टिप्पणी
श्रीगंगानगर के शराब ठेकेदारों ने बुधवार को पुलिस कार्रवाई के विरोध में दुकानें बंद रखी और चाबियां आबकारी अधिकारी को सौंप दी। ठेकेदारों का आरोप है कि पुलिस ने मंगलवार रात कार्रवाई के नाम पर शराब दुकान का शटर तोड़ दिया। वैसे रात आठ बजे के बाद शराब बिकने की सूचना पर पुलिस ने मंगलवार रात को चहल चौक के पास स्थित दुकान पर छापेमार कार्रवाई की थी। दो-तीन दिन पहले पुलिस ने सुखाडि़या सर्किल-मीरा मार्ग के पास भी बार की तरह शराब पिलाने पर कार्रवाई की थी। इससे पहले एसडीएम भी धानमंडी के पास एक शराब गोदाम को सीज कर चुके हैं। बहरहाल, शराब ठेकेदारों का विरोध कथित शटर तोडऩे को लेकर ही है तो यह जरूर जांच का विषय है लेकिन इस विरोध प्रदर्शन के पीछे एकमात्र भावना रात आठ बजे के बाद बेरोकटोक शराब बेचने की है तो यह बेहद गंभीर विषय है और व्यवस्था पर सवाल भी है। वैसे भी शहर में शराब न केवल रात आठ बजे के बाद तक बिकती है बल्कि प्रिंट रेट से ज्यादा कीमत भी वसूली जाती है। यह सब पुलिस, प्रशासन व आबकारी विभाग की जानकारी में है और इस तरह के हालात अकेले श्रीगंगानगर शहर में ही नहीं हैं, अपितु ग्रामीण इलाकों व दूसरों जिलों के भी हैं। आबकारी विभाग ने लक्ष्य अधूरे रहने के डर से इस मामले में एक तरह से आंखें ही मूंद रखी हैं। यह आबकारी विभाग की अघोषित छूट का ही परिणाम है कि चाहे कैसे भी हो, बस लक्ष्य हासिल करो। एेसा इसलिए भी है क्योंकि विभाग ने अभी तक कोई कार्रवाई भी नहीं की है। एेसे में सवाल उठते हैं कि लक्ष्य हासिल करने के चक्कर में क्या नियमों से खिलवाड़ करना उचित है? क्या कानून को सरेआम ठेंगा दिखाना जायज है? खुले में शराब पिलाना क्या व्यवस्था को चुनौती देना नहीं है? भले ही पुलिस भी आबकारी विभाग का मामला बताकर इसमें सीधे कार्रवाई करने से बचे लेकिन कल को इससे कानून व्यवस्था या शांति भंग हुई तो जिम्मेदार कौन होगा?
दरअसल, इस मामले में एकमात्र कारण 'लक्ष्यÓ ही है। उसी ने आबकारी विभाग की नींद उड़ा रखी है और उसी ने ठेकेदारों का चैन छीन रखा है लेकिन इसका यह तो मतलब कतई नहीं है कि नियम विरुद्ध कुछ भी कर लिया जाए। सरकार और उसके नीति निर्धारकों को इस दिशा में न केवल सोचना चाहिए बल्कि पुनर्विचार भी करना चाहिए क्योंकि जान माल व कानून को ताक पर रखकर लक्ष्य हासिल करने के परिणाम हमेशा बुरे ही रहते हैं। सिर्फ लक्ष्य ही सब कुछ नहीं होता। और अगर कोई फैसला नहीं होता है तो फिर यही माना जाए कि सरकार को सिर्फ और सिर्फ राजस्व से मतलब है। भले ही वह कानून तोड़कर आए या अन्य किसी गैरकानूनी तरीके से।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 6 जुलाई 17 के अंक में प्रकाशित
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