Tuesday, November 14, 2017

'शहरहित या स्वहित' ?

टिप्पणी
वाकई श्रीगंगानगर के जनप्रतिनिधि बड़े 'जागरूक' हैं। विशेषकर पार्षदों का तो कहना ही क्या। बात 'शहर-हित' की आती है तो यह लोग दलगत राजनीति छोड़कर एक हो जाते हैं। एेसे अवसर कई बार सामने आए हैं जब पार्र्टी गौण हो गई और सबने 'एकजुटता' का परिचय दिया। सभापति का चुनाव ही ले लीजिए। सभापति फिलहाल किसी दल से नहीं हैं लेकिन वो बाकायदा सभी दलों के पार्षदों के समर्थन के सहारे टिके हुए हैं। भले ही सभापति को लेकर कई तरह की शिकायतें हों, सार्वजनिक मंचों पर उनकी मुखालफत की जाती हो, परिषद की बैठकों में भी खूब नोकझोंक होती हो। वहां पार्षद एक दूसरे के खिलाफ बांहें चढ़ाते हों। कुर्सियां उछलती हों। जूतम पैजार या सिर फुटोव्वल जैसे हालात बनते हों लेकिन क्या मजाल कि कोई सभापति के खिलाफ पाला बदले। कांग्रेस और भाजपा के पार्षद यहां एक रंग में रंगे हुए नजर आते हैं। सभापति को समर्थन देने वालों की 'एकता' की यह जीती जागती नजीर है। संभवत: यह भी एक तरह का 'शहरहित' ही है जो सभी को 'एकजुटता' में बांधे हुए है।
अब देखिए ना पार्षदों का 'शहरहित'। भाजपा के कई पार्षद तो अपनी ही पार्टी और नेताओं से परेशान हैं। धरना दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी अपनी पीड़ा जाहिर कर रहे हैं। उनका एकसूत्री कार्यक्रम है कि भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो। रसद विभाग वाला मामला पार्षदों की नजर में इतना बड़ा है कि वो पार्टी व अपने नेताओं के खिलाफ भी बगावती सुर अलापने से बाज नहीं आ रहे हैं। वाकई भ्रष्टाचार ज्वलंत मुद्दा है और इसका विरोध होना लाजिमी है और पार्षद भी तो वही कर रहे हैं। बानगी देखिए, एक दल के पार्षद आंदोलन कर रहे हैं जबकि दूसरे दल के चुपचाप हाथ पर हाथ धरकर इस तरह बैठे हैं मानों उनकी इस मसले में मौन स्वीकृति हो। यही तो 'एकजुटता' है। इसे पार्षदों की दरियादिली कहिए या 'शहरहित' कि वो अपने वार्डों की छोटी-मोटी समस्याओं को नजरअंदाज कर केवल रसद विभाग के भ्रष्टाचार को बेनकाब करने के लिए प्रयासरत हैं। पार्षदों की नजर में शायद वार्डों की छोटी-मोटी समस्याएं रसद विभाग के भ्रष्टाचार के आगे बेहद छोटी हैं। पटरी से उतरी सफाई व्यवस्था, आवारा पशु, बंद पड़ी रोडलाइट, बदहाल पार्क, अतिक्रमण, नशाखोरी, पेयजल संकट आदि शहर की एेसी ज्वलंत समस्याएं हैं, जो पार्षदों की नजर में या तो समस्या ही नहीं हैं और अगर है तो रसद विभाग के भ्रष्टाचार से बेहद छोटी है। लगता है यह समस्याएं आम आदमी से संबंधित नहीं हैं। सिर्फ राशन प्रकरण ही जनता के सबसे नजदीक है। जनता उसी से ज्यादा प्रभावित और पीडि़त है। दरअसल, बाकी सब को गौण कर एक ही मसले में दिलचस्पी दिखाना या आंखें मूंद लेना यह भी तो एक तरह की 'एकजुटता' ही है। अपने प्रतिनिधियों के इस 'शहरहित' को देख कर आम लोग यकीनन मतदान के दिन को याद कर बार-बार अपनी पीठ थपथपा रहे होंगे। खैर, इस 'शहरहित' के पीछे कहीं न कहीं 'स्व हित' भी जुड़ा है और इन दोनों हितों में इतना घालमेल हो चला है कि कई बार दोनों में अंतर तक करना मुश्किल हो जाता है।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 21 अप्रेल 17 के अंक में प्रकाशित

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