Tuesday, November 14, 2017

आइए अफवाहों पर अंकुश लगाएं

टिप्पणी
श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ सहित प्रदेश के कई हिस्सों में इन दिनों एक अफवाह की चर्चा जोरों पर हैं। हालात यह हैं कि इस अफवाह ने लोगों को इस कदर भयभीत कर रखा है कि वे ठीक से सो नहीं पा रहे। कई गांवों में तो लोग रात-रात भर जागकर पहरा तक देने लगे हैं। यह अफवाह है कथित रूप से महिलाओं के बाल कटने की। अकेले श्रीगंगानगर जिले में कथित रूप से बाल कटने के दर्जनभर से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। खास बात यह भी है कि इन तमाम घटनाओं का कोई गवाह नहीं है। इसमें पीडि़त ही गवाह है और वह जो कहानी बताती है, वह किसी फंतासी फिल्म से कम नहीं होती। मसलन, किसी को अपने बाल कटे हुए दिखाई देते हैं तो किसी को बिल्ली नजर आती है। किसी को कुछ दिखाई नहीं देता सिर्फ पदचाप ही सुनाई देती है। 
वैसे यह जगजाहिर है कि अफवाह के पैर नहीं होते और वह आग से भी तेजी से फैलती है। इसका असर भी व्यापक स्तर पर देखना को मिलता है। कथित बाल कटने की घटना भी इसी का ही हिस्सा है। सप्ताह भर पहले तक इसकी कहीं चर्चा तक नहीं थी लेकिन आज इस अफवाह के चर्चे विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जन-जन की जुबान पर है। हालांकि मनोचिकित्सक, चिकित्सक, पुलिस, समाजशास्त्री व तर्कशील सोसायटी से जुड़े लोग इसको सिरे से खारिज कर रहे हैं और हकीकत भी यही है कि यह केवल कपोल कल्पित बातें हैं। हां एेसे बातों के प्रचार-प्रसार करने में कुछ शरारती तत्वों का दखल जरूर बढ़ जाता है। फिर भी कुछ सामान्य बातें जो यह साबित कर देती हैं कि यह अफवाह है। इसको इस तरह भी समझा जा सकता है कि कथित रूप से बाल केवल युवतियों/ महिलाओं के ही कट रहे हैं। इनमें भी अधिकतर कम उम्र की हैं और इस तरह की बातें ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा जुड़ी हुई हैं। इतना ही नहीं प्रभावित परिवारों में अधिकतर में जागरुकता का अभाव भी नजर आता है। अधिकतर मामले कम पढ़े लिखे तथा नीचे तबके से जुड़े परिवारों के ही सामने आए हैं।
खैर, सर्वमान्य तथ्य यह भी है कि जहां जागरुकता की कमी होती है, वहां अंधविश्वास भी अपेक्षाकृत ज्यादा प्रभावी होता है। अपनी बात को या अंधविश्वास को पुष्ट करने वाले इस तरह को मामलों को हवा देने से नहीं चूकते हैं। वैसे चिकित्सक इसको एक तरह का रोग मानते हैं जबकि जानकारों का मानना है कि परिवार में उपेक्षित महिला/ युवती परिजनों से सहानुभूति पाने या उनको इस बहाने डराने के लिए भी इस तरह की अफवाहों का सहारा ले सकती है। बहरहाल, अफवाह रोकने की जिम्मेदारी उन सभी की है, जो जागरूक हैं। अंधविश्वास के खिलाफ लड़ते हैं तथा शिक्षा का उजियारा फैलाते हैं।
स्कूलों में अध्यापक प्रार्थना सभा के दौरान बच्चों को अच्छी तरह से समझा सकते हैं कि इस तरह का कोई मामला होता ही नहीं है। पुलिस भी लोगों को समझाएं तथा अफवाहें फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करे ताकि कोई लोगों को भयभीत करने की हिमाकत ही ना करे। इतना ही नहीं कोई शरारती तत्व इस तरह की अफवाहों का वाहक बन रहा है तो उसके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई हो। आइए हम सब भी मिलकर नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए इन अफवाहों पर अंकुश लगाएं तथा अपने आसपास भयमुक्त माहौल बनाएं
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राजस्थान पत्रिका के हनुमानगढ व श्रीगंगानगर संस्करण के 30 जुलाई 17 के अंक में प्रकाशित 

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