यह शख्स बेहद साधारण हैं, लेकिन इनकी सोच व काम बड़ा है। इसी काम के बूते 2009 में उनको पदमश्री से नवाजा गया था। यह फोटो श्री श्यामसुंदर माहेश्वरी जी का है। आज एक कार्यक्रम के सिलसिले में माहेश्वरी जी पत्रिका कार्यालय में आमंत्रित किए गए थे। इस दौरान इनसे रूबरू होने का मौका मिला। हालांकि नाम पहले सुन चुका था लेकिन मुलाकात आज ही हुई। करीब घंटे भर के संवाद में उनसे काफी बातें साझा कीं। माहेश्वरी जी मूलत:
्रीगंगानगर में कॉलेज में कॉमर्स विषय के व्याख्याता रहे हैं। इन्होंने श्रीगंगानगर में रहते 1988 में दबे-कुचले व मुख्यधारा से कटे बेहद गरीब घरों के बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया। माहेश्वरी जी का यह छोटा काम आज वट वृक्ष बन चुका है। इनके द्वारा विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति के नाम से बनाई गई संस्था है जो कि वर्तमान में आठवीं तक का एक स्कूल चलाती है। स्कूल में पढऩे वाले बच्चे बेहद गरीबों परिवारों के ही हैं। इनकी गरीबी का आकलन माहेश्वरी जी खुद बच्चों के घर जाकर करते हैं। घर के हालात से ही तय होता है कि बच्चा गरीब है। और हां प्रवेश के लिए सिफारिश किसी की नहीं चलती है। जो मापदंड तय हैं उन पर खरा उतरने वाला ही प्रवेश का हकदार होता है। स्कूल में पढाई, किताब, डे्रस, जूते आदि का तमाम खर्चा समिति ही उठाती है। वर्तमान में इस स्कूल में तीन सौ के करीब छात्र हैं। सबकी शिक्षा निशुल्क है। इस स्कूल से अब तक सात हजार से ज्यादा बच्चे शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं। खास बात है कि इस स्कूल से निकले विद्यार्थियों में से कोई जज है तो कोई डाक्टर है। कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे ओहदे पर हैं तो कोई आयकर विभाग में है। अपने शिष्यों की उपलब्धि पर इस गुरु को जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। एक खास बात और माहेश्वरी जी ने कभी खुद के नाम या फोटो का मोह नहीं रखा। वो भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं और साथ ही यह भी कहते हैं इस प्रकृति ने, इस धरती ने तथा इस देश में मेरे का बहुत दिया है, ऐसे में मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं भी कुछ देऊं। वाकई माहेश्वरी जी का यह योगदान अनुकरणीय व प्रेरणास्पद है। उम्र के 65 बसंत देख चुके माहेश्वरी जी का जुनून व जज्बा देखते ही बनता है। सौ सौ सलाम इस गुरु को। स्कूल, इसके विद्यार्थियों व इसकी खासियत पर भी जल्द ही लिखूंगा..।
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