टिप्पणी
'ज्यादा खुशी में कोई वादा ही नहीं करना चाहिए और गुस्से या आक्रोश की स्थिति में तत्काल किसी फैसले पर नहीं जाना चाहिए।, अक्सर यह नसीहत गाहे-बगाहे सुनने को मिल ही जाती है। श्रीगंगानगर में निराश्रित गोवंश को पकड़कर बाड़ेबंदी करने का फैसला भी आक्रोश की उपज ही माना जा सकता है। सांड की टक्कर से एक वरिष्ठ नागरिक की मौत के बाद उपजे आक्रोश के चलते नगर परिषद ने आधी अधूरी तैयारियों के साथ निराश्रित गोवंश पकडऩे की मुहिम शुरू की तथा दो तीन दिन की दौड़ धूप के बाद करीब चार सौ निराश्रित पशुओं को रामलीला मैदान में एकत्रित भी कर लिया।
'ज्यादा खुशी में कोई वादा ही नहीं करना चाहिए और गुस्से या आक्रोश की स्थिति में तत्काल किसी फैसले पर नहीं जाना चाहिए।, अक्सर यह नसीहत गाहे-बगाहे सुनने को मिल ही जाती है। श्रीगंगानगर में निराश्रित गोवंश को पकड़कर बाड़ेबंदी करने का फैसला भी आक्रोश की उपज ही माना जा सकता है। सांड की टक्कर से एक वरिष्ठ नागरिक की मौत के बाद उपजे आक्रोश के चलते नगर परिषद ने आधी अधूरी तैयारियों के साथ निराश्रित गोवंश पकडऩे की मुहिम शुरू की तथा दो तीन दिन की दौड़ धूप के बाद करीब चार सौ निराश्रित पशुओं को रामलीला मैदान में एकत्रित भी कर लिया।
इतना कुछ करने के बाद भी पकड़े गए पशुओं से कहीं ज्यादा पशु अभी भी शहर की सड़कों व गलियों में विचरण करते दिखाई दे जाएंगे। रामलीला मैदान में जहां इस गोवंश को रोका गया, वहां शुरू में छांव को छोड़कर चारे व पानी की वैकल्पिक व्यवस्था की गई है। तेज धूप के कारण तीन दिन तक गोवंश बेहाल रहा। फिलहाल निराश्रित गोवंश को पकडऩे का काम रुका हुआ है और अब सारी कवायद इस बात की चल रही है कि जो गोवंश रामलीला मैदान में रोक रखा है उसको कहां रखा जाए? प्रशासनिक अधिकारी आस-पड़ोस की गोशालाओं का निरीक्षण कर वहां संभावनाएं तलाश रहे हैं? निर्माणाधीन नंदीशाला के अधूरे काम को पूर्ण करने का निर्देश जारी हो रहे हैं। इन तमाम बातों का सार यही है कि बिना विचारे कोई काम शुरू कर दिया जाता है तो फिर उसका परिणाम इसी तरह का सामने आता है। आनन-फानन में अब जो तैयारियां हो रही हैं, वह पशुओं की बाड़ेबंदी किए बिना भी हो सकती थी। बेहतर होता कि सभी तैयारियां पूर्ण करने के उपरांत की निराश्रित गोवंश की धरपकड़ शुरू होती। बिना किसी कार्ययोजना के पहले तो आधे अधूरे पशु पकड़े और जो पकड़े उनको रखने के लिए माकूल जगह ही नहीं है? यह सर्वविदित है कि निराश्रित गोवंश से समूचा शहर परेशान है और इस समस्या का स्थायी व ठोस समाधान सभी चाहते हैं, लेकिन इस तरह का समाधान तो कोई नहीं चाहेगा। जो तैयारियां अब हो रही हैं वह सब पहले हो जाती और इसके बाद निराश्रित गोवंश को पकडऩे का काम शुरू किया जाता तो न तो वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ती और ना ही पशु धूप व गर्मी में बेहाल होते। निरीह प्राणी को इस तरह बदहाल व्यवस्था का शिकार भी नहीं होना पड़ता। बिना तैयारी के गोवंश पकडऩा आग लगने के बाद कुआं खोदने के जैसा ही है। बहरहाल, औपचारिक व वाहवाही वाली कार्रवाइयां शहर पहले भी बहुत देख चुका है। अब तो समस्या का स्थायी समाधान ही हो। भले ही दो की जगह चार दिन लग जाए।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 12 जुलाई 17 के अंक में प्रकाशित
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