टिप्पणी
नगर विकास न्यास की आेर से इन दिनों रिक्शों पर लाउड स्पीकर के माध्यम से मुनादी करवाई जा रही है। इसमें कहा जा रहा है कि सूरतगढ़ मार्ग पर शिव चौक से लेकर बाइपास तक सड़क पर रेता-बजरी बेचने वालों सहित जिस जिस ने भी अतिक्रमण कर रखा है, वह उसको हटा लें नहीं तो न्यास की ओर से कार्रवाई की जाएगी। खास बात यह है कि यह मुनादी अतिक्रमण वाले क्षेत्र के साथ-साथ शहर के अंदरुनी हिस्सों में भी की जा ही है। शायद न्यास के नुमाइंदों का एेसा मानना रहा होगा मुनादी शहर भर में होनी चाहिए ताकि लोगों को पता चले कि वाकई न्यास अतिक्रमण हटाने को लेकर गंभीर है। खैर, यह मुनादी औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं है। बरसात के मौसम को देखते हुए न्यास को अपने क्षेत्राधिकार वाले हिस्सों के नालों की सफाई करवानी है।
फिलहाल नालों की सफाई में अतिक्रमण बाधक बन रहा है और इसीलिए न्यास को इस अतिक्रमण की याद आई है। देखा जाए तो यह अतिक्रमण कोई नया-नया नहीं हुआ है। एेसा भी नहीं है कि न्यास के नुमांइदों की नजर में पहली बार आया है। दरअसल, इस मार्ग पर अतिक्रमण लंबे समय से है। इस मार्ग पर कहीं ट्रैक्टर ट्रालियां खड़ी रहती हैं तो कहीं ट्रक पार्क किए जा रहे हैं। रेता-बजरी का कारोबार बीच सड़क पर बेखौफ हो रहा है। इस वजह से दिन में न जाने कितनी ही बार यातायात बाधित या प्रभावित होता है। राजस्थान पत्रिका में इस अतिक्रमण को लेकर लगातार सिलेसिलेवार खबरें भी प्रकाशित की जाती रही हैं। लेकिन न्यास के नुमाइंदों के कानों पर किसी तरह की जूं नहीं रेंगी। अब मानसून की आहट से इनके हाथ पांव फूले हैं। अगर यह नुमाइंदे अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई समय-समय पर करते तो आज यह हालात ही नहीं होते। सड़क पर अतिक्रमण न्यास की उदासीनता या शह के बिना संभव ही नहीं है।
बहरहाल, अब इस मुनादी से भी न्यास के नुमाइंदों की मंशा पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। इससे तो यही जाहिर होता है कि किसी न किसी तरह से इस गीदड़ भभकी से एक बार अतिक्रमण हट जाएं/ हटा लें ताकि नाले की सफाई हो जाए। यह एक तरह की लाचारी ही तो है। यह लाचारी भी बहुत कुछ कहती है। तभी तो मुनादी में गंभीरता कम औपचारिकता ज्यादा नजर आती है। और जब तक यह औपचारिकता निभाई जाती रहेगी समस्या के स्थायी समाधान की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती। न्यास के नुमाइंदे वाकई शहर हित चाहते हैं तो उनको यह रस्मी और औपचारिकता वाली कार्रवाई छोडऩी होंगी। क्योंकि इनसे जनता का भले नहीं होना वाला।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 13 जून 17 के अंक में प्रकाशित
नगर विकास न्यास की आेर से इन दिनों रिक्शों पर लाउड स्पीकर के माध्यम से मुनादी करवाई जा रही है। इसमें कहा जा रहा है कि सूरतगढ़ मार्ग पर शिव चौक से लेकर बाइपास तक सड़क पर रेता-बजरी बेचने वालों सहित जिस जिस ने भी अतिक्रमण कर रखा है, वह उसको हटा लें नहीं तो न्यास की ओर से कार्रवाई की जाएगी। खास बात यह है कि यह मुनादी अतिक्रमण वाले क्षेत्र के साथ-साथ शहर के अंदरुनी हिस्सों में भी की जा ही है। शायद न्यास के नुमाइंदों का एेसा मानना रहा होगा मुनादी शहर भर में होनी चाहिए ताकि लोगों को पता चले कि वाकई न्यास अतिक्रमण हटाने को लेकर गंभीर है। खैर, यह मुनादी औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं है। बरसात के मौसम को देखते हुए न्यास को अपने क्षेत्राधिकार वाले हिस्सों के नालों की सफाई करवानी है।
फिलहाल नालों की सफाई में अतिक्रमण बाधक बन रहा है और इसीलिए न्यास को इस अतिक्रमण की याद आई है। देखा जाए तो यह अतिक्रमण कोई नया-नया नहीं हुआ है। एेसा भी नहीं है कि न्यास के नुमांइदों की नजर में पहली बार आया है। दरअसल, इस मार्ग पर अतिक्रमण लंबे समय से है। इस मार्ग पर कहीं ट्रैक्टर ट्रालियां खड़ी रहती हैं तो कहीं ट्रक पार्क किए जा रहे हैं। रेता-बजरी का कारोबार बीच सड़क पर बेखौफ हो रहा है। इस वजह से दिन में न जाने कितनी ही बार यातायात बाधित या प्रभावित होता है। राजस्थान पत्रिका में इस अतिक्रमण को लेकर लगातार सिलेसिलेवार खबरें भी प्रकाशित की जाती रही हैं। लेकिन न्यास के नुमाइंदों के कानों पर किसी तरह की जूं नहीं रेंगी। अब मानसून की आहट से इनके हाथ पांव फूले हैं। अगर यह नुमाइंदे अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई समय-समय पर करते तो आज यह हालात ही नहीं होते। सड़क पर अतिक्रमण न्यास की उदासीनता या शह के बिना संभव ही नहीं है।
बहरहाल, अब इस मुनादी से भी न्यास के नुमाइंदों की मंशा पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। इससे तो यही जाहिर होता है कि किसी न किसी तरह से इस गीदड़ भभकी से एक बार अतिक्रमण हट जाएं/ हटा लें ताकि नाले की सफाई हो जाए। यह एक तरह की लाचारी ही तो है। यह लाचारी भी बहुत कुछ कहती है। तभी तो मुनादी में गंभीरता कम औपचारिकता ज्यादा नजर आती है। और जब तक यह औपचारिकता निभाई जाती रहेगी समस्या के स्थायी समाधान की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती। न्यास के नुमाइंदे वाकई शहर हित चाहते हैं तो उनको यह रस्मी और औपचारिकता वाली कार्रवाई छोडऩी होंगी। क्योंकि इनसे जनता का भले नहीं होना वाला।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 13 जून 17 के अंक में प्रकाशित
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