स्मृति शेष- विनोद खन्ना
'कभी कभी एेसे इंसान भी जन्म लेते हैं, जो अपना नाम, अपनी याद तारीख में नहीं बल्कि लोगों के दिलों में महफूज कर जाते हैं।' संयोग देखिए दयावान फिल्म में बोला गया यह डायलॉग विनोद खन्ना पर मौजूं हो गया। विनोद खन्ना चले गए लेकिन उनका नाम उनकी याद तथा उनका काम दिलों में महफूज रहेगा। हमेशा हमेशा के लिए। विनोद खन्ना के डायलॉग इतने सहज व सीधे होते थे कि यह जल्द ही जुबान पर चढ़ जाते थे। साथ ही हर आदमी डायलॉग को अपनी बात समझने लगता है। 'मजदूर को मजदूरी पसीना सूखने से पहले और मजलूम को इंसाफ दर्द मिटने से पहले।' वाकई इस डायलॉग में आज की कड़वी हकीकत छिपी हुई है। काश उनका यह डायलॉग हकीकत के धरातल पर उतरता। विनोद यह डायलॉग तो कमोबेश सभी पर लागू होता है 'इज्जत वो दौलत है जो एक बार चली गई तो फिर कभी हासिल नहीं की जा सकती।' उनकी डायलॉग में गरीब का दर्द उजागर होता है। फिल्मों में गरीबों का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं। यह दो डायलॉग देखिए.. ' गरीब की जान की कीमत भी उतनी ही है जितनी पैसे वाले की जान की कीमत..' तथा 'गरीब का दिल अगर सोने का होता है तो हाथ फैलाद के होते हैं..। ' विनोद खन्ना का यह डायलॉग तो कई साथी आम बोलचाल में भी कह देते हैं कि ' मैंने जब से होश संभाला है खिलौनों से जगह मौत से खेलता आया हूं।' चांदनी फिल्म के डायलॉग 'दर्द की दवा न हो तो दर्द को ही दवा समझ लेना चाहिए ।' ने कई युगलों का संबल प्रदान किया। खैर, मौजूदा हालात में उनका यह डायलॉग तो आज भी प्रासंगिक है लगता है ' तलवार की लड़ाई तलवार से, प्यार की लड़ाई प्यार से और बेकार की लड़ाई सरकार से। ' इस तरह के विनोद खन्ना के डायलॉग कई हैं। सिनेमा, संन्यास और सियासत तीनों के समान रंग देख चुका रुपहले पर्दे का यह हीरों आज हमारे बीच नहीं है लेकिन इसकी यादें जेहन में जिंदा रहेंगी। जन्म जन्मांतर तक। इस कलाकार को मेरी श्रद्धांजलि।
इति।
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