हां तो कल मन की बात हो रही थी। यही कि मन बहुत तेज दौड़ता है। यह तो आजाद पंछी के जैसा है। इसको कौन बांध पाया है आदि आदि। यह सब जानने के बावजूद मन कहां मानता है। मन किसी पर आ भी जाता है तो यह अचानक उचट भी जाता है। मन कभी खट्टा होता है। कभी खट्टा मीठा तो कभी यह किसी फूल की मानिंद खिल उठता है। हैरत की बात तो यह है कि मन बंटता है बढता है और बदलता भी है। कभी कभी मन बहलता भी है। चौंकिए मत इतना कुछ करने के बावजूद मन मर जाता है तो मन को बांध भी लिया जाता है। मन खानाबदोश होकर दर-दर भटकता है तो कभी यह भारी व हल्का भी हो जाता है। वाकई इस मन का संसार बड़ा ही रोचक है। कभी किसी बहाने से मन को टटोला जाता है तो कई बार मन जीत भी लिया जाता है। आश्चर्य की बात है कि मन डूबता भी है। अब देखिए मन को तौला भी जाता है तो कई बार इसे ठिकाने भी लगा दिया जाता है। कई बार मन नाच भी उठता है। बिलकुल मयूर की तरह। मन नाचता ही नहीं लहराता भी है। यह मन इतना नाजुक है कि यह मोम बन जाता है और मोम की तरह पिघल भी जाता है।
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