मेरे संस्मरण-5
जालंधर आने के बाद मुझे बचपन में देखे गए सपने को पूरा करने का मौका मिला। मैं बहुत खुश था। यह अलग बात है कि सपना मुकाम पर पहुंचने से पहले टूटा भी। मुझे बचपन से ही दौडऩे का बेहद शौक था। गांव में मैं दौड़ में सबको पछाड़ देता था। स्कूली प्रतियोगिता में अव्वल आने पर मिली दवात व कलम को तो मैंने कई दिनों तक सहेज कर रखा था। इनाम को देखता तो मन में नई ऊर्जा का संचार होता था। सेना में पीटी परेड के सिलसिले में दौडऩा तो वैसे रोज ही होता था लेकिन सौ एवं दो सौ मीटर की दौड़ मेरी पसंदीदा रही। जल्द ही बैटरी में मेरी गिनती श्रेष्ठ धावकों में होनी लगी थी। कई पुराने धावकों ने अब दौडऩा बंद कर दिया था। सौ मीटर में मेरा समय 11.2 से 11.5 सैकिण्ड के बीच ही रहता था। बैटरी की तरफ से मेरा चयन हो गया था। इंन्फेंट्री में कंपनी, आर्टी में बैटरी व आर्मड में स्क्वार्डन होता है। बैटरी का प्रतिनिधितित्व करते हुए मैंने कई इनाम भी जीते। उस दौर में जीते मैडल एवं कप आज भी घर ही अलमारी में सजे हुए हैं। दरअसल, यकायक सबकी नजरों में आना या चढऩा भी खतरनाक होता है, क्योंकि मन ही मन कुछ पुराने धावक मेरे से चिढऩे लगे थे। हालांकि खुले तौर पर ऐसा कुछ नहीं हुआ लेकिन हाव भाव से जाहिर हो ही जाता है। साल भर का समय भी नहीं निकला होगा कि जालंधर से तबादला झांसी हो गया। झांसी में रहते ही मेरी शादी हो गई थी। यह बात 1954 की है। हरियाणा के बापौड़ा में बारात गई थी। भिवानी-तोशाम रोड पर पहला ही गांव है बापौड़ा है। इस गांव ने भी सेना एवं वायुसेना को कई अफसर दिए हैं। शादी के बाद मैं झांसी लौट आया था। साथियों के साथ शादी का जश्न मनाया। खैर, दौड़ में मेरे से ईष्र्या करने वाले यहां भी कम नहीं थे। अब मेरे को दौड़ से दूर करने के बहाने खोजे जाने लगे। उस वक्त ब्रिगे्रेड में दौडऩे की तैयारी चल रही थी। मेरे को कहा गया है कि आप सौ एवं दो सौ मीटर तो आसानी से दौड़ लेेते हो क्यों ना आप सौ मीटर बाधा दौड़ की तैयारी करो। दरअसल, यह उल्लू बनाने की कोशिश थी ताकि सौ एवं दो सौ मीटर में मेरे स्थान पर किसी दूसरे को दौड़ाया जा सके। सचमुच मेरे को बहुत पीड़ा हुई लेकिन मैं अपनी बात किसको कहता। मैंने कहा भी कि जब मेरा अभ्यास ही नहीं है तो फिर मैं कैसे दौडूंगा लेकिन किसी ने नहीं सुनी। कहा दो दिन अभ्यास कर लो। दरअसल, यह सारी कवायद लैंसनायक भंवरसिंह के लिए थी। वह सीएमपी से आया था। भूरजट हरियाणा का रहने वाला भंवरसिंह कहता था कि वह वॉलीबाल, बास्केटबाल में बहुत अच्छा खेलता है। इसके अलावा सौ एवं दो सौ मीटर का धावक भी है। सूबेदार भूरसिंह उसको यह कहकर मेरे पास लाए कि यह खेल में रहेगा तो लैंसनायक बना रहेगा। इसलिए इसका खेलना जरूरी है। ट्रायल के नाम पर सूबेदार मुझे एवं भंवरसिंह को मैदान पर ले गए। बारिश की वजह से समूचा मैदान गीला था कई जगह पानी भरा हुआ था। मैंने मना भी किया कि साहब मैदान गीला है नहीं दौड़ा जाएगा लेकिन सूबेदार अपने जिद पर अड़े रहे।
जालंधर आने के बाद मुझे बचपन में देखे गए सपने को पूरा करने का मौका मिला। मैं बहुत खुश था। यह अलग बात है कि सपना मुकाम पर पहुंचने से पहले टूटा भी। मुझे बचपन से ही दौडऩे का बेहद शौक था। गांव में मैं दौड़ में सबको पछाड़ देता था। स्कूली प्रतियोगिता में अव्वल आने पर मिली दवात व कलम को तो मैंने कई दिनों तक सहेज कर रखा था। इनाम को देखता तो मन में नई ऊर्जा का संचार होता था। सेना में पीटी परेड के सिलसिले में दौडऩा तो वैसे रोज ही होता था लेकिन सौ एवं दो सौ मीटर की दौड़ मेरी पसंदीदा रही। जल्द ही बैटरी में मेरी गिनती श्रेष्ठ धावकों में होनी लगी थी। कई पुराने धावकों ने अब दौडऩा बंद कर दिया था। सौ मीटर में मेरा समय 11.2 से 11.5 सैकिण्ड के बीच ही रहता था। बैटरी की तरफ से मेरा चयन हो गया था। इंन्फेंट्री में कंपनी, आर्टी में बैटरी व आर्मड में स्क्वार्डन होता है। बैटरी का प्रतिनिधितित्व करते हुए मैंने कई इनाम भी जीते। उस दौर में जीते मैडल एवं कप आज भी घर ही अलमारी में सजे हुए हैं। दरअसल, यकायक सबकी नजरों में आना या चढऩा भी खतरनाक होता है, क्योंकि मन ही मन कुछ पुराने धावक मेरे से चिढऩे लगे थे। हालांकि खुले तौर पर ऐसा कुछ नहीं हुआ लेकिन हाव भाव से जाहिर हो ही जाता है। साल भर का समय भी नहीं निकला होगा कि जालंधर से तबादला झांसी हो गया। झांसी में रहते ही मेरी शादी हो गई थी। यह बात 1954 की है। हरियाणा के बापौड़ा में बारात गई थी। भिवानी-तोशाम रोड पर पहला ही गांव है बापौड़ा है। इस गांव ने भी सेना एवं वायुसेना को कई अफसर दिए हैं। शादी के बाद मैं झांसी लौट आया था। साथियों के साथ शादी का जश्न मनाया। खैर, दौड़ में मेरे से ईष्र्या करने वाले यहां भी कम नहीं थे। अब मेरे को दौड़ से दूर करने के बहाने खोजे जाने लगे। उस वक्त ब्रिगे्रेड में दौडऩे की तैयारी चल रही थी। मेरे को कहा गया है कि आप सौ एवं दो सौ मीटर तो आसानी से दौड़ लेेते हो क्यों ना आप सौ मीटर बाधा दौड़ की तैयारी करो। दरअसल, यह उल्लू बनाने की कोशिश थी ताकि सौ एवं दो सौ मीटर में मेरे स्थान पर किसी दूसरे को दौड़ाया जा सके। सचमुच मेरे को बहुत पीड़ा हुई लेकिन मैं अपनी बात किसको कहता। मैंने कहा भी कि जब मेरा अभ्यास ही नहीं है तो फिर मैं कैसे दौडूंगा लेकिन किसी ने नहीं सुनी। कहा दो दिन अभ्यास कर लो। दरअसल, यह सारी कवायद लैंसनायक भंवरसिंह के लिए थी। वह सीएमपी से आया था। भूरजट हरियाणा का रहने वाला भंवरसिंह कहता था कि वह वॉलीबाल, बास्केटबाल में बहुत अच्छा खेलता है। इसके अलावा सौ एवं दो सौ मीटर का धावक भी है। सूबेदार भूरसिंह उसको यह कहकर मेरे पास लाए कि यह खेल में रहेगा तो लैंसनायक बना रहेगा। इसलिए इसका खेलना जरूरी है। ट्रायल के नाम पर सूबेदार मुझे एवं भंवरसिंह को मैदान पर ले गए। बारिश की वजह से समूचा मैदान गीला था कई जगह पानी भरा हुआ था। मैंने मना भी किया कि साहब मैदान गीला है नहीं दौड़ा जाएगा लेकिन सूबेदार अपने जिद पर अड़े रहे।
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