Tuesday, November 14, 2017

मन की बात.... 6


भागदौड़ व खुद में खोए रहने की संस्कृति के दौर में मन की भले ही न सुनी जाए लेकिन मन की बात तो देश सुन ही रहा है। गौर से सुने या न सुने यह अलग विषय है लेकिन मन की बात सबसे हो रही है। यह मन की बात कितनी प्रासंगिक है और कितनी नहीं यह तो दो साल बाद ही पता चलेगा। फिलहाल मन की बात का जोर है और प्रचार उससे भी कहीं ज्यादा। वैसे मन पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने भी लिखा है। विडम्बना यह है कि उनके मन की बात ज्यादा गहरी एवं मार्मिक होने की बावजूद वर्तमान मन की बात के आगे उन्नीस ही साबित हो रही है। हो रही है या कर दी गई है यह बहस का मुद्दा हो सकता है। खैर, आज इसी बहाने अटल जी की मन पर लिखी बातों का जिक्र कर लिया जाए। अटलजी ने लिखा है ' आदमी की पहचान, उसके धन या आसन से नहीं होती, उसके मन से होती है। मन की फकीरी पर कुबेर की संपदा भी रोती है।' पर आजकल मन से पहचान करने वाले हैं ही कितने? यह दो लाइनें तो और गहरी है व सोचने पर मजबूर करती है। 'मन हारकर, मैदान नहीं जीते जाते, न मैदान जीतने से मन ही जीते जाते हैं।' वैसे मन की पहचान करते-करते अटल जी खुद भी भ्रमित हो ही गए। मन की फकीरी पर कुबेर की संपदा के रोने की बात कहने के बावजूद वो यह भी कह गए कि बड़ा बनने के लिए मन भी बड़ा होना चाहिए। ' छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।'

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