टिप्पणी
हनुमानगढ़ में एक बालिका से जबरन जिस्मफरोशी कराने का मामला सामने आने के तीन दिन बाद सक्रिय हुई पुलिस ने नौ जगह दबिश देकर देह व्यापार में संलिप्त 27 आरोपितों को पकड़कर अपनी साख बचाने की भरपूर कोशिश की है। पकड़े गए आरोपितों में सात दलाल/ ग्राहक एवं 20 महिलाएं शामिल हैं। इस कार्रवाई से यह तो साबित हुआ है कि पुलिस चाहे तो कुछ भी संभव है, लेकिन साथ में बड़ा सवाल यह भी है कि हालात यहां तक पहुंचे ही क्यों? आखिर एेसी कौनसी चूक या शह रही, जिससे देह व्यापार करने वालों के हौसले इतने बढ़ते गए कि वह पुलिस के ठीक नाक के नीचे यह धंधा बेखौफ संचालित करने लगे। कहीं न कहीं इन सवालों के जवाब तलाशेंगे तो कठघरे में पुलिस ही होगी। एक साथ कार्रवाई करने और उसमें सफलता हासिल करने से भी यही साबित होता है कि पुलिस को देह व्यापार के इन ठिकानों की जानकारी पहले से थी। और अगर जानकारी थी तो जिम्मेदार क्यों आंखें मंूदे रहे? पुलिस पर सवाल दोनों तरफ से हैं। कार्रवाई न करने पर भी और कार्रवाई करने के बाद भी। एेसा इसलिए क्योंकि जिस सुरेशिया चौकी से कुछ ही दूरी पर मासूम बालिका के सपनों व अरमानों को जबरन रौंदा जाता रहा है वह पुलिस को दिखाई नहीं दिया। लेकिन आनन-फानन में नौ ठिकाने खोज निकाले गए। अपनी खाल बचाने को पुलिस यह दलील जरूर दे सकती है कि देह व्यापार के अड्डों पर कार्रवाई से पहले ही आरोपित भूमिगत हो जाते हैं, इसलिए सफलता नहीं मिलती। खैर, किसी कार्रवाई को कितनी गोपनीयता से अंजाम दिया जाता है यह भी पुलिस से बेहतर कोई नहीं जान सकता।
हनुमागढ़ के नौरंगदेसर के पास ओवरलोड जीप का हादसा शेरगढ़ चौकी के पास हुआ। देह व्यापार का मामला भी पुलिस चौकी के पास ही हुआ। सुरेशिया में शांतिप्रिय एवं इज्जतदार लोग भी रहते हैं। लेकिन आज उस बस्ती की पहचान देह व्यापार के लिए कुख्यात बस्ती के रूप में है। जो इज्जतदार हैं वह इसलिए नहीं बोलते कि देह व्यापार का धंधा पुलिस चौकी की नाक के नीचे चल रहा है। पुलिस अधीक्षक अगर चाहें तो सुरेशिया के दस इज्जतदार लोगों को अपने दफ्तर में बुलाकर पुष्टि कर सकते हैं। खोजने पर इस तरह के उदाहरण और भी मिल जाएंगे। खास बात यह है कि इन हादसों/प्रकरणों से कोई सबक नहीं लिया जाता है। यह बात दीगर है कि तात्कालिक आक्रोश को शांत करने के उपाय जरूर खोज लिए जाते हैं। इसके बाद व्यवस्था पुराने ढर्रे पर लौट आती है।
बहरहाल, हनुमानगढ़ में देह व्यापार की शिकायतों को देखते हुए अभी और कार्रवाई की दरकार है। विशेष रूप से उन होटलों की गहनता से पड़ताल होनी चाहिए जिनकी गतिविधियां संदिग्ध हैं। जंक्शन में बस अड्डे के आसपास ही एेसे कई होटल हैं जहां दिनदहाड़े जिस्मफरोशी की गतिविधियां संचालित होती है। आसपास के दुकानदार इन होटलों में चल रही गतिविधियों से परेशान हैं। शिकायत इसलिए नहीं करते कि पुलिस के साथ सांठगांठ का दावा होटल वाले करते रहते हैं। फिलहाल तो पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती मासूम से देह व्यापार करवाने की आरोपित महिला को पकडऩा है। संभव है उसके पकड़े जाने के बाद और कई चौंकाने वाले खुलासे हों। जरूरत ईमानदार व कारगर तथा लगातार कार्रवाई की है। सवालों से घिरी पुलिस के पास इससे बेहतर मौका और होगा भी क्या? आखिर जिस जनता की नजरों में आज वह खटक रही है, वही जनता उसको आंखों पर बैठाती है। यह पुलिस पर निर्भर करता है वह कौनसी राह चुनती है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ संस्करण में 2 अप्रेल 17 को प्रकाशित
हनुमानगढ़ में एक बालिका से जबरन जिस्मफरोशी कराने का मामला सामने आने के तीन दिन बाद सक्रिय हुई पुलिस ने नौ जगह दबिश देकर देह व्यापार में संलिप्त 27 आरोपितों को पकड़कर अपनी साख बचाने की भरपूर कोशिश की है। पकड़े गए आरोपितों में सात दलाल/ ग्राहक एवं 20 महिलाएं शामिल हैं। इस कार्रवाई से यह तो साबित हुआ है कि पुलिस चाहे तो कुछ भी संभव है, लेकिन साथ में बड़ा सवाल यह भी है कि हालात यहां तक पहुंचे ही क्यों? आखिर एेसी कौनसी चूक या शह रही, जिससे देह व्यापार करने वालों के हौसले इतने बढ़ते गए कि वह पुलिस के ठीक नाक के नीचे यह धंधा बेखौफ संचालित करने लगे। कहीं न कहीं इन सवालों के जवाब तलाशेंगे तो कठघरे में पुलिस ही होगी। एक साथ कार्रवाई करने और उसमें सफलता हासिल करने से भी यही साबित होता है कि पुलिस को देह व्यापार के इन ठिकानों की जानकारी पहले से थी। और अगर जानकारी थी तो जिम्मेदार क्यों आंखें मंूदे रहे? पुलिस पर सवाल दोनों तरफ से हैं। कार्रवाई न करने पर भी और कार्रवाई करने के बाद भी। एेसा इसलिए क्योंकि जिस सुरेशिया चौकी से कुछ ही दूरी पर मासूम बालिका के सपनों व अरमानों को जबरन रौंदा जाता रहा है वह पुलिस को दिखाई नहीं दिया। लेकिन आनन-फानन में नौ ठिकाने खोज निकाले गए। अपनी खाल बचाने को पुलिस यह दलील जरूर दे सकती है कि देह व्यापार के अड्डों पर कार्रवाई से पहले ही आरोपित भूमिगत हो जाते हैं, इसलिए सफलता नहीं मिलती। खैर, किसी कार्रवाई को कितनी गोपनीयता से अंजाम दिया जाता है यह भी पुलिस से बेहतर कोई नहीं जान सकता।
हनुमागढ़ के नौरंगदेसर के पास ओवरलोड जीप का हादसा शेरगढ़ चौकी के पास हुआ। देह व्यापार का मामला भी पुलिस चौकी के पास ही हुआ। सुरेशिया में शांतिप्रिय एवं इज्जतदार लोग भी रहते हैं। लेकिन आज उस बस्ती की पहचान देह व्यापार के लिए कुख्यात बस्ती के रूप में है। जो इज्जतदार हैं वह इसलिए नहीं बोलते कि देह व्यापार का धंधा पुलिस चौकी की नाक के नीचे चल रहा है। पुलिस अधीक्षक अगर चाहें तो सुरेशिया के दस इज्जतदार लोगों को अपने दफ्तर में बुलाकर पुष्टि कर सकते हैं। खोजने पर इस तरह के उदाहरण और भी मिल जाएंगे। खास बात यह है कि इन हादसों/प्रकरणों से कोई सबक नहीं लिया जाता है। यह बात दीगर है कि तात्कालिक आक्रोश को शांत करने के उपाय जरूर खोज लिए जाते हैं। इसके बाद व्यवस्था पुराने ढर्रे पर लौट आती है।
बहरहाल, हनुमानगढ़ में देह व्यापार की शिकायतों को देखते हुए अभी और कार्रवाई की दरकार है। विशेष रूप से उन होटलों की गहनता से पड़ताल होनी चाहिए जिनकी गतिविधियां संदिग्ध हैं। जंक्शन में बस अड्डे के आसपास ही एेसे कई होटल हैं जहां दिनदहाड़े जिस्मफरोशी की गतिविधियां संचालित होती है। आसपास के दुकानदार इन होटलों में चल रही गतिविधियों से परेशान हैं। शिकायत इसलिए नहीं करते कि पुलिस के साथ सांठगांठ का दावा होटल वाले करते रहते हैं। फिलहाल तो पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती मासूम से देह व्यापार करवाने की आरोपित महिला को पकडऩा है। संभव है उसके पकड़े जाने के बाद और कई चौंकाने वाले खुलासे हों। जरूरत ईमानदार व कारगर तथा लगातार कार्रवाई की है। सवालों से घिरी पुलिस के पास इससे बेहतर मौका और होगा भी क्या? आखिर जिस जनता की नजरों में आज वह खटक रही है, वही जनता उसको आंखों पर बैठाती है। यह पुलिस पर निर्भर करता है वह कौनसी राह चुनती है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ संस्करण में 2 अप्रेल 17 को प्रकाशित
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