टिप्पणी
बीकानेर के कुछ हिस्सों में मानो दिवाली जल्दी आ गई है। गजब की साफ-सफाई और आकर्षक जगमग रोशनी। बीकानेर में ऐसा तब-तब होता है, जब-जब कोई वीआईपी आता है। पिछले साल जून में मुख्यमंत्री लवाजमे के साथ आई थी तो शहर के कई हिस्सों का चमत्कारिक रूप से कायापलट हो गया था। इसके बाद अप्रेल में तीन दिवसीय दौरे पर राज्यपाल आए तो कुछ स्थानों के दिन फिर फिरे। राज्यपाल अब फिर बीकानेर में हैं। जहां-जहां उनका कार्यक्रम है, उन स्थानों को शानदार सजाया गया है। कहीं कोर-कसर नहीं छोड़ी गई है। वैसे, राज्यपाल का कार्यक्रम सर्किट हाउस से वेटरनरी विवि परिसर तक सीमित है, लेकिन दौरे के आखिरी दिन वे नाल ग्राम पंचायत के अधीन आने वाले छोटे से गांव डाइयां का भी भ्रमण करेंगे। मुश्किल से सौ घरों की आबादी वाले इस गांव की सूरत भी राज्यपाल के आगमन के चलते बदल गई है। स्कूल मैदान की सफाई हो गई है। कंटीली झांडिय़ां हटा दी गई हैं। स्कूल भवन में रैंप बनकर तैयार हो गया है। महामहिम क्या देखेंगे और ग्रामीणों से किस अंदाज में रूबरू होंगे, यह अलग विषय है, लेकिन इतिहास गवाह है कि अतिथि अक्सर वो ही देखते हैं, जो आयोजक-मेजबान दिखाते हैं या पहले से जो तय होता है। वैसे भी पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में किसी तरह की गड़बड़ी केआसार कम ही होते हैं। इसीलिए सब कुछ चाक-चौबंद मिलना लगभग तय है। खैर, वीआईपी आगमन के दौरान जिस अंदाज में काम होते हैं और हकीकत पर पर्दा डाला जाता है, वह आयोजकों- प्रशासन से भी छिपा हुआ नहीं है। अखरने वाली बात तो यह है कि जानकारी में होने के बावजूद समस्याओं की अनदेखी की जाती है। लम्बे समय तक उनका समाधान नहीं होता है। बीकानेर में रेल फाटकों पर रोज कई बार लगने वाले जाम नासूर बन चुके हैं। सफाई व्यवस्था ढर्रे पर नहीं है। सीवरेज का पानी आए दिन सड़कों पर बह पर्यावरण प्रदूषित करता है। आवारा पशुओं की दखल समूचे शहर में है। बेतरतीब यातायात, मनमर्जी की पार्किंग, रास्तों पर फैले अतिक्रमण के तो शहरवासी जैसे आदी हो गए हैं। विद्युत तंत्र इतना कमजोर है कि कब बिजली गुल हो जाए विभाग को भी नहीं पता। कई रास्ते अंधेरे में डूबे हैं। रोडलाइट का कोई धणी-धोरी नहीं है। गजनेर ओवरब्रिज की रोडलाइट के समाधान के तो उपाय खोजने ही शायद बंद कर दिए गए हैं। बीकानेर में इस तरह की बुनियादी समस्याएं लम्बे समय से मुंह बाए खड़ी हैं। इनके स्थायी समाधान का कोई रास्ता नहीं खोजा जाता। जनहित से जुड़े मुद्दों में इस तरह का व्यवहार समझ से परे है। खैर, इतना कुछ होने के बावजूद बेहद संतोषी एवं शांत प्रवृत्ति के बीकानेरी उम्मीद जरूर जिंदा रखते हैं। उनके मौन में कई तरह के आग्रह और सवाल छिपे होते हैं। जब भी कोई वीआईपी बीकानेर आता है तो उनकी आशा बलवती हो उठती है। अब राज्यपाल आए हैं तो दिल के किसी कोने में दबी उनकी उम्मीद फिर जवां हो उठी है। जो कहना चाहती है कि आप डाइयां ही क्यों घूम रहे हैं? कुछ देर के लिए बीकानेर भी घूम लीजिए। क्या पता आपके एक पगफेरे से ही शहर की किस्मत संवर जाए। बिलकुल निष्क्रिय बना प्रशासनिक अमला कुछ हरकत में आ जाए। इस बहाने आपकी आंखें भी वो सब देख लेंगी जो आयोजक- मेजबान आपको दिखाना नहीं चाहते। आखिर ले देकर यह उम्मीद ही तो है जो किसी वीआईपी के आने से जागती है। काश! शहरवासियों की उम्मीदों पर किसी का तो ध्यान जाता और उनकी उम्मीदों को पंख लगते।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 16 सितम्बर 15 के अंक में प्रकाशित
बीकानेर के कुछ हिस्सों में मानो दिवाली जल्दी आ गई है। गजब की साफ-सफाई और आकर्षक जगमग रोशनी। बीकानेर में ऐसा तब-तब होता है, जब-जब कोई वीआईपी आता है। पिछले साल जून में मुख्यमंत्री लवाजमे के साथ आई थी तो शहर के कई हिस्सों का चमत्कारिक रूप से कायापलट हो गया था। इसके बाद अप्रेल में तीन दिवसीय दौरे पर राज्यपाल आए तो कुछ स्थानों के दिन फिर फिरे। राज्यपाल अब फिर बीकानेर में हैं। जहां-जहां उनका कार्यक्रम है, उन स्थानों को शानदार सजाया गया है। कहीं कोर-कसर नहीं छोड़ी गई है। वैसे, राज्यपाल का कार्यक्रम सर्किट हाउस से वेटरनरी विवि परिसर तक सीमित है, लेकिन दौरे के आखिरी दिन वे नाल ग्राम पंचायत के अधीन आने वाले छोटे से गांव डाइयां का भी भ्रमण करेंगे। मुश्किल से सौ घरों की आबादी वाले इस गांव की सूरत भी राज्यपाल के आगमन के चलते बदल गई है। स्कूल मैदान की सफाई हो गई है। कंटीली झांडिय़ां हटा दी गई हैं। स्कूल भवन में रैंप बनकर तैयार हो गया है। महामहिम क्या देखेंगे और ग्रामीणों से किस अंदाज में रूबरू होंगे, यह अलग विषय है, लेकिन इतिहास गवाह है कि अतिथि अक्सर वो ही देखते हैं, जो आयोजक-मेजबान दिखाते हैं या पहले से जो तय होता है। वैसे भी पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में किसी तरह की गड़बड़ी केआसार कम ही होते हैं। इसीलिए सब कुछ चाक-चौबंद मिलना लगभग तय है। खैर, वीआईपी आगमन के दौरान जिस अंदाज में काम होते हैं और हकीकत पर पर्दा डाला जाता है, वह आयोजकों- प्रशासन से भी छिपा हुआ नहीं है। अखरने वाली बात तो यह है कि जानकारी में होने के बावजूद समस्याओं की अनदेखी की जाती है। लम्बे समय तक उनका समाधान नहीं होता है। बीकानेर में रेल फाटकों पर रोज कई बार लगने वाले जाम नासूर बन चुके हैं। सफाई व्यवस्था ढर्रे पर नहीं है। सीवरेज का पानी आए दिन सड़कों पर बह पर्यावरण प्रदूषित करता है। आवारा पशुओं की दखल समूचे शहर में है। बेतरतीब यातायात, मनमर्जी की पार्किंग, रास्तों पर फैले अतिक्रमण के तो शहरवासी जैसे आदी हो गए हैं। विद्युत तंत्र इतना कमजोर है कि कब बिजली गुल हो जाए विभाग को भी नहीं पता। कई रास्ते अंधेरे में डूबे हैं। रोडलाइट का कोई धणी-धोरी नहीं है। गजनेर ओवरब्रिज की रोडलाइट के समाधान के तो उपाय खोजने ही शायद बंद कर दिए गए हैं। बीकानेर में इस तरह की बुनियादी समस्याएं लम्बे समय से मुंह बाए खड़ी हैं। इनके स्थायी समाधान का कोई रास्ता नहीं खोजा जाता। जनहित से जुड़े मुद्दों में इस तरह का व्यवहार समझ से परे है। खैर, इतना कुछ होने के बावजूद बेहद संतोषी एवं शांत प्रवृत्ति के बीकानेरी उम्मीद जरूर जिंदा रखते हैं। उनके मौन में कई तरह के आग्रह और सवाल छिपे होते हैं। जब भी कोई वीआईपी बीकानेर आता है तो उनकी आशा बलवती हो उठती है। अब राज्यपाल आए हैं तो दिल के किसी कोने में दबी उनकी उम्मीद फिर जवां हो उठी है। जो कहना चाहती है कि आप डाइयां ही क्यों घूम रहे हैं? कुछ देर के लिए बीकानेर भी घूम लीजिए। क्या पता आपके एक पगफेरे से ही शहर की किस्मत संवर जाए। बिलकुल निष्क्रिय बना प्रशासनिक अमला कुछ हरकत में आ जाए। इस बहाने आपकी आंखें भी वो सब देख लेंगी जो आयोजक- मेजबान आपको दिखाना नहीं चाहते। आखिर ले देकर यह उम्मीद ही तो है जो किसी वीआईपी के आने से जागती है। काश! शहरवासियों की उम्मीदों पर किसी का तो ध्यान जाता और उनकी उम्मीदों को पंख लगते।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 16 सितम्बर 15 के अंक में प्रकाशित
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