो एेसा है ही जो अधिकारियों को इस प्रकरण को पुलिस तक ले जाने से रोक रहा है। वैसे इस प्रकरण का पर्दाफाश करने वालों को अब चुपचाप नहीं बैठना चाहिए। भ्रष्टाचार और घपले के इस खेल में शामिल सभी सूत्रधारों व भागीदारों के नाम सार्वजनिक तभी हो पाएंगे जब इसकी जांच ईमानदारी से होगी। क्योंकि सरकारी संरक्षण व शह पाकर मजबूत होने वाले गठजोड़ों की गांठ तोडऩा आसान काम नहीं होता। जांच भी स्वतंत्र एजेंसी से हो तभी दूध का दूध व पानी का पानी होने की उम्मीद है, वरना यह खेल जैसे चलता आया है वैसे ही चलता रहेगा। अनवरत... बदस्तूर...।
खैर, रसद विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल तो उस वक्त भी उठते रहे हैं जब राशन वितरण का काम ऑफलाइन होता रहा है। अब केवल निलंबन की कार्रवाई से भी सवाल उठते हैं। भले ही विभाग ने तात्कालिक कार्रवाई कर अपनी खाल बचाने का भरपूर प्रयास किया हो लेकिन निलंबन करना यह तो दर्शाता ही है कि गड़बड़ी हुई है। और गड़बड़ी हुई है तो फिर इसकी पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं? महज निलंबन करके रसद विभाग क्या किसी जांच से बचना चाहता है? क्या विभाग के अधिकारियों को डर है कि जांच हुई तो कहीं उसकी जद में वो न आ जाए? कहीं विभाग की भूमिका से पर्दा न उठ जाए?
बहरहाल, इस मसले में कुछ तो एेसा है ही जो अधिकारियों को इस प्रकरण को पुलिस तक ले जाने से रोक रहा है। वैसे इस प्रकरण का पर्दाफाश करने वालों को अब चुपचाप नहीं बैठना चाहिए। भ्रष्टाचार और घपले के इस खेल में शामिल सभी सूत्रधारों व भागीदारों के नाम सार्वजनिक तभी हो पाएंगे जब इसकी जांच ईमानदारी से होगी। क्योंकि सरकारी संरक्षण व शह पाकर मजबूत होने वाले गठजोड़ों की गांठ तोडऩा आसान काम नहीं होता। जांच भी स्वतंत्र एजेंसी से हो तभी दूध का दूध व पानी का पानी होने की उम्मीद है, वरना यह खेल जैसे चलता आया है वैसे ही चलता रहेगा। अनवरत... बदस्तूर...।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 30 मार्च 17 के अंक में प्रकाशित
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